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पोड पर्व
३६१ क्रोशद्विक्रोशपीमानो ग्रामाः स्युरधमोत्तमाः । 'सम्पासस्यसुक्षेत्राः प्रभूतयवसोदकाः ॥१६६॥ सरिगिरिदरी गृष्टिक्षीरकण्टकशाखिनः । वनानि संतवश्चेति तेषां सीमोपलक्षणम् ॥१६॥ तस्कर्तृभोक्तृनियमी योगक्षेमानुचिन्तनम् । विष्टिदण्डकराणां च निबन्धो राजसाद्भवेत् ॥१६॥ परिखागोपुराहालवप्रप्राकारमण्डितम् । नानाभवनविन्यासं सोद्यानं सजलाशयम् ॥१६९॥ पुरमेवंविधं शस्तमुचिताद्देशसुस्थितम् । पूर्वोत्तरप्लवाम्मस्कं प्रधानपुरुषोचितम् ॥१७॥ सरिगिरिभ्यां संरुदं खेटमाहुर्मनीषिणः । केवलं गिरिसंवं खर्वटं तस्प्रचक्षते ॥११॥ मडम्बमामनन्ति ज्ञाः 'पञ्चप्रामशतीवृत्तम् । पत्तनं तरसमुद्रान्त यौमिरवतीर्यते ॥१२॥ भवेद् द्रोणमुखं नाम्ना निम्नगातटमाश्रितम् । संवाहस्तु शिरोम्यूढधान्यसंचय इप्यते ॥१७३॥ "पुटभेदनभेदानाममीषां च कचिकचित् । संनिवेशो 'ऽभवत् पृथ्ष्यां यथोडेशमितोऽमुतः ॥१७॥ शतान्यष्टौ च चत्वारि द्वे च स्युमिसंख्यया । राजधान्यास्तथा द्रोण मुखखवटयोः क्रमात् ॥१७५॥
जिसके किसान धनसम्पन्न हों उसे बड़ा गाँव कहते हैं ॥१६५॥ छोटे गाँवोंको सीमा एक कोसकी और बड़े गाँवोंको सीमा दो कोसकी होती है। इन गाँवोंके धानके खेत सदा सम्पन्न रहते हैं और इनमें घास तथा जल भी अधिक रहता है ।।१६६।। नदी, पहाड़, गुफा, श्मशान भीरवृक्ष अर्थात् थूवर आदिके वृक्ष, बबूल आदि कँटीले वृक्ष, वन और पुल ये सब उन गाँवोंकी सीमाके चिह्न कहलाते हैं अर्थात् नदी आदिसे गाँवोंकी सीमाका विभाग किया जाता है।।१६७।। गाँव के बसाने और उपभोग करनेवालोंके योग्य नियम बनाना, नवीन वस्तुके बनाने और पुरानी वस्तुकी रक्षा करनेके उपाय, वहाँ के लोगोंसे बेगार कराना, अपराधियोंका दण्ड करना तथा जनतासे कर वसूल करना आदि कार्य राजाओंके अधीन रहते थे ॥१६८॥ जो परिखा, गोपुर, अटारी, कोट और प्राकारसे सुशोभित हो, जिसमें अनेक भवन बने हुए हों, जो बगीचे
और तालाबोंसे सहित हो, जो उत्तम रीतिसे अच्छे स्थानपर बसा हुआ हो, जिसमें पानीका प्रवाह पूर्व और उत्तरके बीचवाली ईशान दिशाकी ओर हो और जो प्रधान पुरुषोंके रहने के योग्य हो वह प्रशंसनीय पुर अथवा नगर कहलाता है ॥१६९-१७०।। जो नगर नदी और पर्वतसे घिरा हुआ हो उसे बुद्धिमान पुरुष खेट कहते हैं और जो केवल पर्वतसे घिरा हुआ हो उसे खर्वट कहते हैं ॥१७१।। जो पाँच सौ गाँवोंसे घिरा हो उसे पण्डितजन मडम्ब मानते हैं और जो समुद्रके किनारे हो तथा जहाँपर लोग नावोंके द्वारा उतरते हैं-(आते-जाते हैं) उसे पत्तन कहते हैं ।।१७२॥ जो किसी नदीके किनारेपर हो उसे द्रोणमुख कहते हैं और जहाँ मस्तक पर्यन्त ऊँचे-ऊँचे धान्यके ढेर लगे हों वह संवाह कहलाता है ॥१७॥ इस प्रकार पृथिवीपर जहाँ-तहाँ अपने-अपने योग्य स्थानोंके अनुसार कहीं-कहींपर ऊपर कहे हुए गाँव नगर आदिकी ॥१७४|| एक राजधानीमें
जधानीमें आठ सौ गाँव होते हैं, एक द्रोणमुखमें चार सौ गाँव होते हैं और एक खर्वटमें दो सौ गाँव होते हैं। दश गाँवोंके बीच जो एक बड़ा भारी गाँव होता है उसे संग्रह (जहाँपर हर एक वस्तुओंका संग्रह रखा जाता हो) कहते हैं । इसी प्रकार घोष तथा आकर आदिके लक्षणोंकी भी कल्पना कर लेनी चाहिए अर्थात् जहाँपर बहुत
१. फलित । २. प्रचुरतणजला: । ३. श्मशानम् । -भृष्टि-40, द०, म०, ल०।-सृष्टि- अ०, स.। ४. अलब्धलाभो योगः, लब्धपरिरक्षणं क्षेमस्तयोः चिन्तनम् । ५. नृपाधीनं भवेत् । ६. पूर्वोत्तरप्रवाहजलम् । 'नगरके मार्गका जल पूर्व और उत्तरमें बहे तो नगरनिवासियोंको लाभ हैं अथवा पूर्वोत्तरशब्दवाच्य ईशान दिशामें बहे तो नगरवासियोंको अत्यन्त लाभ है।' इति हिन्दीभाषायां स्पष्टोऽर्थः । ७. नपादियोग्यम् । ८.खेडम०, ल० । ९. पञ्चग्रामशतीपरिवेष्टितम् । १०. पत्तनम् । ११. -भवेत् व०, द० ।