Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 707
________________ पञ्चविंशतितम पर्व ६१७ उद्भवः' कारणं कर्ता पारगो भवतारकः । अगायो गहन गुह्यं परायः परमेश्वरः ॥१९॥ • अनन्तद्धिरमयर्द्धिरचिन्त्यद्धिः समग्रधीः ।प्राग्रयः प्राग्रहरोऽभ्यग्रः प्रत्यग्रोऽप्रयोऽग्रिमोऽग्रजः ॥१५॥ महातपा महातेजा महोदकों महोदयः । महायशा महापामा महासरवो महाशतिः ॥१५॥ महाधैर्यो महावीर्यो महासंन्महाबलः । महाशनिमहाज्योतिर्महाभूतिमहायुतिः ॥१५२॥ कहलाते हैं और स्वयं सबसे बड़े हैं इसलिए महान् ४४२ कहे जाते हैं ॥१५८॥ आप समस्त संसारसे बहुत ऊँचे उठे हुए हैं अथवा आपका जन्म संसारमें सबसे उत्कृष्ट है इसलिए उद्भव ४४३ कहलाते हैं, मोक्षके कारण होनेसे कारण ४४४ कहे जाते हैं, शुद्ध भावोंको करते हैं इसलिए कर्ता ४४५ कहलाते हैं, संसाररूपी समुद्रके पारको प्राप्त होनेसे पारग ४४६ माने जाते हैं, आप भव्यजीवोंको संसाररूपी समुद्रसे तारनेवाले हैं इसलिए भवतारक ४४७ कहलाते हैं, आप किसीके भी द्वारा अवगाहन करने योग्य नहीं है अर्थात् आपके गुणोंको कोई नहीं समझ सकता है इसलिए आप अगाध ४४८ कहे जाते हैं, आपका स्वरूप अतिशय गम्भीर या कठिन है इसलिए गहन ४४६ कहलाते हैं, गुप्तरूप होनेसे गुह्य ४५० हैं, सबसे उत्कृष्ट होनेके कारण परायं ४५१ हैं और सबसे अधिक समर्थ होनेके कारण परमेश्वर ४५२ माने जाते हैं ॥१४९|| आपकी ऋद्धियाँ अनन्त, अमेय और अचिन्त्य हैं, इसलिए आप अनन्तर्द्धि ४५३, अमेयर्द्धि ४५४ और अचिन्त्यर्द्धि ४५५ कहलाते हैं, आपकी बुद्धि पूर्ण अवस्थाको प्राप्त हुई है इसलिए आप समग्रधी४५६ हैं, सबमें मुख्य होनेसे प्राग्य ४५७ हैं, प्रत्येक मांगलिक कायों में सर्वप्रथम आपका स्मरण किया जाता है इसलिए प्राग्रहर ४५८ हैं, लोकका अग्रभाग प्राप्त करने के सम्मुख हैं इसलिए अभ्यग्र ४५६ हैं, आप समस्त लोगोंसे विलक्षण-नूतन हैं इसलिए प्रत्यम ४६० कहलाते हैं, सबके स्वामी हैं इसलिए अग्यू ४६१ कहे जाते हैं, सबके अग्रेसर होनेसे अप्रिम ४६२ कहलाते हैं और सबसे ज्येष्ठ होनेके कारण अग्रज ४६३ कहे जाते हैं ॥१५०।। आपने बडा कठिन तपश्चरण किया है इसलिए महातपा ४६४ कहलाते हैं, आपका बड़ा भारी तेज चारों ओर फैल रहा है. इसलिए आप महातेजा ४६५ हैं, आपकी तपश्चर्याका उवर्क अर्थात् फल बड़ा भारी है. इसलिए आप महोदर्क ४६६ कहलाते हैं, आपका ऐश्वर्य बड़ा भारी है इसलिए आप महोदय ४६७ माने जाते हैं, आपका बड़ा भारी यश चारों ओर फैल रहा है इसलिए आप महायशा ४६८ माने जाते हैं, आप विशाल तेज-प्रताप अथवा ज्ञानके धारक हैं इसलिए महाधामा ४६६ कहलाते हैं, आपकी शक्ति अपार हे इसलिए विद्वान् लोग आपको महासत्त्व ४७० कहते हैं, और आपका धीरज महान् है इसलिए आप महाधृति ४७१ कहलाते हैं ।।१५१।। आप कभी अधीर नहीं होते इसलिए महाधैर्य ४७२ कहे जाते हैं, अनन्त वीर्यके धारक होनेसे महावीर्य ४७३ कहलाते हैं, समवसरणरूप अद्वितीय विभूतिको धारण करनेसे महासम्पत् ४७४ माने जाते हैं, अत्यन्त बलवान होनेसे महाबल ४७५ कहलाते हैं, बड़ी भारी शक्तिके धारक होनेसे महाशक्ति ४७६ माने जाते हैं, अतिशय कान्ति अथवा केवलज्ञानसे सहित होनेके कारण महाज्योति ४७७ कहलाते हैं, आपका वैभव अपार है इसलिए आपको महाभूति ४७८ कहते हैं और आपके शरीरकी युति बड़ी भारी है इसलिए आप महाद्युति ४७९ १. उद्गतसंसारः । २. दुःप्रवेश्यः। ३. रहस्यम् । ४. प्राग्यायग्रजपर्यन्ताः श्रेष्ठावाचकाः । ५. महादय:-ला

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