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षोडश प
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पुत्राणां च यथाम्नायं त्रिनया' दानपूर्वकम् । शास्त्राणि व्याजहारमा नुपूग्यां जगद्गुरुः ॥ ११८ ॥ मरतायार्थ शास्त्रं च भरतं च ससंग्रहम् । अध्यायैरतिविस्तीर्णैः स्फुटीकृत्य जगाँ गुरुः ॥ ११९ ॥ विभुर्वृषभसेनाय गीतवाद्यर्थसंग्रहम् । गन्धर्वशास्त्रमाचख्यौ यत्राध्यायाः परश्शतम् । अनन्तविजयायाख्यद् विद्यां चित्रकला श्रिताम् । नानाध्यायशताकीणां साकलाः सकलाः कलाः ॥ १२१ ॥ विश्वकर्ममतं चास्मै वास्तुविद्यामुपादिशत् । अध्यायविस्तरस्तत्र बहुभेदोऽवधारितः ॥ १२२ ॥ कामनीतिमथ स्त्रीणां पुरुषाणां च लक्षणम् । आयुर्वेदं धनुर्वेदं तन्त्रं चाश्वेमगोचरम् ॥ १२३ ॥ तथा रत्नपरीक्षां च बाहुबल्याख्यसूनवे । व्याचख्यौ बहुधाम्नातैर ध्यायैरतिविस्तृतैः ॥ १२४॥ किमत्र बहुनोफेन शास्त्रं लोकोपकारि यत् । तत्सर्वमादिकर्त्तासी स्वाः समम्वशिषत् 'प्रजाः ॥ १२५ ॥ समुदीपितविद्यस्य काव्यासीद्दोलिता विभोः । स्वभावभास्वरस्येव भास्वतः शरदागमे ॥ १२६ ॥ सुतैरधीत निश्शेषविचैरद्युतदीशिता । किरणैरिव तिग्मांशु रासादितशरद्युतिः ॥ १२७॥ पुत्रैरिष्टः कलत्रैश्च वृतस्य भुवनेशिनः । महान् कालो व्यतोयाय" दिव्यैर्भोगैरनारतैः ॥ १२८ ॥ ततः कुमारकालोऽस्य "कलितो मुनिसत्तमैः । विंशतिः पूर्वलक्षाणां पूर्यते स्म महाधियः ॥ १२९ ॥
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सकती थी ||११७|| जगद्गुरु भगवान् वृषभदेवने इसी प्रकार अपने भरत आदि पुत्रोंको भी विनयो बनाकर क्रमसे आम्नायके अनुसार अनेक शास्त्र पढ़ाये ||११८ || भगवान्ने भरत पुत्रके लिए अत्यन्त विस्तृत - बड़े-बड़े अध्यायोंसे स्पष्ट कर अर्थशास्त्र और संग्रह ( प्रकरण ) सहित नृत्यशास्त्र पढ़ाया था ।। ११९ || स्वामी वृषभदेवने अपने पुत्र वृषभसेनके लिए जिसमें गाना बजाना आदि अनेक पदार्थोंका संग्रह है और जिसमें सौसे भी अधिक अध्याय हैं ऐसे गन्धर्व शास्त्रका व्याख्यान किया था || १२०|| अनन्तविजय पुत्र के लिए नाना प्रकार के सैकड़ों अध्यायोंसे भरी हुई चित्रकला सम्बन्धी विद्याका उपदेश दिया और लक्ष्मी या शोभासहित समस्त कलाओंका निरूपण किया ।। १२१ || इसी अनन्तविजय पुत्र के लिए उन्होंने सूत्रधारकी विद्या तथा मकान बनानेकी विद्याका उपदेश दिया । उस विद्याके प्रतिपादक शास्त्रोंमें अनेक अध्यायोंका विस्तार था तथा उसके अनेक भेद थे || १२२|| बाहुबली पुत्र के लिए उन्होंने कामनीति, स्त्री-पुरुषोंके लक्षण, आयुर्वेद, धनुर्वेद, घोड़ा हाथी आदिके लक्षण जाननेके तन्त्र और रत्नपरीक्षा आदिके शास्त्र अनेक प्रकारके बड़े-बड़े अध्यायोंके द्वारा सिखलाये ।। १२३-१२४ || इस विषय में अधिक कहने से क्या प्रयोजन है ? संक्षेपमें इतना ही बस है कि लोकका उपकार करनेवाले जो-जो शास्त्र थे भगवान आदिनाथने वे सब अपने पुत्रोंको सिखलाये थे || १२५ || जिस प्रकार स्वभावसे देदीयमान रहनेवाले सूर्यका तेज शरदऋतुके आनेपर और भी अधिक हो जाता है, उसी प्रकार जिन्होंने अपनी समस्त विद्याएँ प्रकाशित कर दी हैं ऐसे भगवान् वृषभदेवका तेज उस समय भारी अद्भुत हो रहा था || १२६ || जिन्होंने समस्त विद्याएँ पढ़ ली हैं ऐसे पुत्रोंसे भगवान् वृषभदेव उस समय उस प्रकार सुशोभित हो रहे थे जिस प्रकार कि शरऋतु में अधिक कान्तिको प्राप्त होनेवाला सूर्य अपनी किरणोंसे सुशोभित होता है ।। १२७|| अपने इष्ट पुत्र और इष्ट स्त्रियों से घिरे हुए भगवान् वृषभदेवका बहुत भारी समय निरन्तर अनेक प्रकार के दिव्य भोग भोगते हुए व्यतीत हो गया ।। १२८|| इस प्रकार अनेक प्रकारके भोगोंका अनुभव करते हुए भगवान्का बीस लाख पूर्व वर्षांका कुमारकाल पूर्ण हुआ था ऐसी उत्तम मुनिगण
१. बिनयोपदेशपुरस्सरम् । २. परिपात्या । ३. नीतिशास्त्रम् । ४. सकलाः द० । ५. वैद्यशास्त्रम् । ६. कथितैः । ७. आत्मीयाः । ८. पुत्रान् । ९. शरद्युभिः ट० । - व्याप्तशरन्नभोभिः । १०. अतीतमभूत् । ११. कथितः ।