Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 728
________________ पारिभाषिक शब्दसूची होना । भनिवृत्तिकरण-नोवा गुणस्थान । अभव्य-जिसे मुक्ति प्राप्त न अजीवके दो भेद-१ मूर्तिक २ अमू इसमें समसमयवर्ती जीवोंके हो सके ऐसा जीव तिक परिणाम समान और विषम .. २४.१२९ -------- २४।८९ समयवर्ती जीवोंके परिणाम अभिन्नदशपूर्विन् - उत्पादपूर्व . अजीवके पाँच भेद-१ पुद्गल असमान ही होते हैं ___- आदि दशपूर्वोके ज्ञाता मुनि २ धर्म ३ अधर्म ४ आकाश १११९० . २०६९ भनीक-देवोंका एक भेद और ५ काल प्रमत्रांग-सब प्रकारके बरतन २२२८ २४।१३२ देनेवाला एक कल्पवृक्ष अनुकम्पन-सम्यग्दर्शनका एक अटट-संख्याका एक प्रमाण ३१३९ गुण मोह तथा राग-द्वेषसे ३१९२ अमम-संख्याका एक प्रमाण पोड़ित जीवोंको दुःखसे अणु-पुद्गलका सबसे छोटा अंश । ३७९ छटानेका दया परिणाम इसमें एक वर्ण, एक रस, • अमृतश्राविन् - अमृतश्राविणी एक गन्ध और दो स्पर्श ऋद्धिके धारक मुनि ९।१२३ होते हैं २०७३ अनुमननस्याग-अनुमति त्याग । २४।१४८ अम्बरचारण-वारणऋद्धिका एक नामक दसवीं प्रतिमा इसमें अणुव्रत-हिंसा, असत्य, चौर्य, व्यापारविषयक अनुमति भी २०७३ कुशील और परिग्रह इन नहीं दी जाती भई-अरहन्त जिनेन्द्र, चार पांच पापोंका एक देश १०११६. स्थूल रूपसे त्याग करना- पातिया कर्माको नष्ट करने भतापरिषदस्य-अन्तरंग परि. । ये पाच होते। बाले- जिनेन्द्र मरहन्त पदके सदस्य देव १०११६२ कहलाते है १०.१९१ भतिदुषमा-अबसपिणीका छठा भपूर्वकरण-आठ गुणस्थान काल । दूसरा नाम दु:षमा- इसमें भिन्न समयवती जीवों भकोक-लोकके बाहरका अनन्त दुःषमा भी है के परिणाम भिन्न और आकाश जिसमें सिर्फ ३।१८ समसमयवर्ती जीवोंके परि आकाश ही आकाश रहता भषाकरण-सप्तम गुणस्थानकी णाम भिन्न तथा अभिन्न श्रेणी चढ़नेके सम्मुख अवस्था दोनों प्रकारके होते है । १११२ इसमें जीवके परिणामरूप १११९० अवधि-अवधिज्ञानावरणके क्षयो. समय और भिन्न समयमें | अपृथग विक्रिया-अपने ही पशमसे प्रकट होनेवाला समान और असमान दोनों शरीरको नाना रूप परि. देश प्रत्यक्ष ज्ञान प्रकारके होते हैं णमानेको शक्ति २०६६ २०१२४३ १०११०२ - अवसर्पिणी-जिसमें लोगोंके बल, अधर्म-जो जीव और पुद्गलकी अप्रत्याख्यान-देशसंयमको पातने विद्या, बुद्धि आदिका स्थितिमें सहायक हो वालो कषाय ह्रास होता है । इसमें दश २४॥१३३.१३७ ८२२४ कोडाकोड़ी सागरके सुषमा ६३८

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