________________
तृतीयं पव सोऽक्रीडयच्चन्द्रमसामिचन्द्रश्चन्द्रामकस्तैः कियदप्यजीवीत् । महत्सुरोऽभूच्चिरजीवनात्तै: प्रसेनजिद्गर्ममलापहारात् ॥२३॥ नाभिश्च तनामिनिकर्तनेन प्रजासमाश्वासनहेतुरासीत् । सोऽजोजनत् तं वृषमं महात्मा सोऽप्यप्रसूनुं मनुमादिराजम् ॥२३७॥
वसन्ततिलका इत्थं "युगादिपुरुषोद्भवमादरेण तस्मिन्निरूपयति गौतमसद्गणेन्द्रे । सा साधुसंसदखिला सह मागधेन राज्ञा प्रमोदमचिरात् परमाजगाम ॥२३८॥
__मालिनी सकलमनुनियोगात् कालभेदं च षोढा परिषदि 'जिनसेनाचार्यमुल्यो निरूप्य । पुनरथ पुरुनाम्नः पुण्यमार्च पुराणं कथयितुमुदियाय श्रेणिकाकर्णयेति ॥२३९॥ इत्याचे भगवज्जिनसेनाचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे.
___पीठिकावर्णनं नाम तृतीय पर्व ॥३॥
आदिपर सवारी करनेका उपदेश दिया था सबसे अग्रसर रहनेवाले चक्षुष्मान्ने पुत्रके मुख देखनेकी परम्परा चलायी थी, यशस्वान्का सब कोई यशोगान करते थे, अमिचन्द्रने बालकोंकी चन्द्रमाके साथ क्रीड़ा करानेका उपदेश दिया था, चन्द्राभके समय माता-पिता अपने पुत्रोंके साथ कुछ दिनों तक जीवित रहने लगे थे, मरुदेवके समय माता-पिता अपने पुत्रोंके साथ बहुत दिनों तक जीवित रहने लगे थे, प्रसेनजित्ने गर्भके ऊपर रहनेवाले जरायुरूपी मलके दानेका उपदेश दिया था और नाभिराजने नाभि-नाल काटनेका उपदेश देकर प्रजाको आश्वासन दिया था। उन नाभिराजने वृषभदेवको उत्पन्न किया था ॥२३३-२३७) इस प्रकार जब गौतम गणधरने बड़े आदरके साथ युगके आदिपुरुषों-कुलकरोंकी उत्पत्तिका कथन किया तब वह मुनियोंकी समस्त सभा राजा श्रेणिकके साथ परम आनन्दको प्राप्त हुई ।।२३८।। उस समय महावीर स्वामीकी शिष्यपरम्पराके सर्वश्रेष्ठ आचार्य गौतम स्वामी कालके छह भेदोंका तथा कुलकरोंके कार्योंका वर्णन कर भगवान आदिनाथका पवित्र पुराण कहनेके लिए तत्पर हुए और मगधेश्वरसे बोले कि हे श्रेणिक, सुनो ।२३९॥ इस प्रकार पार्ष नामसे प्रसिब, भगवजिनसेनाचार्यप्रणीत त्रिषष्टि लक्षण महापुराण
संग्रहमें पीठिकावर्णन नामक तृतीय पर्व समाप्त हुभा ॥३॥
१. -दप्यजीवत् म० । २. मरुद्देवः । ३. आश्वासनं [ सान्स्वनम् ] । ४. भरतेशम् । ५. मनूत्पत्तिम् । ६. जिनस्य सेना जिनसेना जिनसेनाया आचार्यः जिनसेनाचार्यस्तेषु मुख्यो गौतमगणधर इत्यर्थः । ७. उचुक्तो बभूव ।