Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 731
________________ पारिभाषिक शब्दसूची तर शूद्र शोर किसान लोग २ दर्शनाचार ३ चारित्राचार विहार करना रहते हों । बगीचा तथा ४ तप आचार ५ वीर्यावार २०११७० तालाब हो यह पांच प्रकारका आचार जिनगुणर्दि-एक नय १६११६४ भी कहलाता है। चारित्रके ७५३ पांच भेद इस प्रकार भी हैं जिनेन्द्रगुणसंपत्ति-एक व्रतका नाम १ सामायिक २ छेदोपस्था- विधि छठे पर्वके १४३-१४४ पातिकर्म-ज्ञानावरण, दर्शना पना ३ परिहारविशुद्धि ४ श्लोकमें है वरण, मोह और अन्तराय सूक्ष्म साम्पराय ५ यथाख्यात ये चार कर्म घातिया कह चारित्र भावना-ईर्यादि समि- जीव-चेतना लक्षणसे युक्त लाते हैं तियों में यत्ल करना, मनो २४१९२-९३ १११२ गुप्ति आदि गुप्तियोंका जीवके नामान्तर-जीव, प्राणी, घोष-जहाँ अहीर रहते हैं पालन और परिषह सहन १६।१७६ जन्तु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान्, करना ये चारित्र भावनाएं अन्तरात्मा, ज्ञानो २४।१०३ चक्रवर्ती - चक्ररत्नका स्वामी, २११९८ जीवक पाँच भाव-१ औपशमिक राजाधिराज। ये १२ होते हैं २ क्षायिक ३ क्षायोपशमिक तथा भरत ऐरावत और छह बाह्मतप-१ अनशन ४ औदयिक ५ पारिविदेह क्षेत्रके छह खण्डोंके २ अवमौदर्य ३ वृत्तिपरि. णामिक स्वामी होते हैं संख्यान ४ रस परित्याग २४१९९ २।११७ ५ विविक्त शय्यासन | ज्योतिरा-प्रकाशको देनेवाला चतुर्थव्रतमावना -१ स्त्रीकथा ६ काय क्लेश एक कल्पवृक्ष त्याग २ स्ख्यालोक त्याग २०११७५-१८९ ३।३९ ३ स्त्रोसंसर्ग त्याग ४ प्रागछेदोपस्थापना-चारित्रका एक ज्ञान-पदार्थोंको साकार-सवि.. रतस्मरण त्याग ५ वृष्येष्टभेद कल्पक जानना रस-गरिष्ठ-उत्तेजक आहार. २०११७२ २४।१०१ का त्याग छह प्रकारका अन्तरा नय ज्ञानोपयोगके पाठ भेद१ प्रायश्चित्त २ विनय २०११६४ १ मतिज्ञान २ श्रुतज्ञान ३ बैग्यावृत्य ४ स्वाध्याय चतुर्दश महाविद्या-उत्पाद पूर्व ३ अवधिज्ञान ४ मन:५ व्युत्सर्ग ६ ध्यान आदि चौदह पूर्व पर्ययज्ञान ५ केवलज्ञान __ २०११९०.२०४ २।४८ . ६ कुमतिज्ञान ७ कुश्रुत चरणानुयोग-शास्त्रोंका एक जकाचारण-चारणऋद्धि का एक ज्ञान ८ कुअवधि ज्ञान भेद, जिसमें ग्रहस्थ २४-१०१ मुनियोंके चारित्रका वर्णन २०७३ रहता है जलचारण-चारणऋद्धिका एक तस्व-जीवादि पदार्थोका वास्त. २।१०० भेद विक स्वरूप चारण - आकाशमें चलनेवाले २०७३ २४१८६ ऋद्धिधारी मुनि जल्ल-एक ऋद्धि तत्वके दो भेद-१ जीव २ ९९६ २०७१ अजीव चारित्रके पाँच भेद-१ ज्ञानाचार | जिनकल्प - मुनिका एकाकी .. २४।८७

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