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आदिपुराणम्
. नगरी
चमर-वि. उ. श्रे. का एक नगर |
भारणी-वि. उ. श्रे. का एक १९७९
तमःप्रमा-छठी पृथिवी (छठा नगर चारुणी-वि.उ.श्रे. को एक नरक)
१९८५ नगरी
१०॥३१
धातकी खण्ड-इस नामका १९७८
तमस्तमःप्रमा-सातवीं पृथ्वी दूसरा द्वीप इसका विस्तार चित्रकूट-वि. द. श्रे. का एक
१०३१
४ लाख योजन है... -...नगर
तिलका-वि. उ. श्रे. का एक ६।१२६ नगर
धान्यपुर-एक नगर १९५१ १९५८२
८।२३० चित्रांगद-ऐशान स्वर्गका विमान तुरुष्क-एक देश-तुर्क
धूमप्रमा-पांचवीं पृथिवी ९।१८९
१०३१ चूडामणि-वि. उ. थे. की एक त्रिकूटा-वि. द. श्रे. का एक नगर । ध्यानचतुष्क-आतध्यान, रौद्र.
१९।५१
ध्यान, धर्म्यध्यान, शुक्ल१९७८
ध्यान
द चेदि-एक देश। चन्देरीका पावं.
५।१५३ दशार्ण-आधुनिक विदिशाका वर्ती प्रदेश
पाववर्ती प्रदेश १६६१५५
१६।१५३ :
नन्द-ऐशान स्वर्गका विमान चोल-दक्षिण भारतका एक देश दार-एक देश
९।१९० १६१५४
१६३१५४
नन्दन-मेरु पर्वतका एक बन दुर्ग-वि. उ. श्रे. का एक नगर
५।१४४ जगनाडी-लोकनाड़ी १४ राजु
१९८५
नन्दीश्वर-आठवा द्वीप जहाँ प्रमाण लोकके मध्य में स्थित । 'दुर्धर-वि. उ. श्रे. का एक नगर । ५२ जिनालय है एक राजु चौड़ी एक राजु
१९८५
५।२९२ योटो और १४ ऊंची नाड़ी। देवकुरु-विदेह क्षेत्रके अन्तर्गत नन्दोत्तरा-समवसरणकी एक इसे सनाड़ी भी कहते हैं ' एक प्रदेश जिसमें उत्तम- वापिकाका नाम २०५०
भोगभूमिकी रचना है। नन्दोत्तरा, नन्दा, नन्दवती, ३१२४
नन्दघोषा ये चार वापिकाएं जम्बूद्रम-विदेह क्षेत्रका एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसके कारण देवाद्वि-सुमेरुपर्वत
पूर्वमानस्तम्भको पूर्वादि इस द्वीपका नाम ज़म्बूद्वीप
दिशाओंमें हैं। ४।५२
द्युतिलक-वि. उ. थे. का एक विजया, वैजयन्ती, जयन्ती पड़ा
और अपराजिता ये चार नगर ५।१८४ जम्बूद्वीप-पहला द्वीप
१९६८३
वापिकाएं दक्षिण मान
स्तम्भकी पूर्वादि दिशाओं४।५१
धुतिलक-अम्बरतिलक पर्वत . जय-वि. उ. थे. का एक नगर
७.९९
शोका, सुप्रतिबुद्धा, कुमुदा १९८४
और पुण्डरीका ये चार जयन्ती-वि. द. श्रे. का एक धनंजय-वि. उ. श्रे. का एक वापिकाएं पश्चिम मानस्तम्भनगर
की पूर्वादि दिशाओंमें है। १९५०
१९।६४
हृदयानन्दा, महानन्दा,
नगर