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आदिपुराणम् कचिद् पाप्यः कवियः कश्चित् सैकत्रमण्डलम् । कवचित्समागृहादीमि बभुरत्र बनान्तरे ॥२५॥ बनवोपोमिमामन्तर्वोऽसौ बनवेदिका । कलधौतमयी तुजचतुर्गोपुरसंगता ॥२५॥ तत्र तोरणमा त्यसंपदः पूर्ववर्णिताः । गोपुराणि च पूर्वोकमानोन्मानान्यमुत्र व ॥२५५॥ प्रतोली तामथोल्लभ्य परतः परिवीण्यभूत् । प्रासादपक्सिविविधा निर्मिता सुरशिल्पिमिः ॥२५॥ हिरण्मयमहास्तम्मा वनाधिहानवधनाः । चन्द्रकान्तभिलाकातमित्तयो रस्नचित्रिताः ॥२५७॥.. सहा द्वितकाः केचित् कवि त्रिचतुस्तकाः । चन्द्रशालायुजः केचिद् बलमिच्छन्दशोमिनः ॥२५॥ प्रासादास्ते स्म राजन्ते स्वप्रभामग्नमूर्तयः । नमोलिहानाः कूटानज्योत्स्नयेव विनिर्मिताः ॥२५९॥ कूटागारसमागेहप्रेक्षाशालाः कचिद् विभुः । सशय्याः "सासनास्तुजसोपानाः श्वेतिताम्बराः"॥२०॥ तेषु देवाः सगन्धर्वाः सिदा विद्याधराः सदा । पनगाः किन्नरः साईमरमन्त कृतादराः ॥२६॥ केचिद् गानेषु धादित्रवादने केविदुयताः । संगोतनृत्यगोष्ठीमिविभुमाराधयन्नमी ॥२६॥
कि ये कल्पवृक्ष अभिलषित फलके देनेवाले थे ॥२५२|| उन कल्पवृक्षोंके वनोंमें कहीं बावड़ियाँ, कहीं नदियाँ, कहीं बालूके ढेर और कहीं सभागृह आदि सुशोभित हो रहे थे ॥२५३।। उन कल्पवृक्षोंकी वनवीथीको भीतरकी ओर चारों तरफसे बनवेदिका घेरे हुए थी, वह वनवेदिका सुवर्णकी बनी हुई थी, और चार गोपुर-द्वारोंसे सहित थी ।२५४॥ उन गोपुर-द्वारोंमें तोरण और मंगलद्रव्यरूप सम्पदाओंका वर्णन पहले ही किया जा चुका है तथा उनकी लम्बाई चौड़ाई आदि भी पहलेके समान ही जानना चाहिए ।।२५५।। उन गोपुर-द्वारोंके आगे भीतरकी ओर बड़ा लम्बा-चौड़ा रास्ता था और उसके दोनों ओर देवरूप कारीगरोंके द्वारा बनायी हुई अनेक प्रकारके मकानोंकी पंक्तियाँ थीं ॥२५६॥ जिनके बड़े-बड़े खम्भे सुवर्णके बने हुए हैं, जिनके अधिष्ठान-बन्धन अर्थात् नींव वनमयी हैं, जिनकी सुन्दर दीवालें चन्द्रकान्तमणियोंकी बनी हुई हैं और जो अनेक प्रकारके रत्नोंसे चित्र-विचित्र हो रहे हैं ऐसे वे सुन्दर मकान कितने ही दो खण्डके थे, कितने ही तीन खण्डके और कितने ही चार मण्डके थे, कितने ही चन्द्रशालाओं (मकानोंके ऊपरी भाग ) से सहित थे तथा कितने ही अट्टालिका आदिसे सुशोभित थे ।।२५७२५८॥ जो अपनी ही प्रभामें डूबे हुए हैं ऐसे वे मकान अपने शिखरोंके अग्रभागसे आकाशका स्पर्श करते हुए ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो चाँदनीसे ही बने हो ॥२५९। कहींपर कूटागार (अनेक शिखरोंवाले अथवा मूला देनेवाले मकान ), कहींपर सभागृह और कहींपर प्रेक्षागृह (नाट्यशाला अथवा अजायबघर) सुशोभित हो रहे थे, उन फूटागार आदिमें शय्याएं बिछी हुई थीं, आसन रखे हुए थे, ऊँची-ऊँची सीढ़ियाँ लगी हुई थी और उन सबने अपनी कान्तिसे आकाशको सफेद-सफेद कर दिया था IR६०।। उन मकानों में देव, गन्धर्व, सिद्ध (एक प्रकारके देव), विद्याधर, नागकुमार और किन्नर जातिके देव बड़े आदरके साथ सदा क्रीड़ा किया करते थे ॥२६॥ उन देवों में कितने ही देख तो गानेमें उद्यत थे और कितने ही बाजा बजानेमें तत्पर थे इस प्रकार वे देव संगीत और
१. सुवर्ण । २. मगल । ३. गोपुरम् । ४. विध्याः परितः । ५. बोध्यभात् ल० । ६. द्विभूमिकाः। ७. शिरोगृह । 'बन्द्रशाला शिरोगृहम्' इत्यभिधानात् । ८. बहुशिखरयुक्तगृहम् । ९. नाट्यशालाः । १०.सपीठाः । ११. धवलिताकाशाः । १२. देवभेदाः । १३. वाचताडने । ।