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आदिपुराणम्
जलधरमालावृत्तम् धारा ते घुसम पतारेऽपप्त साकेशानां पदविमभेषां रुध्वा : स्वर्गादारात् कनकमबों वा सृष्टिं तम्बानासौ भुवनकुटीरस्यान्तः ॥१३॥ रैचारैरावतकरदीर्घा रेजे रे जेतारं भजत जना इत्येवम् । मूर्तीभूता तव जिनलक्ष्मी के संबोध वा सपदि समातन्बाना ॥३८॥ स्वसंभूतो सुरकरमुक्ता ब्योम्नि पोपी वृष्टिः सुरमितरा संरेजे। मत्तालीनां कलहतमातन्वाना नाकसीणां नयनततिर्वा यान्ती ॥१३॥ मेरोः शुओं समजनि दुग्धाम्मोधेः स्वच्छाम्मोमिः कनकवटैगम्भीरैः । माहात्म्यं ते जगति वितन्वन्भावि स्वोरे यैर्गुरुरमिषेकः पूतः ॥१४॥ त्वां निष्कान्तौ मणिमयमानारूढ़ वोढुं सज्जा वयमिति नैतचित्रम् । भानिर्वाणासियतममी गीर्वाणाः "किंकुर्वाणा ननु जिन कल्याणे ते ॥११॥ स्वं धातासि त्रिभुवनमायस्वे" कैवल्या स्फुटमुदितेऽस्मिन्दीप्रै'। तस्मादेवं"जननजरातकारि स्वां नमो गुणनिधिमप्रय लोके ॥१२॥
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सूर्यके सम्मुख जा सकता है ? अर्थात् नहीं जा सकता। हे नाथ, आप इस जगतरूपी घरमें अपने देदीप्यमान विशाल तेजसे प्रदीपके समान आचरण करते हैं ॥१३६॥ हे भगवन, आपके स्वर्गसे अवतार लेनेके समय (गर्भकल्याणकके समय) रत्नोंकी धारा समस्त आकाशको रोकती हुई स्वर्गलोकसे शीघ्र ही इस जगतरूपी कुटीके भीतर पड़ रही थी और वह ऐसी जान पड़ती थी मानो समस्त सृष्टिको सुवर्णमय ही कर रही हो ॥१३७। हे जिनेन्द्र, ऐरावत हाथीकी सड़के समान लम्बायमान वह रत्नोंकी धारा ऐसी सुशोभित हो रही थी मानो आपकी लक्ष्मी हो मर्ति धारण कर लोकमें शीघ्र ही ऐसा सम्बोध फैला रही हो कि अरे मनष्यो.कर्मरूपी. शत्रुओंको जीतनेवाले इन जिनेन्द्र भगवानकी सेवा करो ॥१३८॥ हे भगवन् , आपके जन्मके समय आकाशसे देवोंके हाथोंसे छोड़ी गयी अत्यन्त सुगन्धित और मदोन्मत्त भ्रमरोंकी मधुर गुखारको चारों बोर फैलाती हुई जो फूलोंकी दृष्टि हुई थी वह ऐसी सुशोभित हो रही थी मानो देवांगनाओंके नेत्रोंकी पंक्तिही आ रही हो ॥१३९॥ हे स्वामिन् , इन्द्रोंने मेरुपर्वतके शिखरपर क्षीरसागरके स्वच्छ जलसे भरे हुए सुवर्णमय गम्भीर (गहरे) घड़ोंसे जगसमें
आपका माहात्म्य फैलानेवाला आपका बड़ा भारी पवित्र अभिषेक किया था ॥१४॥हे जिन, तपकल्याणकके समय मणिमयी पालकीपर आरूढ़ हुए आपको ले जानेके लिए हम लोग तत्पर हुए थे इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है क्योंकि निर्वाण पर्यन्त आपके सभी कल्याणकोंमें ये देख लोग किंकरोंके समान उपस्थित रहते हैं ॥१४१॥ हे भगवन् , इस देदीप्यमान केवलज्ञानरूपी सूर्यका उदय होनेपर यह स्पष्ट प्रकट हो गया है कि आप ही धाता अर्थात् मोक्षमार्गकी सृष्टि करनेवाले हैं और आप ही तीनों लोकके स्वामी हैं । इसके सिवाय आप जन्मजरारूपी रोगोंका अन्त करनेवाले हैं, गुणोंके खजाने हैं और लोकमें सबसे श्रेष्ठ हैं इसलिए हे देव, आपको हम
१. स्वर्गावतरणे । २. पतति स्म । ३. खाङ्गणम् । ४. अहो । ५. जयशीलम् । ६. व्योम्नः क. ७. स्वामिन् ल०, ८०, इ० । ८. स्वर्लोकमुन्यैः । ९. सन्नद्धाः । १०. किङ्कराः । ११. इदानीम् । १२. दीप्ते ल• । १३. जननजरान्तकातीत ६०, इ० । १४. भृशं पुनःपुनर्वा नमामः ।