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एकोनविंशं पर्व
छन्दः (?) गङ्गासिन्धू हृदयमिवास्य स्फुटमद्रेः भिस्वा यातौ रसिकतया तटभागम् । स्पृष्ट्वा स्पृष्ट्वा पवनविधूतोमिक स्वैमचं सीणां ननु महतामप्युरु चेतः ॥१७॥ सानूनस्य द्रुतमुपयान्ती धनसारात् सारासारा जलदघटेयं समसारान् । तारातारा' धरणिधरस्य स्वरसारा साराद् व्यक्ति मुहुरुपयाति स्तनितेन ॥१७५॥
___ मत्तमयूरम् सारासारा सारसमाला सरसीयं सारं कूजत्यत्र बनान्ते सुरकान्ते । सारासारा नीरदमाला नमसीयं तारं मन्न" निस्वनतीतः स्वनसारा ॥१७॥ निस्वास्याद्रेः सारमणोई तटमागं सार" तार चारुतराग रमणीयम् । संमोगान्ते गायति कान्तरमयन्ती सा रन्तारं चारुतरागं रमणीयम् ॥१७॥
पुष्पिताना इह खचरवधूनितम्बदेशे ललितलतालयसंश्रिताः सहेशाः । प्रणयपरवशाः समिद्धदीप्तीहियमुपयान्ति विलोक्य सिद्धनार्यः ॥१७॥
ये गंगा और सिन्धु नदियाँ रसिक अर्थात् जलसहित और पक्षमें श्रृंगार रससे युक्त होनेके कारण इस पर्वतके हृदयके समान तटको विदीर्ण कर तथा वायुके द्वारा हिलती हुई तरंगोंरूपी अपने हाथोंसे बार-बार स्पर्श कर चली जा रही हैं सो ठीकही है क्योंकि बडे परुषोंका बड़ा भारी हदय भी सियोंके द्वारा भेदन किया जा सकता है ।।१७४। जिसकी जल-वर्षा बहुत ही उत्कृष्ट है, जो मुक्ताफल अथवा नक्षत्रों के समान अतिशय निर्मल है और जिसकी गर्जना भी उत्कृष्ट है ऐसी यह मेघोंकी घटा, अधिक मजबूत तथा जिसके सब स्थिर अंश समान हैं ऐसे इस विजया पर्वतके शिखरोंके समीप यद्यपि बार-बार और शीघ्र-शीघ्र आती है तथापि गर्जनाके द्वारा ही प्रकट होती है। भावार्थ-इस विजयाध पर्वतके सफेद शिखरोंके समीप छाये हुए सफेद-सफेद बादल जबतक गरजते नहीं हैं तबतक दृष्टिगोचर नहीं होते ॥१७५।। इधर देवोंसे मनोहर बनके मध्यभागमें तालाबके बीच इधर-उधर श्रेष्ठ गमन करनेवाली यह सारस पक्षियोंकी पंक्ति उच्च स्वरसे शब्द कर रही है और इधर आकाशमें जोरसे बरसती और शब्द करती हुई यह मेघोंको माला उच्च और गम्भीर स्वरसे गरज रही है ॥ १७६ ।। रमण करनेके योग्य, श्रेष्ठ निर्मल और सुन्दर शरीरवाले अपने पतिको प्रसन्न करनेवाली कोई स्त्री संभोगके बाद इस पर्वतके श्रेष्ठमणियोंसे देदीप्यमान तटभागपर बैठकर जिसके अवान्तर अंग अतिशय सुन्दर हैं, जो श्रेष्ठ हैं, ऊँचे स्वरसे सहित हैं और बहुत मनोहर हैं ऐसा गाना गा रही है ।। १७७॥ इधर इस पर्वतके मध्यभागपर सुन्दर लतागृहोंमें बैठी हुई पतिसहित प्रेमके परवश और देदीप्यमान कान्तिकी धारक विद्याधरियोंको देखकर सिद्ध
१. आगच्छताम् । -यातो प०।-याती म०, ल० । २. जलरूपतया रागितया च । ३. अधिकबलात् । ४. उत्कृष्टवेगवद्वर्षति । ५. समानस्थिरावयवान् । ६. तारा या आयामवती तारा । निर्मला तारा । तारा इति पक्षे अतिनिर्मला स्वरसाराशब्देनोत्कृष्टा । ७. गमनागमनवती। ८. अमरैमनोहरे । ९. अधिकोत्कृष्टा वेगवडर्षवती वा । १० उच्च यथा भवति तथा । ११. गम्भीरम् । १२. निर्घोषोत्कृष्टा। १३. उत्कृष्टरलप्रवृद्धम् । १४. स्थिरम् । १५. गभीरम् उज्ज्वलं वा। १६. कान्ततरवृक्षम् । १७. प्रियतमम् । १८. रमणशीलम् । १९. अभीतरागम् व्यक्तरागम् । २०. स्त्री। २१. प्रियतमसहिताः। २२. देवभेदस्त्रियः ।