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आदिपुराणम्
'पुरस्तपुरुषत्वेन विमुक्तिपदभागिने । नमस्तत्पुरुषावस्थां भाविनीं तेऽच विभ्रते ॥८०॥ ज्ञानावरणनिर्हा साक्षमस्तेऽनन्तचक्षुषे । दर्शनावरणोच्छेदाश्रमस्ते' विश्वरश्वने ॥८१॥ नमो दर्शनमोहने क्षायिकामलदृष्टये । नमश्चारित्रमोहघ्ने विरागाय महौजसे ॥८२॥ नमस्तेऽनन्तवीर्याय नमोऽनन्तसुखात्मने । नमस्तेऽनन्तलोकाय लोकालोकावलोकिने ॥८३॥ नमस्तेऽनन्तदानाय नमस्तेऽनन्तलब्धये । नमस्तेऽनन्तभोगाय नमोऽनन्तोपभोग ते ॥ ८४ ॥ नमः परमयोगाय नमस्तुभ्यमयोनये । नमः परमपूताय नमस्ते परमर्षये ॥ ८५||-- नमः परमविद्याय नमः परमतच्छिदे । नमः परमतत्वाय नमस्ते परमात्मने ॥ ८६ ॥ नमः परमरूपाय नमः परमतेजसे । नमः परममार्गाय" नमस्ते परमेष्ठिने 112911 परमं भेजुपे धाम परमज्योतिषे नमः । नमः पारतमः प्राप्तधाम्ने परतरात्मने ॥८८॥ नमः क्षीणकलङ्काय क्षीणबन्ध नमोऽस्तु ते । नमस्ते क्षीणमोहाय क्षीणदोषाय ते नमः ||८९ ||
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अब आगे शुद्ध आत्मस्वरूप के द्वारा मोक्षस्थानको प्राप्त होंगे, इसलिए आगामी कालमें प्राप्त होनेवाली सिद्ध अवस्थाको धारण करनेवाले आपके लिए मेरा आज ही नमस्कार हो ॥८०॥ ज्ञानावरण कर्मका नाश होनेसे जो अनन्तचक्षु अर्थात् अनन्तज्ञानी कहलाते हैं ऐसे आपके लिए नमस्कार हो और दर्शनावरण कर्मका विनाश हो जानेसे जो विश्वदृश्वा अर्थात् समस्त संसारको देखनेवाले कहलाते हैं ऐसे आपके लिए नमस्कार हो ||८१|| हे भगवन्, आप दर्शनमोहनीय कर्मको नष्ट करनेवाले तथा निर्मल क्षायिकसम्यग्दर्शनको धारण करनेवाले हैं। इसलिए आपको नमस्कार हो इसी प्रकार आप चारित्रमोहनीय कर्मको नष्ट करनेवाले वीतराग और अतिशय तेजस्वी हैं इसलिए आपको नमस्कार हो || ८२|| आप अनन्तवीर्यको धारण करनेवाले हैं इसलिए आपको नमस्कार हो, आप अनन्तसुखरूप हैं इसलिए आपको नमस्कार हो, आप अनन्तप्रकाश से सहित तथा लोक और अलोकको देखनेवाले हैं इसलिए आपको नमस्कार हो ||८३ || अनन्तदानको धारण करनेवाले आपके लिए नमस्कार हो, अनन्तलाभको धारण करनेवाले आपके लिए नमस्कार हो, अनन्तभोगको धारण करनेवाले आपके लिए नमस्कार हो, और अनन्त उपभोगको धारण करनेवाले आपके लिए नमस्कार हो ||८४ ॥ हे भगवन्, आप परम ध्यानी हैं इसलिए आपको नमस्कार हो, आप अयोनि अर्थात् योनिभ्रमणसे रहित हैं इसलिए आपको नमस्कार हो, आप अत्यन्त पवित्र हैं इसलिए आपको नमस्कार हो और आप परमऋषि हैं इसलिए आपको नमस्कार हो || ८५|| आप परमविद्या अर्थात् केवलज्ञानको धारण करनेवाले हैं, अन्य सब मतोंका खण्डन करनेवाले हैं, परमतत्त्वस्वरूप हैं और परमात्मा हैं इसलिए आपको नमस्कार हो ||८६|| आप उत्कृष्ट रूपको धारण करनेवाले हैं, परम तेजस्वी हैं, उत्कृष्ट मार्गस्वरूप हैं और परमेष्ठी हैं इसलिए आपको नमस्कार हो ||८७|| आप सर्वोत्कृष्ट मोक्षस्थानकी सेवा करनेवाले हैं, परम ज्योतिःस्वरूप हैं, आपका ज्ञानरूपी तेज अन्धकारसे परे है और आप सर्वोत्कृष्ट हैं इसलिए आपको नमस्कार हो ॥८८॥ आप कर्मरूपी कलंकसे रहित हैं इसलिए आपको नमस्कार हो, आपका कर्मबन्धन क्षीण हो गया है इसलिए आपको नमस्कार हो, आपका मोहकर्म नष्ट हो गया है इसलिए आपको नमस्कार हो
१. अग्रे । २. शुद्धात्मस्वरूपत्वेन । ३. नमस्तात्-ल० । ४. विनाशात् । ५. अनन्तज्ञानाय । ६. विनाशात् । ७.सकलदर्शने । ८. दर्शन मोहने इति समर्थनरूपमेवमुत्तरत्रापि यथायोग्यं योज्यम् । ९. अनन्तलाभाय । १०. केवलज्ञानाय । ११. रत्नत्रय । १२. परमपदस्थिताय । १३. तमसः पारं प्राप्ततेजसे । १४. उत्कृष्टस्वरूपाय । १५. क्षीणदोषास्तु ते नमः -ल० ।