Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 740
________________ ६५० आदिपुराणम् . नगरी चमर-वि. उ. श्रे. का एक नगर | भारणी-वि. उ. श्रे. का एक १९७९ तमःप्रमा-छठी पृथिवी (छठा नगर चारुणी-वि.उ.श्रे. को एक नरक) १९८५ नगरी १०॥३१ धातकी खण्ड-इस नामका १९७८ तमस्तमःप्रमा-सातवीं पृथ्वी दूसरा द्वीप इसका विस्तार चित्रकूट-वि. द. श्रे. का एक १०३१ ४ लाख योजन है... -...नगर तिलका-वि. उ. श्रे. का एक ६।१२६ नगर धान्यपुर-एक नगर १९५१ १९५८२ ८।२३० चित्रांगद-ऐशान स्वर्गका विमान तुरुष्क-एक देश-तुर्क धूमप्रमा-पांचवीं पृथिवी ९।१८९ १०३१ चूडामणि-वि. उ. थे. की एक त्रिकूटा-वि. द. श्रे. का एक नगर । ध्यानचतुष्क-आतध्यान, रौद्र. १९।५१ ध्यान, धर्म्यध्यान, शुक्ल१९७८ ध्यान द चेदि-एक देश। चन्देरीका पावं. ५।१५३ दशार्ण-आधुनिक विदिशाका वर्ती प्रदेश पाववर्ती प्रदेश १६६१५५ १६।१५३ : नन्द-ऐशान स्वर्गका विमान चोल-दक्षिण भारतका एक देश दार-एक देश ९।१९० १६१५४ १६३१५४ नन्दन-मेरु पर्वतका एक बन दुर्ग-वि. उ. श्रे. का एक नगर ५।१४४ जगनाडी-लोकनाड़ी १४ राजु १९८५ नन्दीश्वर-आठवा द्वीप जहाँ प्रमाण लोकके मध्य में स्थित । 'दुर्धर-वि. उ. श्रे. का एक नगर । ५२ जिनालय है एक राजु चौड़ी एक राजु १९८५ ५।२९२ योटो और १४ ऊंची नाड़ी। देवकुरु-विदेह क्षेत्रके अन्तर्गत नन्दोत्तरा-समवसरणकी एक इसे सनाड़ी भी कहते हैं ' एक प्रदेश जिसमें उत्तम- वापिकाका नाम २०५० भोगभूमिकी रचना है। नन्दोत्तरा, नन्दा, नन्दवती, ३१२४ नन्दघोषा ये चार वापिकाएं जम्बूद्रम-विदेह क्षेत्रका एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसके कारण देवाद्वि-सुमेरुपर्वत पूर्वमानस्तम्भको पूर्वादि इस द्वीपका नाम ज़म्बूद्वीप दिशाओंमें हैं। ४।५२ द्युतिलक-वि. उ. थे. का एक विजया, वैजयन्ती, जयन्ती पड़ा और अपराजिता ये चार नगर ५।१८४ जम्बूद्वीप-पहला द्वीप १९६८३ वापिकाएं दक्षिण मान स्तम्भकी पूर्वादि दिशाओं४।५१ धुतिलक-अम्बरतिलक पर्वत . जय-वि. उ. थे. का एक नगर ७.९९ शोका, सुप्रतिबुद्धा, कुमुदा १९८४ और पुण्डरीका ये चार जयन्ती-वि. द. श्रे. का एक धनंजय-वि. उ. श्रे. का एक वापिकाएं पश्चिम मानस्तम्भनगर की पूर्वादि दिशाओंमें है। १९५० १९।६४ हृदयानन्दा, महानन्दा, नगर

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