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आदिपुराणम्
रुक्मवतीवृत्तम् व्यायतशाखादोश्चलनैः स्वैर्नृत्तमथासौ कर्तुमिवाने । पुष्पसमूहैरञ्जलिमिदं मर्तुरकार्षीद म्यक्तमशोकः ॥३८॥
__ पणववृत्तम् रंजेऽशोकतरसौ रुन्धन्मार्ग व्योमचर महेशानाम् । तन्वन्योजनविस्तृताः शाखा धुन्वन् शोकमयमदो ध्वान्तम् ॥३९॥
उपस्थितावृत्तम् । सर्वा हरितो बिटपैस्ततैः संमार्दुमिवोवतधीरसौ। व्यायद्विकचैः कुसुमोत्करैः पुप्पोपहतिं विदधद्रुमः ॥४०॥
मयूरसारिणीवृत्तम् वज्रमूलबद्धरत्न बुध्नं सज्जपा भरनचित्रसूनम् । मत्तकोकिलालिसेव्यमेनं चक्रुरायमनिपं सुरेशाः ॥४॥
छत्रं भवलं रुचिमत्कारया चान्द्रीमजयद्रुचिरां लक्ष्मीम् । त्रेधा रुचे शशभून्नून सेवां विदधजगतां पत्युः ॥४२॥ छत्राकारं दधदिव चान्वं विम्बंधुभं उन्नत्रितयमदो नाभा सत् ।
मुक्ताजालेः किरणसमूहर्वा स्वैश्चक्रे सुत्रामवचनतो रैराट् ॥४३॥ भगवानकी स्तुति ही कर रहा हो ॥३७॥ वह अशोकवृक्ष अपनी लम्बी-लम्बी शाखारूपी भुजाओंके चलानेसे ऐसा जान पड़ता था मानो भगवानके आगे नृत्य ही कर रहा हो और पुष्पोंके समूहोंसे ऐसा जान पड़ता था मानो भगवानके आगे देदीप्यमान पुष्पाञ्जलि ही प्रकट कर रहा हो ॥३८॥ आकाशमें चलनेवाले देव और विद्याधरोंके स्वामियोंका मार्ग रोकता हुआ अपनी एक योजन विस्तारवाली शाखाओंको फैलाता हुआ और शोकरूपी अन्धकारको नष्ट करता हुआ वह अशोकवृक्ष बहुत ही अधिक शोभायमान हो रहा था ॥३९॥ फूले हुए पुष्पोंके समूहसे भगवान के लिए पुष्पोंका उपहार समर्पण करता हुआ वह वृक्ष अपनी फैली हुई शाखाओंसे समस्त दिशाओंको व्याप्त कर रहा था और उससे ऐसा जान पड़ता था मानो उन फैली हुई शाखाओंसे दिशाओंको साफ करनेके लिए ही तैयार हुआ हो ॥४०॥ जिसकी जड़ वनकी बनी हुई थी, जिसका मूल भाग रत्नोंसे देदीप्यमान था, जिसके अनेक प्रकारके पुष्प- जपापुष्पकी कान्तिके समान पद्मरागमणियोंके बने हुए थे
और जो मदोन्मत्त कोयल तथा भ्रमरोंसे सेवित था ऐसे उस वृक्षको इन्द्रने सब वृक्षोंमें मुख्य बनाया था ॥४१॥ भगवानके ऊपर जो देदीप्यमान सफेद छत्र लगा हुआ था उसने चन्द्रमाकी लक्ष्मीको. जीत लिया था और वह ऐसा सुशोभित हो रहा था मानो तीनों लोकोंके स्वामी भगवान् वृषभदेवकी सेवा करनेके लिए तीन रूप धारण कर चन्द्रमा ही आया हो ॥४२॥ वे तीनों सफेद छत्र ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो छत्रका आकार धारण करनेवाले चन्द्रमाके बिम्ब ही हों, उनमें जो मोतियोंके समूह लगे हुए थे वे किरणोंके समान जान पड़ते थे इस प्रकार उस छत्र-त्रितयको कुवेरने इन्द्रकी आज्ञासे बनाया था ।।४।।
१. गगनचरमहाप्रभूणाम्। २. दिशः। ३. व्याप्नोति स्म। ४. उपहारम् । ५. अध्रि । ६. मलोपरिभागम् । ७. प्रशस्तजपाकुसुमसमानरत्नमयविचित्रप्रसूनम् । ८. चन्द्रसंबन्धिनीम् । ९. भृशं विराजमानम् । १०.कुबेरः।