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षोडशं पर्व
अथ क्रमाद् यशस्वल्या जाताः स्रष्टुरिमे सुताः । भवतीर्य दिवो मूनस्तेऽहमिन्द्राः पुरोहिताः ॥१॥ पीठो वृषमसेनोऽभूत् कनीयान् भरतेश्वरात् । महापीठोऽभवत्तस्य सोऽनन्तविजयोऽनुजः ॥२॥ विजयोऽनन्तवीर्योऽभूत् जयन्तोऽच्युतोऽभवत् । बैजयन्तो वीर इत्यासीद् वरवीरोपराजितः ॥३॥ इत्येकानशतं पुत्रा बभूवुर्वृषभेशिनः । भरतस्यानुजन्मानश्चरमाङ्गा महौजसः ॥४॥ ततो ब्राह्मीं यशस्वत्यां ब्रह्मा समुदपादयत् । कलामिवापराशायाँ ज्योत्स्नपक्षो ऽमला विधोः ॥५॥ सुनन्दायां महाबाहुरहमिन्द्रो 'दिवोऽप्रतः । व्युत्वा बाहुबलीत्यासीत् कुमारोऽमरसनिमः ॥६॥ वज्रजमवे यास्य भगिन्यासीदनुन्दरीं । सा सुन्दरीस्यभूत् पुत्री वृषमस्यातिसुन्दरी ॥७॥ सुनन्दा सुन्दरी पुत्री पुत्रं बाहुबलोशिनम् । लब्ध्वा रुचिं परां भेजे प्राचीवार्क सह स्विषा ॥८॥ तत्काल कामदेवोऽभूद् युवा बाहुबली बली । रूपसंपदमुत्तुङ्गां दधानोऽसुमता मताम् ॥९॥ तस्य तद्र पमन्यत्र समदृश्यत न क्वचित् । कल्पद्रुमात् किमन्यत्र दृश्यते हारिभूषणम् ॥१०॥
अथानन्तर पहले जिनका वर्णन किया जा चुका है ऐसे वे सर्वार्थसिद्धिके अहमिन्द्र स्वर्गसे अवतीर्ण होकर क्रमसे भगवान् वृषभदेवको यशस्वती देवीमें नीचे लिखे हुए पुत्र उत्पन्न हुए ॥१॥ भगवान् वृषभदेवकी वजनाभि पर्यायमें जो पीठ नामका भाई था वह अब वृषभसेन नामका भरतका छोटा भाई हुआ। जो राजश्रेष्ठीका जीव महापीठ था वह अनन्तविजय नामका वृषभसेनका छोटा भाई हुआ ॥२॥ जो विजय नामका व्याघ्रका जीव था वह अनन्त-विजयसे छोटा अनन्तवीर्य नामका पुत्र हुआ, जो वैजयन्त नामका शूकरका जीव था वह अनन्तवीर्यका छोटा भाई अच्युत हुआ, जो वानरका जीव जयन्त था वह अच्युतसे छोटा वीर नामका भाई हुआ और जो नेवलाका जीव अपराजित था, वह वीरसे छोटा वरवीर हुआ ॥३॥ इस प्रकार भगवान् वृषभदेवके यशस्वती महादेवीसे भरतके पीछे जन्म लेनेवाले निन्यानबे पुत्र हुए, वे सभी पुत्र चरमशरीरी तथा बड़े प्रतापी थे।॥४॥ तदनन्तर जिस प्रकार शुक्लपक्ष पश्चिम दिशामें चन्द्रमाकी निर्मल कलाको उत्पन्न (प्रकट) करता है उसी प्रकार ब्रह्मा-भगवान् आदिनाथने यशस्वती नामक महादेवीमें ब्राह्मी नामकी पुत्री उत्पन्न को ॥५॥ आनन्द पुरोहितका जीव जो पहले महाबाहु था और फिर सर्वार्थसिद्धिमें अहमिन्द्र हुआ था, वह वहाँसे च्युत होकर भगवान् वृषभदेवकी द्वितीय पत्नी सुनन्दाके देवके समान बाहुबली नामका पुत्र हुआ।६।। वनजंघ पर्याय में भगवान् वृषभदेवकी जो अनुन्धरी नामकी बहन थी वह अब इन्हीं वृषभदेवकी सुनन्दा नामक देवीसे अत्यन्त सुन्दरी सुन्दरी नामकी पुत्री हुई ॥७॥ सुन्दरी पुत्री और बाहुबली पुत्रको पाकर सुनन्दा महारानी ऐसी सुशोभित हुई थी जिस प्रकार कि पूर्व दिशा प्रभाके साथ-साथ सूर्यको पाकर सुशोभित होती है ।।८।। समस्त जीवोंको मान्य तथा सर्वश्रेष्ठ रूपसम्पदाको धारण करनेवाला बलवान् युवा बाहुबली उस कालके चौबीस कामदेवोंमें-से पहला कामदेव हुआ था॥९॥ उस बाहुबलीका जैसारूप था वैसा अन्य कहीं नहीं दिखाई देता था, सो ठीक ही है उत्तम आभूषण
१. क्रमाद्यशस्तया द०। २. भरतस्यानुजः । ३. इत्येकोनशतं -अ०, ५०, द०, स०, म०, ल०। ४. शक्लः । ५. -पक्षेऽमलां म०, ल०। ६. सर्वार्थसिद्धितः। ७. वृषभस्य। ८. -दनुन्धरी प०, अ०, द०, स०, ल०। ९. लेभे ब०, अ०, द०, स० । १०. तत्काले काम-५०, द०, म०, ल।