Book Title: Adi Puran Part 1
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 702
________________ ६१२ मादिपुराणम् मन्त्रविन्मन्त्रकृन्मन्त्री मन्त्रमूर्तिरनन्तगः । स्वतन्त्रस्तन्त्रकृत् स्वन्तः कृतान्तान्तः कृतान्तकृत् ॥१२९॥ कृती कृतार्थः सस्कृत्यः कृतकृत्यः कृतक्रतुः । निरयो मृत्युंजयोऽमृत्युरमृतारमाऽमृतोद्भवः ॥१३०॥ ब्रह्मनिष्ठः परं ब्रह्म ब्रह्मारमा ब्रह्मसंभवः । महाब्रह्मपतिनोई महाब्रह्मपदेश्वरः ॥१३॥ सुप्रसन्नः प्रसन्नारमा ज्ञानधर्ममदप्रभुः । प्रशमारमा प्रशान्तारमा पुराणपुरुषोत्तमः १३२॥ इति स्थविष्ठादिशतम् । महाप्रभ २६७ कहलाते हैं ।।१२।। मन्त्रके जाननेवाले हैं इसलिए मन्त्रवित् २६८ कहे जाते हैं, अनेक मन्त्रोंके करनेवाले हैं इसलिए मन्त्रकत २६९ कहलाते हैं, मन्त्रोंसे युक्त हैं इसलिए मन्त्री २७० कहलाते हैं, मन्त्ररूप हैं इसलिए मन्त्रमुर्ति २७१ कहे जाते हैं, अनन्त पदार्थोंको जानते हैं इसलिए अनन्तग २७२ कहलाते हैं, कर्मबन्धनसे रहित होनेके कारण स्वतन्त्र २७३ कहलाते हैं, शास्त्रोंके करनेवाले हैं इसलिए तन्त्रकृत् २७४ कहे जाते हैं, आपका अन्तःकरण उत्तम है इसलिए स्वन्तः २७५ कहलाते हैं, आपने कृतान्त अर्थात् यमराज मृत्युका अन्त कर दिया है इसलिए लोग आपको कृतान्तान्त २७६ कहते हैं और आप कृतान्त अर्थात् आगमकी रचना करनेवाले हैं इसलिए कृतान्तकृत २७७ कहे जाते हैं॥१२९॥ आप अत्यन्त कुशल अथवा पुण्यवान हैं इसलिए कृती २७८ कहलाते हैं, आपने आत्माके सब पुरुषार्थ सिद्ध कर चुके हैं इसलिए कृतार्थ २७९ हैं, संसारके समस्त जीवोंके द्वारा सत्कार करनेके योग्य हैं इसलिए सत्कृत्य २८० हैं, समस्त कार्य कर चुके हैं इसलिए कृतकृत्य २८१ हैं, आप शान अथवा तपश्चरणरूपी यज्ञ कर चुके हैं इसलिए कृतक्रतु २८२ कहलाते हैं, सदा विद्यमान रहनेसे नित्य २८३ हैं, मृत्युको जीतनेसे मृत्युंजय २८४ हैं, मृत्युसे रहित होनेके कारण अमृत्यु २८५ हैं, आपका आत्मा अमृतके समान सदा शान्तिदायक है इसलिए अमृतात्मा २८६ हैं, और अमृत अर्थात् मोक्षमें आपकी उत्कृष्ट उत्पत्ति होनेवाली है इसलिए आप अमृतोद्भव २८७ कहलाते हैं ॥१३०।। आप सदा शुद्ध आत्मस्वरूपमें लीन रहते हैं इसलिए ब्रह्मनिष्ठ २८८ कहलाते हैं, उत्कृष्ट ब्रह्मरूप हैं इसलिए परब्रह्म २८९ कहे जाते हैं, ब्रह्म अर्थात् ज्ञान अथवा ब्रह्मचर्य ही आपका स्वरूप है इसलिए आप ब्रह्मात्मा २९० कहलाते हैं, आपको स्वयं शुद्धात्मस्वरूपकी प्राप्ति हुई है तथा आपसे दूसरोंको होती है इसलिए आप ब्रह्मसम्भव २९१ कहलाते हैं, गणधर आदि महाब्रह्माओंके भी अधिपति हैं इसलिए आप महाब्रह्मपति २९२ कहे जाते हैं, आप केवल ज्ञानके स्वामी हैं इसलिए ब्रह्मेट २९३ कहलाते हैं, महाब्रह्मपद अर्थात् आर्हन्त्य और सिद्धत्व अवस्थाके ईश्वर हैं इसलिए महाब्रह्मपदेश्वर २९४ कहे जाते हैं ॥१३१॥ आप सदा प्रसन्न रहते हैं इसलिए सुप्रसन्न २९५ कहे जाते हैं, आपकी आत्मा कषायोंका अभाव हो जानेके कारण सदा प्रसम्म रहती है इसलिए लोग आपको प्रसन्नात्मा २९६ कहते हैं, आप केवलज्ञान, उत्तमक्षमा आदि धर्म और इन्द्रियनिग्रहरूप दमके स्वामी हैं इसलिए ज्ञानधर्मदमप्रभु २९७ कहे जाते हैं, आपकी आत्मा उत्कृष्ट शान्तिसे सहित हैं इसलिए आप प्रशमात्मा २९८ कहलाते हैं, आपकी आत्मा कषायोंका अभाव हो जानेसे अतिशय शान्त हो चुकी है इसलिए आप प्रशान्तात्मा २९९ कहलाते हैं, और शलाका पुरुषों में सबसे उत्कृष्ट हैं इसलिए विद्वान् लोग आपको पुराणपुरुषोत्तम ३०० १. अनन्तज्ञानी । -रनन्तरः इ० । २. आगमकृत् । ३. सुखान्तः । ४. यमान्तक. । ५. सिद्धान्तकर्ता। ६. अविनश्वरोत्पत्तिः । ७. आत्मनिष्ठः । ८. ज्ञानेश्वरः । ...

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