Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 729
________________ पारिभाषिक शब्दसूची सुषमा आदि छह काल हैं ३११४ भष्टगुण - अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ गुण हैं १०।१७३ अष्टप्रातिहार्य-समवसरणमें तीर्थ कर केवलोके प्रकट होनेवाले आठ प्रातिहार्य१ अशोक वृक्ष २ सिंहासन - ३ छत्रत्रय ४ भामण्डल ५ दिव्य ध्वनि ६ पुष्पवृष्टि ७ चौंसठ चमर ८ दुन्दुभि बाजोंका बजना - २५७ अष्टांग-सम्यग्दर्शनके. निम्न लिखित आठ अंग हैं१ निःशंकित २ निःकां. क्षित ३ निविचिकित्सित ४ बमूढ दृष्टि ५ उपगूहन भषवा उपहण ६ स्थिति करण ७ वात्सल्य ८ | प्रभावना ९।१२२ अस्तिकाप-बहुप्रवेशी द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म मोर बाकाश ये पांच बस्तिकाय है . प्रा आत-ध्यानका एक भेद । इसके आकर-जहां सोने-चांदीकी खान चार भेद हैं-१ इष्ट-- होती हैं। वियोगज २ अनिष्टसंयोगज १६।१७६ ३ वेदनाजन्य और ४ निदान आकार-तद्-तद् पदार्थके भेदसे २१॥३१.४१ पदार्थको ग्रहण करना आस्तिक्य-सम्यग्दर्शनका एक २४।१०२ गुण, आत्मा तथा परलोक माकाश-जो जीवादि द्रव्योंको आदिका श्रद्धान होना अवगाहन स्थान देवे २४।१३८ ९।१२३ आक्षेपिणी-स्वमतका निरूपण करनेवाली कथा इन्द्र-देवोंका स्वामी १११३५ २।११७ आगम-वीतराग सर्वज्ञदेवकी इन्द्रक-श्रेणीबद्ध विमानोंके बीच. वाणी, सच्चा शास्त्र का विमान ९।१२१ १०११८७ आचाम्लवर्धन-एक तप ७७७ आत्मरक्ष-इन्द्रके अंगरक्षकके ! उत्कृष्टोपासक स्थान-ग्यारहवीं समान देव प्रतिमाका धारक क्षुल्लक १०११९० १०।१५८ भाषशुक्लध्यान-पृथक्त्ववितर्क - उत्सर्पिणी-जिसमें लोगोंके बल वीचार शुक्ल ध्यान विद्या बुद्धि माविको वृद्धि २०२४४ भानुपूर्वी-वर्णनीय विषयका क्रम, होती है, यह १. कोड़ा. इसके ३ भेद है-पूर्वानुपूर्वी, कोड़ी सागरका होता है। अन्तानुपूर्वी, यत्रतत्रानुपूर्वी इसके दुषमा-दु:पमा मावि २।१०४ मास-सन्चा देव-वीतराग, सर्वज्ञ उपक्रम-शास्त्रके नाम बाविका और हितोपदेशी परहन्त ९।१२१ वर्णन, उपोद्घात-प्रस्ताभाभियोग्य-देवोंका एक भेद बना। इसके पांच भेद है२२।२९ आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, भामर्ष-एक ऋद्धि अभिधेय, मर्याधिकार ... २०७१ २।१.३ भारम्मपरिच्युति - आरम्भत्याग उपपादशम्या-देवोंके जन्म लेने नामक आठवी प्रतिमा, इसमें का स्थान व्यापारमात्रका त्याग हो ५।२५४ जाता है उपयोगके दो भेद-१ ज्ञानोपयोग १०।१६० २ दर्शनोपयोग भाराधना-समाधि २४।१०० ५।२३१ . | उपशम श्रेणी-चारित्रमोहनीय महमिन्द्र-सोलह स्वर्गके मागेके देव अहमिन्द्र कहलाते हैं ९.९३ महःस्त्रीसंगवर्जन-दिवामथुन त्याग नामक छठी प्रतिमा । इसका दूसरा नाम रात्रिभोजनत्याग भी है १०।१५९ ८७

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