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नापिनुराग
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पृष्ठ करना। दाता के गुण तथा पात्रादि का
प्रयोविश पर्व वर्णन । भरत के द्वारा राजा सोमप्रभ तथा
तीन मेखलाओं से सुशोभित पीठ के ऊपर श्रेयांस आदि का अपूर्व सत्कार हुआ ४४५-४५६ |
गन्धकुटी का वर्णन
५४०-५४२ भगवान् के तपश्चरण का वर्णन, जिसमें
गन्धकुटी के मध्य में सिंहासन का वर्णन ५४२ पंचमहाव्रत, उनकी भावनाएँ, २८ मूल गुण और १२ तपों का वर्णन । भगवान् के
सिंहासन पर चार अंगुल के अन्तर से भगवान्
आदिनाथ विराजमान थे। इन्द्र आदि फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन केवल
उनकी उपासना कर रहे थे और आकाश ज्ञान की उत्पत्ति का वर्णन
४५६-४५३
से देव गण पुष्पवृष्टि कर रहे थे। उसका एकविंश पर्व वर्णन
५४३-५४४ श्रेणिक के प्रश्नानुसार गौतमस्वामी के द्वारा
अशोकवृक्ष का वर्णन
५४४ ध्यान का विस्तार के साथ वर्णन ४७४-४७७
क्षत्रत्रय का वर्णन
५४४-५४५ आर्त, रौद्र, धर्म्य और शुक्ल के भेद से चमर प्रातिहार्य का वर्णन
५४५-५४७ उसके चार भेद । प्रथम आर्तध्यान का
देवदुन्दुभि का वर्णन
५४७-५४८ अन्तर्भदों सहित वर्णन
४७७-४७८ | भामण्डल का वर्णन
५४८ रौद्र ध्यान का वर्णन ४७८.४७६ दिव्यध्वनि का वर्णन
५४८-५४६ धर्म्यध्यान का वर्णन, उसके योग्य स्थान, देवों ने बड़े वैभव के साथ समवसरण भूमि
आसन, अन्तर्भेद आदि का विस्तृत विवेचन ४६२-४६७, में तीन प्रदक्षिणा देकर समवसरण में शुक्लध्यान का विस्तृत वर्णन, उसके भेद, प्रवेश किया। विविध छन्दों द्वारा शाल
स्वामी तथा फल आदि का विवेचन ४६७ तथा गोपुर आदि का वर्णन . ५५०-५५२ योग का वर्णन, प्रत्याहारादि का स्वरूप, देवेन्द्र ने समवसरण में पहुंचकर श्री जिनेन्द्रअमने योग्य बीज, उनका फल ४९८-५००
देव के दर्शन किये। श्री आद्यजिनेन्द्र का जीव में नित्यानित्यत्वादि का वर्णन
वर्णन, अन्य इन्द्रों ने भी उनके चरणों में नमस्कार किया
५५३.५५५ द्वाविंश पर्व
इन्द्र ने अष्टद्रव्य से आद्यजिनेन्द्र का पूजन घाति चतुष्क का क्षय होने से भगवान् वृषभ
किया
५५५-५५६ देव को केवलज्ञान का उत्पन्न होना ५०६-५०७ इन्द्रों द्वारा भगवज्जिनेन्द्र का स्तवन ५५६-५७२ इन्द्र का अनेक देवों के साथ ज्ञान-कल्याणक
चतुर्दिश पर्व का उत्सव करने के लिए आना
५०७
आद्य मंगल देवों के परिवार का वर्णन
५०७-५०६
भगवान की कैवल्योत्पत्ति और चक्ररत्न की ऐरावत हाथी का वर्णन
५०६-५११
उत्पत्ति की एक साथ सूचना मिलने पर मार्ग में देवांगनाओं के नृत्यादि का वर्णन ५१२-५१३ कैवल्यपूजा के लिए समवसरण में जाना और देवों ने आकाश में स्थित होकर
पूजा के अन्त में उनके एक सौ आठ नामों भगवान् का समवसरण देखा
द्वारा भगवान् का स्तवन करना ५७३-५७७ ममवसरण का वर्णन
५१४-५३६ | भरत के द्वारा स्तुति कर चुकने पर भगवान से