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पारिभाषिक शब्दसूची
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पाह
जीवोंका वाचक है
परमावधि-अवधिज्ञानका भेद नय-जो वस्तु के एक धर्म । निर्यापक-सल्लेखना -समाधि
२०६६. (नित्यत्व-अनित्यत्व आदि) की विधि करानेवाला- परमेष्ठो-अरहन्त, सिद्ध, पाचार्य, को विवक्षावश क्रमसे निर्देशक
उपाध्याय और साधु ये ५ ग्रहण करे, वह ज्ञान । यह
५।२३
परमेष्ठी कहलाते हैं द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक, निवेद-संसार - शरीर और
५।२३५ निश्चय, व्यवहार आदि के
भोगोंमें विरक्तता
पर्याप्त-जिनके शरीर पर्याप्ति भेदसे अनेक प्रकारका
१०११५७
पूर्ण हो चुके हैं होता है। निवेदिनी-वैराग्यवर्धक कथा
१०.३५ २।१०१
१।१३६
पर्व-संख्याका एक भेद नयुत-संख्याका एक भेद नैःषाय व्रतमावना-बाह्याभ्य
३२१४७ ३।१३५
न्तर भेदसे युक्त पञ्चेन्द्रिय | परिग्रहपरिच्युति-परिग्रह त्याग नयुतांग-संख्याका एक भेद
सम्बन्धी सचित्त अचित्त नामक नौवीं प्रतिमा, इसमें ३।१४० विषयों में अनासक्ति
आवश्यक वस्त्र तथा निर्वाहनलिन-संख्याका एक प्रमाण
२०११६५
योग्य बरतनोंके सिवाय सब
परिग्रहका त्याग हो जाता है। नवकेवल लधियाँ-१ क्षायिक । पम्चास्तिकाय-१ जीव २ पृद्
१०।१६० ज्ञान २ क्षायिकदर्शन ३ गल .३ धर्म ४ अधर्म
पल्य-असंख्यात वर्षोंका एक क्षायिक सम्यक्त्व ४क्षायिक ५ आकाश
पल्य होता है चारित्र ५ क्षायिक दान
२४९० ६ क्षायिक लाभ ७ क्षायिक पत्तन-जो समुद्रके पास बसा पारिषद-वेवोंका एक भेद भोग ८ क्षायिक उपभोग हो तथा जिसमें नावोंसे
२२।२६ ९क्षायिक वीर्य
उतरना-चढ़ना होता है
पुद्गल-वर्ण, गन्ध, रस और २०१२६६
१६।१७२
स्पर्शसे सहित द्रव्य नवपदार्थ-जीव, अजीव, आस्रव, - पदानुसारिन्-पदानुसारी ऋद्धिके
२४॥१४५ .. बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष,
धारक
पुद्गलके छह भेद-१ सूक्ष्मसूक्ष्म पुण्य और पाप ये नौ
२०६७
२ सूक्ष्म ३ सूक्ष्मस्थूल ४ पदार्थ है पदार्थ-जीव, अजीव, आस्रव,
स्थूलसूक्ष्म ५ स्थूल ६ स्थूल२।११८
बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, निधेप-नय और प्रमाणके अनु- पुण्य, पाप ये नौ पदार्थ
२४.१४९ . सार प्रचलिन लोकव्यवहार कहलाते हैं . पुर-जो परिखा, गोपुर, कोट २॥१.१ -----
तथा अट्टालिका आदिसे निगोत (निगोद)-साधारण प-संख्याका एक भेद
सुशोभित हो, बाग-बगीचे बनस्पति काय, जिसके आ
३।११८
और जलाशयसे सहित हो श्रित अनन्त जीव रहते हैं। परग्राम-जिसमें पांच सौ घर
१६।१६९.१७. इसका दूसरा नाम निगोद
हों तथा सम्पन्न किसान हों पुष्पचारण-चारणऋद्धिका एक प्रसिद्ध है। इसी प्रकार
इसकी सीमा २ कोशकी का एक निकोत शब्द भी होती है।
२०७३ आता है जो कि सम्मूर्छन । १६।१६५ | पूर्वकोटी-एक करोड़ पूर्व चोरासी
९।१२१
भेद