Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 737
________________ पारिभाषिक शब्दसूची ६४७ सुषमासुषमा- अबसपिणीका पहला काल ३।१७ सूक्ष्म-कामणस्कन्ध २४॥१५० सूक्ष्म-अणु स्कन्धके भेदोंकी अपेक्षा व्यणुक २४।१५० सूक्ष्मराग-दसा गुणस्थान ११।९. सूक्ष्मसूक्ष्म - अणुस्कन्धके भेदोंअपेक्षा व्यणुक २४।१५० सूक्ष्मस्थूल-जो आँखोंसे न दिखे पर अन्य इन्द्रियोंसे ग्रहणमें आवे जैसे शब्द स्पर्श, रस, गन्ध २४।१५१ संकल्प-विषयोंमें तृष्णा बढ़ाने वाली मनकी वृत्तिको संकल्प कहते हैं। इसीका दूसरा नाम दुष्प्रणिधान भी है। २११२५ संग्रह-दस गांवोंके बीचका बड़ा गांव १६१७६ संमिश्रोत - संभिन्नश्रोत ऋद्धि के धारक २०६७ संवाह-जहां मस्तक पर्यन्त ऊंचे. । हो जाये और मिलनेपर ऊंचे धान्यके ढेर लगे हों मिल जाये जैसे तेल पानी ऐमा ग्राम आदि १६.१७३ २४ ।१५३ संवेग-सम्यग्दर्शनका एक गुण- स्थूल स्थूल-जो अलग करनेपर धर्म और धर्मके फलमें अलग हो जाये और मिलानेउत्साह युक्त मनका होना पर न मिले जैसे पत्थर अथवा चतुर्गतिके दुःखोंसे आदि भयभीत रहना २४।१५३ ९।१२३ स्थूल सूक्ष्म-जो आँखोंसे दिखे संवेदिनी-धर्मका फल वर्णन पर पकड़ने में न आवे जैसे करनेवाली कथा चाँदनी आतप आदि १११३६ २४।१५२ संसारी जीवके २ भेद-१ भव्य स्पर्श-सम्यग्दर्शनका पर्यायान्तर २ अभव्य नाम २४४८८ ९।१२३ सिहनिष्क्रीडित-एक प्रतका | स्वयंबुद्ध-बाह्य कारणोंके बिना नाम स्वयं विरक्त होनेवाले मुनि ७।२३ २०६८ स्कन्ध-नूषणुकसे लेकर लोकरूप स्वोदिष्टपरिवर्जन - उद्दिष्टत्याग महास्कन्ध तकका पुद्गल नामक ग्यारहवीं प्रतिमा । प्रचल स्कन्ध कहलाता है इसमें अपने उद्देश्यसे बनाये २४।१४७ हुए आहारका भी त्याग स्थविर कल्प-मुनिव्रतका पालन हो जाता है करते हुए साथ-साथ विहार १०११६० ... करना स्थविर कल्प है. नगा-सब प्रकारकी मालाएं २०११७० देनेवाला कल्पवृक्ष स्थूल-जो अलग करनेपर अलग ३१३९

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