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चतुर्विंशतितमं पर्व
५८९ वर्णगन्धरसस्पर्शयोगिनः पुद्गला मताः । पूरणाद् गलनाच्चैव संप्राप्तान्वर्थनामकाः ॥१४५॥ स्कन्धाणुभेदतो द्वेधा पुद्गलस्य ग्यवस्थितिः । स्निग्धरक्षात्मकाणूनां संघातः स्कन्ध इष्यते ॥१४॥ द्वयणुकादिर्महास्कन्धपर्यन्तस्तस्य विस्तरः । छायातपतमोज्योत्स्नापयोदादिप्रभेदमाक ॥१४७॥ भणवः कार्यलिङ्गाः स्युः द्विस्पर्शाः परिमण्डलाः । एकवर्णरसा नित्याः स्युरनिस्याश्च पर्ययः ॥१४८॥ सूक्ष्मसूक्ष्मास्तथा सूक्ष्माः सूक्ष्मस्थूलात्मकाः परे । स्थूलसूक्ष्मारमकाः स्थूलाः स्थूलस्थूलाश्च पुद्गलाः१४९ सूक्ष्मसूक्ष्मोऽणुरेकः स्यादरश्योऽस्पृश्य एव च । सूक्ष्मास्ते कर्मणां स्कन्धाः प्रदेशानन्स्ययोगतः ॥१५०॥ शब्दः स्पों रसो गन्धः सूक्ष्मस्थूलो निगद्यते। अचाक्षुषत्वे सत्येषामिन्द्रियग्राह्यतेक्षणात् ॥१५॥ स्थूलसूक्ष्माः पुनशेयाश्छायाज्योत्स्नातपादयः । चाक्षुषत्वेऽप्यसंहार्य रूपस्वादविघातकाः ॥१५२॥
द्रवद्रव्यं जलादि स्यात् स्थूलभेदनिदर्शनम् । स्थूलस्थूलः पृथिव्यादिचः स्कन्धः प्रकीर्तितः ॥१५३॥ इसलिए पुद्गलद्रव्य मूर्तिक है और शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं ॥१४४॥ जिसमें वर्ण, गन्ध, रस
और स्पर्श पाया जाये उसे पुद्गल कहते हैं। पूरण और गलन रूप स्वभाव होनेसे पुद्गल यह नाम सार्थक है। भावार्थ-अन्य परमाणुओंका आकर मिल जाना पूरण कहलाता है और पहलेके परमाणुओंका बिछुड़ जाना गलन कहलाता है, पुद्गल स्कन्धोंमें पूरण और गलन ये दोनों ही अवस्थाएँ होती रहती हैं. इसलिए उनका पुदगल यह नाम सार्थक है॥१४५|| स्कन्ध और परमाणुके भेदसे पुद्गलको व्यवस्था दो प्रकारकी होती है। स्निग्ध और रूक्ष अणुओंका जो समुदाय है उसे स्कन्ध कहते हैं ॥१४६॥ उस पुद्गल द्रव्यका विस्तार दो परमाणुवाले द्वथगुक स्कन्धसे लेकर अनन्तानन्त परमाणुवाले महास्कन्ध तक होता है। छाया, आतप, अन्धकार, चाँदनी, मेघ आदि सब उसके भेद-प्रद हैं ॥१४७|| परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, वे इन्द्रियोंसे नहीं जाने जाते। घट-पट आदि परमाणुओंके कार्य हैं उन्हींसे उनका अनुमान किया जाता है। उनमें कोई भी दो अविरुद्ध स्पर्श रहते हैं, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रस रहता है। वे परमाणु गोल और नित्य होते हैं तथा पर्यायोंकी अपेक्षा अनित्य भी होते हैं ॥१४८।। ऊपर कहे हुए पुद्गल द्रव्यके छह भेद है-१ सूक्ष्मसूक्ष्म, २ सूक्ष्म, ३ सूक्ष्म स्थूल, ४ स्थूलसूक्ष्म, ५ स्थूल और ६ स्थूलस्थूल ॥१४९।। इनमें से एक अर्थात् स्कन्धसे पृथक् रहनेवाला परमाणु सूक्ष्मसूक्ष्म है क्योंकि न तो वह देखा जा सकता है और न उसका स्पर्श ही किया जा सकता है। कर्मोके स्कन्ध सूक्ष्म कहलाते हैं क्योंकि वे अनन्त प्रदेशोंके समुदायरूप होते हैं ।। १५० ॥ शब्द, स्पर्श, रस और गन्ध सूक्ष्मस्थूल कहलाते हैं क्योंकि यद्यपि इनका चक्षु इन्द्रियके द्वारा ज्ञान नहीं होता इसलिए ये सूक्ष्म हैं परन्तु अपनीअपनी कर्ण आदि इन्द्रियोंके द्वारा इनका ग्रहण हो जाता है इसलिए ये स्थूल भी कहलाते हैं ॥१५१।। छाया, चाँदनी और आतप आदि स्थूलसूक्ष्म कहलाते हैं क्योंकि चक्षु इन्द्रियके द्वारा दिखायी देनेके कारण ये स्थूल है परन्तु इनके रूपका संहरण नहीं हो सकता इसलिए विघातरहित होनेके कारण सूक्ष्म भी हैं ॥१५२॥ पानी आदि तरल पदार्थ जो कि पृथक् करनेपर भी मिल जाते हैं स्थूल भेदके उदाहरण हैं, अर्थात् दूध, पानी आदि पतले पदार्थ स्थूल कहलाते हैं और पृथिवी आदि स्कन्ध जो कि भेद किये जानेपर फिर न मिल सकें स्थूलस्थूल कहलाते हैं ॥१५३।। इस प्रकार ऊपर कहे हुए जीवादि पदार्थोके यथार्थ स्वरूपका
१. कर्मानुयोगाः । २. स्निग्धरुक्षद्वयस्पर्शवन्तः । ३. सूक्ष्माः । ४. कर्मणः स्कन्धा:-ल०। ५. अनन्तस्य योगात् । ६. येषां शन्नादीनामचाक्षुषत्वे सत्यपि शेषेन्द्रियग्राह्यताया ईक्षणात् । सूक्ष्मस्थूलत्वम् । ७. अनपहार्यस्वरूपत्वात् । . . .