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कर्मका उपशम करनेवाले आठवेंसे लेकर ११वें गुणस्थानवर्ती जीवोंके परिणाम
११६८९ उपशान्त कषायता - ग्यारहवाँ गुणस्थान
१११९०
खर्वट-जो सिर्फ पर्वतसे घिरा हो ऐसा ग्राम
१६३१७१ खेट-जो नदी और पर्वतसे घिरा हो ऐसा-ग्राम
१६.१७१
ऋजुमति-ऋजुमति मन:पर्यय
ज्ञान नामक ऋद्धि के धारक इस ऋद्धिका धारक सरल मन वचन कायसे चिन्तित दूसरेके मनमें स्थित रूपी पदार्थोंको जानता है
२०६८
कनकावली-एक व्रतका नाम
७३९ कमल - संख्याका एक प्रमाण
३।१०९ करण-सम्यग्दर्शन प्राप्त कराने.
वाले भाव। इसके ३ भेद है-१अधःकरण २ अपूर्व करण ३ बनिवृत्तिकरण
९।१२० करणानुयोग-शास्त्रोंका एक भेद
जिसमें तीन लोकका वर्णन होता है
२।९९ कल्प-उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी
को मिलाकर बीस कोड़ाकोड़ी सागरका एक कल्प । काल होता है
३।१५ कल्पपादप-कल्पवृक्ष, जिससे मन- चाही वस्तुएं मिलती हैं
३१३८ कामदेव-कामदेव पदका धारक
आदिपुराणम् (कुल २४ कामदेव होते हैं)
१६९ कायगुप्ति-काय = शरीरको वशमें करना
२७७ कायबलिन्-कायबल ऋदिके धारक
२०७२ काल-वर्तना लक्षणसे युक्त एक द्रव्य
२४।१३९-१४२ फिल्विषिक-देवोंका एक भेद
२२।३० कुमुद-संख्याका एक भेद
३।१२६ कुमुदांग-संख्याका एक भेद
३३१३० कंवली-ज्ञानावरण कर्मके क्षयसे
प्रकट होनेवाला पूर्णज्ञान जिन्हें प्राप्त हो चुका है। उन्हें अरहन्तसर्वज्ञ अथवा जिनेन्द्र भी कहते है
२०६१ केशव-नारायण, ये नौ होते हैं
२।११७ कैवल्य-केवलज्ञान, संसारके
समस्त पदार्थोको एक साथ जाननेवाला ज्ञान
५।१४९ कोटबुद्धि-कोष्ठबुद्धि ऋद्धिके धारक
२०६७ क्षीरनाविन्-क्षीरस्राविणी ऋद्धिके धारक
२०७२ क्षेत्र-लोक
४।१४ श्वेल-एक ऋद्धि
२०७१
गणधर-तीर्थंकरोंके समवसरणमें
रहनेवाले विशिष्ट मुनि । ये चार ज्ञानके धारक होते हैं
२।५१ गुण व्रत-जो अणुव्रतोंका उपकार
करें। ये तीन है-दिग्वत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत, कोई-कोई आचार्य भोगोप.. भोग परिमाणको गुणवत और देशव्रतको शिक्षाप्रतमें शामिल करते हैं
१०११६२ १४ गुण स्थान-मोह और योगके -
निमित्तसे उत्पन्न आत्माके भावोंको गुणस्थान कहते हैं, वे १४ है- १ मिथ्यादृष्टि २ सासादन ३ मिश्र ४ अविरत सम्यग्दृष्टि ५ देशविरत ६ प्रमत्तसंयत ७ अप्रमत्तसंयत ८ अपूर्व करण ९ अनिवृत्तिकरण १० सूक्ष्मसाम्पराय ११ उपशान्त मोह १२ क्षीण. मोह १३ सयोग केवली १४ अयोगकेवली
२४।९४ गृहांग-भवनको देनेवाला एक कल्प वृक्ष
३१३९ ग्राम-वह बस्ती जो बाड़से घिरी
हुई हो और जिसमें अधिक