Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
## Glossary of Terms
**645**
* **Maatraatak** - Quantity, Language, Desire.
* **Aadaan Nikshepana aur Prati. Sthaapana** - These five committees and **Manogupti**, **Vachanagupti** and **Kayagupti** these three secrets.
**1065 14 Maargnaae** - 1. Motion 2. Indri 3. Karma 4. Yoga 5. Veda ... 6. Kashaya 7. Gyaan 8. Samyam 9. Darshan 10. Leshya 11. Bhavyaatva 12. Samyaktva 13. Sanjnitva and 14. Aahaarak
**24.94-96 Muktaavali** - A name of a penance.
**7.30 Moksha** - The soul's complete liberation from karma.
**2.118**
* **14 Rajuu** - High and **343**. **Vimang** - False perception knowledge, **Rajuu** - Fruitful sky.
* **5.105** - This is called the Lok.
**Vibhushanang** - One who gives ornaments.
**1112**
* **Kalpvruksh Lokpal** - A type of Dev, these are like the city's protectors.
* **3.39** - Dev Kotwal.
**Vairagyasthairyabhavana** - Non-attachment, contemplation of the nature of the body, contemplation of the nature of the world, and contemplation of the nature of the world. These are the feelings of steadfastness in detachment.
**10.192**
* **Vachobalinn** - Strength of words.
**2072**
* **21499 Van (Chaturvidh)** - 1. Bhadrashalavan 2. Nandanavan 3. Saumanasavan 4. Pandukakn
**Vratonki . Uttar Bhavana 1** - The feeling of the vow.
**Dhutimmatta** - To possess patience.
**25.6**
* **Kshamavatta** - To possess forgiveness.
* **Dhyanakatanata** - To be absorbed in meditation.
* **Vanya** - Dev of the wilderness, these are Kinnar, Kimpurush, Mahorag, Gandharva, Pari, Yaksha, Rakshas, Bhoot and Pishach. These are the eight types.
**201166**
* **13.13 Vaggupti** - To control speech.
**Vratodyot** - Second vow image.
**2.77**
* **5 Anuvrat** - 3 **Gunvaagvigrut** - A type of Ridi.
**2171**
* **Vikrishtpram** - A village with a hundred houses. Its boundary is one Kos.
**10.159**
* **Rajju** - An innumerable number of Yojanas is one Rajju.
**10.185**
* **Rakhatray** - Samyagdarshan, Samyaggyaan, Samyakcharitra.
* **14 Rakhavali** - A penance.
**7.44**
* **Ruchi** - Synonym for Samyagdarshan.
**9.123**
* **Roudradhyaan** - A type of meditation. It has four types - 1. Hinsa
________________
पारिभाषिक शब्दसूची
६४५
मात्राटक-ईर्या, भाषा, एषणा ।
आदान निक्षेपण और प्रति. ष्ठापन ये पांच समितियां तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति ये ३ गुप्तियाँ
१०६५ १४ मार्गणाएँ-१ गति २ इन्द्रि
य ३ काम ४ योग ५ वेद ...६ कषाय ७ ज्ञान ८ संयम
९ दर्शन १० लेश्या ११ भव्यत्व १२ सम्यक्त्व १३ संज्ञित्व और १४ आहारक
२४।९४-९६ मुक्तावली-एक तपका नाम
७।३० मोक्ष-आत्माका कर्मोंसे सर्वथा सम्बन्ध छूट जाना
२।११८
१४ राजु ऊँचे और ३४३ । विमंग-मिथ्या अवधिज्ञान राजु घनफलवाले आकाश
५।१०५ को लोक कहते हैं
विभूषणांग-आभूषण देनेवाला १११२
कल्पवृक्ष लोकपाल-देवोंका एक प्रकार, ये
३।३९ देव कोतवालके समान नगर
वैराग्यस्थैर्यभावना-विषयोंमें के रक्षक होते हैं
अनासक्ति, कायके स्वरूपका -- १०॥१९२
बार-बार चिन्तन करना और
जगत्के स्वभावका विचार वचोबलिन्-वचनबल ऋद्धिके
करना। ये वैराग्यस्थैर्य धारक
भावनाएं हैं २०७२
२१४९९ वन (चतुर्विध)-१ भद्रशालवन २ नन्दनवन ३ सौमनसवन
व्रतोंकी . उत्तर भावना--१
धुतिमत्ता-धैर्य धारण करना ४ पाण्डुकक्न २५।६
२ क्षमावत्ता-क्षमा धारण वन्य-व्यन्तर देव, इनके किन्नर,
करना ३ ध्यानकतानताकिंपुरुष, महोरग, गन्धर्व,
ध्यानमें लीन रहना ४ परी
षहोंके आनेपर कार्यसे यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ये आठ भेद होते हैं
च्युत नहीं होना
२०११६६ १३।१३ वाग्गुप्ति-वचनको वशमें करना व्रतोद्योत--दूसरी व्रत प्रतिमा २।७७
जिसमें ५ अणुव्रत ३ गुणवागविग्रुट्-एक ऋदि २१७१
व्रत और ४ शिक्षाव्रत ये विकृष्टप्राम-जिसमें सौ घर हों
१२ व्रत धारण करने ऐसा ग्राम । इसको सीमा १कोशकी होती है
१०।१५९
पड़ते हैं
रज्जु--असंख्यात योजनको एक रज्जू-राजु होती है
१०।१८५ रखत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र
१४ रखावली--एक तप
७.४४ रुचि-सम्यग्दर्शनका पर्यायान्तर ।
९।१२३ रौद्रध्यान-ध्यानका एक भेव।
इसके चार भेद हैं-१हिंसानन्द २ मषानन्द ३ स्तेयानन्द ४ विषयसंरक्षणानन्द
३११४२-५४
विक्रियादि- एक ऋदिविशेष
इसके आठ भेद है-अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व
२०७१ विक्षेपिणी-परमतका निराकरण
करनेवाली कथा . १११३५ विपुलमति-विपुलमतिमनःपर्ययज्ञान ऋद्धिके धारक
२०६८
शिक्षाव्रत--जिनसे मुनिव्रत धारण
करनेको शिक्षा मिले। ये चार हैं-सामायिक,प्रोषधोपवास,अतिथिसंविभाग और संन्यास-सल्लेखना । कोई. कोई आचार्य सल्लेखनाका पृथक् निरूपण कर उसके स्थानपर अतिथिसंविभाग व्रत अथवा वयावृत्यका वर्णन करते हैं १०।१६६
कोक-जहांतक जीव, पुद्गल, धर्म,
अधर्म, आकाश और काल ये छहो द्रव्य पाये जाते हैं उस ।