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आदिपुराणम्
लाख वर्षका एक पूर्वांग होता है और चौरासी लाख पूर्वांगका एक पूर्व होता है। ऐसे एक करोड़ पूर्व
३।१५३ पूर्वरंग-नाटकका प्रारम्भिक रूप
२१८८ पृथक्त्व-तीनसे ऊपर और नौसे नीचेकी संख्या
५।२८६ पृथक्त्वभ्यान (पृथक्त्ववितर्क)शुक्लध्यानका प्रथम पाया
१११११० प्रकीर्णक-फुटकर बसे हुए विमान
१०।१८७ प्रत्यय-सम्यग्दर्शनका पर्यायान्तर नाम
९।१२३ प्रत्येक बुद्ध-वैराग्यका कारण
देख स्वयं वैराग्य धारण करनेवाले मुनि
२०६८ प्रथम व्रत मावना-१ मनोगुप्ति
२ वचनगुप्ति ३ कायगुप्ति ४ ईर्या समिति और ५ एषणा समिति ये पांच अहिंसावतकी भावनाएं हैं
२०.१६१ प्रथमानुयोग-शास्त्रोंका एक भेद
जिसमें सत्पुरुषोंके कथानक लिखे जाते हैं
२।९८ प्रमाण-जो वस्तुके समस्त धर्मों
(नित्यत्व-अनित्यत्व आदि) को एक साथ ग्रहण करे वह ज्ञान
२।१०१ प्रशम-सम्यग्दर्शनका एक गुण, J
कषायके असंख्यात लोक प्रमाण स्थानोंमें मनका | भव्य-जिसे सिद्धि-मुक्ति प्राप्त स्वभावसे शिथिल होना
हो सके ऐसा जीव ९।१२३
२४।१२८ प्रायेणापगम (प्रायोपगम )- भावन-भवनवासी देव संन्यास
१३।१३ ११।९६
भावलेश्या-कषायके उदयसे प्रायोपगमन-संन्यासमरणका एक
अनुरंजित योगोंकी प्रवृत्ति भेद, जिसमें शरीरको सेवा - १०१९७ न स्वयं करते हैं और न भुक्ति-भोगका क्षेत्र दूसरेसे कराते हैं
१०।१८५ ५।२३४
भोजनांग-सब प्रकारका भोजन प्रायोपवेशन-संन्यास-सल्लेखना
देनेवाला एक कल्पवृक्ष .. ११।९४-९५
३।३९ प्रोषधवत-प्रोषधोपवास नामक
मडम्ब-जो पांच सौ गांवोंसे चौथी प्रतिमा । इसमें प्रत्येक
घिरा हो ऐसा नगर अष्टमी और चतुर्दशीको
१६।१७२ उपवास करना पड़ता है
मद्यांग-एक कल्पवृक्ष,इससे अनेक १०।१५९
रसोंकी प्राप्ति होती है
३।३९ फलचारण-चारण ऋद्धिका एक मधुनाविन-मधुस्राविणी ऋति.. भेद । इस ऋद्धिके धारी
के धारक वृक्षोंमें लगे फलोंपर पैर | .-२२७२ रखकर चलें फिर भी फल मनोगुप्ति-मनको वशमें करना नहीं टूटते हैं
२१७७ २०७३
मनोबलिन् - मनोबल ऋद्धिके धारक
२०७२ बल-बलभद्र, नारायणका भाई,
मातृकापद-१ ईर्या २ भाषा ये नौ होते है
३ एषणा ४ आदान निक्षे२१११७
पण और ५ प्रतिष्ठापन ये बीजबुद्धि - बोजबुद्धि ऋटिके
पांच समितियां तथा १ धारक
मनोगुप्ति २ वचनगुप्ति २०६७
और ३ कायगुप्ति ये तीन ब्रह्मचर्य-यह सातवीं प्रतिमा
गुप्तियां ये आठ मातृकापद है, इसमें स्त्रीमात्रका त्याग अथवा प्रवचनमातृका कहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य धारण लाती हैं। मात्राष्टक भो करना पड़ता है
यही हैं १०११६०
२०1१६८