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पञ्चमं पर्व
१११ . स सौमनसपौरस्त्यदिग्भागजिनवेश्मनि । कृतार्चनविधि क्या प्रणम्य अणमासित:२ ॥१९२॥ 'प्राग्विदेहमहाकच्छविषयारिष्टसत्पुरात् । भागती सहसौशिष्ट मुनी गगनचारिणौ ॥१९३॥ आदित्यगतिममण्यं तथारिजयशब्दनम् । युगन्धरमहातीर्थसरसीहंसनायकौ ॥१९॥ तावभ्येत्य समभ्ययं प्रणम्य च पुनः पुनः । पप्रच्छेति सुखासीनौ मनीषी स्वमनीषितम् ॥१९५॥ भगवन्तौ युवां ब्रतं किंचित् पृच्छामि हृद्गतम् । भवन्तौ हि जगद्बोधविधौ धत्तोऽवधिस्विषम्॥१९॥ अस्मत्स्वामी खगाधीशः ख्यातोऽस्तीह महाबलः । स मम्बसिदिराहोस्विदमन्यः संशयोऽत्र मे ॥१९॥ जिनोपदिष्टसन्मार्गमस्मद्वाक्यात् प्रमाणयन् । स कि श्रदास्यते नेति"जिज्ञासे "वामनुग्रहात् ॥१९८॥ इति प्रश्नमुपन्यस्य तस्मिन विश्रान्तिमायुषि । तयोरादित्यगत्याख्यः समाल्यदवधीक्षणः ॥१९९॥ मो मन्य ! मन्य एवासौ प्रत्येष्यति च ते वचः । दशमे जन्मनीतश्च तीर्थकृत्वमवाप्स्यति॥२०॥ द्वीपे जम्बूमतोहैव विषये मारताहये । "जनितैष्य युगारम्भे मगवानादितीर्थकृत् ॥२०॥ इतोऽतीतमवं चास्य वक्ष्ये शृणु समासतः । धर्मबीजमनेनोप्तं यत्र मोगेच्छयान्वितम् ॥२०२॥ इहैवापरतो मेरोविदेहे गन्धिलामिधे । पुरे सिंहपुरामिल्ये पुरन्दरपुरोपमे ॥२०॥ श्रीषेण इत्यभूद् राजा राजेव प्रियदर्शनः । देवी च सुन्दरी तस्य बभूवात्यन्वसुन्दरी ॥२०॥
जयवर्माहयः सोऽयं तयोः सूनुरजायत । श्रीवर्मेति च तस्याभूदनुजो जनताप्रियः ॥२०५।। प्रतिमाओंकी वन्दना की ॥१९१।। वन्दनाके बाद उसने सौमनसवनके पूर्व दिशासम्बन्धी चैत्यालयमें पूजा की तथा भक्तिपूर्वक प्रणाम करके क्षण-भरके लिए वह वहीं बैठ गया ॥१९२।।
इतनेमें ही उसने पूर्व विदेह क्षेत्रसम्बन्धी महाकच्छ देशके अरिष्ट नामक नगरसे आये हुए, आकाशमें चलनेवाले आदित्यगति और अरिंजय नामके दो मुनि अकस्मात् देखे। वे दोनों ही मुनि युगन्धर स्वामीके समवसरणरूपी सरोवरके मुख्य हंस थे ॥१९३-१९४।। अतिशय बुद्धिमान स्वयम्बुद्ध मन्त्रीने सम्मुख जाकर उनकी पूजा की, बार-बार प्रणाम किया और जब वे सुखपूर्वक बैठ गये तब उनसे नीचे लिखे अनुसार अपने मनोरथ पूछे ।।१९५॥ हे भगवन् , आप जगत्को जाननेके लिए अवधिज्ञानरूपी प्रकाश धारण करते हैं इसलिए आपसे मैं कुछ मनोगत बात पूछता हूँ, कृपाकर उसे कहिए ।।१९६॥ हे स्वामिन् , इस लोकमें अत्यन्त प्रसित विद्याधरोंका अधिपति राजा महाबल हमारा स्वामी है वह भव्य है अथवा अभव्य ? इस विषयमें मुझे संशय है ॥१९७। जिनेन्द्रदेवके कहे हुए सन्मार्गका स्वरूप दिखानेवाले हमारे पंचनोंको जैसे वह प्रमाणभूत मानता हे वैसे श्रद्धान भी करेगा या नहीं ? यह बात मैं आप दोनोंके अनुप्रहसे जानना चाहता हूँ॥१९८॥ इस प्रकार प्रश्न कर जब स्वयम्बुद्ध मन्त्री चुप हो गया तब उनमें से आदित्यगति नामके अवधिज्ञानी मुनि कहने लगे ॥१९९॥ हे भव्य, तुम्हारा स्वामी भव्य ही है, वह तुम्हारे वचनोंपर विश्वास करेगा और दसवें भवमें तीर्थकर पद भी प्राप्त करेगा।।२००॥ वह इसी जम्बूद्वीपके भरत नामक क्षेत्रमें आनेवाले युगके प्रारम्भमें ऐश्वर्यवान् प्रथम-तीर्थकर होगा ।।२०११॥ अब मैं संक्षेपसे इसके उस पूर्वभवका वर्णन करता हूँ जहाँ कि इसने भोगोंकी इच्छाके साथ-साथ धर्मका बीज बोया था। हे राजन् , तुम सुनो ॥२०२।। - इसी जम्बूद्वीपमें मेरुपर्वतसे पश्चिमकी ओर विदेह क्षेत्रमें एक गन्धिला नामका देश है उसमें सिंहपुर नामका नगर है जो कि इन्द्रके नगरके समान सुन्दर है। उस नगरमें एक श्रीषेण नामका राजा हो गया है । वह राजा चन्द्रमाके समान सबको प्रिय था। उसकी एक अत्यन्त सुन्दर सुन्दरी नामकी स्त्री थीIR०३-२०४।।उन दोनोंके पहले जयवर्मा नामका पुत्र हुआ
१. पूर्वदिग्भामस्थजिनगहे । २. स्थितः।-मास्थितःद०,म.।३. पूर्वविदेहः। ४. मुख्यम् । ५. अरिजयास्यम् । ६. सुखोपविष्टो । ७. स्वेप्सितम् । ८. बोधविधाने । .९. वाक्यं प्र-१०,६०, स०, ५०। १०. श्रद्धानं करिष्यते । ११. शातुमिच्छामि । १२. युवयो। १३. उपन्यासं कृत्वा । १४. गच्छति सति । १५. विश्वासं करिष्यति । १६. च तद्वचः म.। १७. भविष्यति । १८. भविष्यदयुगप्रारम्भे । १९. चन्द्र इस।