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आदिपुराणम् इस्यसौ परमादारं दधानश्वरमं धपुः । समाति स्म कथं नाम मानिनीहरकुटीरक ॥२३॥ स्वप्नेऽपि तस्य तद पमनन्यमनसोऽङ्गमाः । पश्यन्ति स्म मनोहारि निखातमिव' चेतसि ॥२४॥ मनोमवो मनोजश्च मनोभूर्मन्मयो जजः । मदनोऽनन्यजश्चेति 'न्याजह स्तं तदाङ्गनाः ॥२५॥ सुमनोमञ्जरीबाणैरिक्षुधन्वा किलाङ्गजः । जगत्संमोहकारीति कः श्रदध्या दयुक्तिकम् ॥२६॥ समा भरतराजेन राजन्याः सर्व एव ते । विद्ययाँ कलया दीप्त्या कान्त्या सौन्दर्यलीलया" ॥२७॥ शतमकोत्तरं पुत्रा भर्तस्ते भरतादयः । क्रमात् प्रापुयुवावस्था मदावस्थामिव द्विपाः ॥२८॥ तद्यौवनमभूत्तेपु रमणीयतरं तदा । उद्यानपादपौधेपु वसन्तस्यव जुम्भितम् ॥२९॥ स्मितांशुमारीः शुभ्राः सताम्रान पाणिपल्लवान् । भुजशाखाः फलोदग्रास्ते धुर्युवपार्थिवा ॥३०॥
ततामोदेन धुपेन वासितास्तच्छिरोरुहाः । गन्धान्धरलिमिलीनः कृताः"सोपचया इव ॥३॥ सुशोभित थे, कमल जिस प्रकार लाल होते हैं उसी प्रकार उसके चरण भी लाल थे और कमलोंपर जिस प्रकार लक्ष्मी निवास करती है उसी प्रकार उसके चरणों में भी लक्ष्मी (शोभा) निवास करती थी ॥२२॥ इस प्रकार परम उदार और चरमशरीरको धारण करनेवाला वह बाहुबली मानिनी स्त्रियोंके हृदयरूपी छोटी-सी कुटीमें कैसे प्रवेश कर गया था ? भावार्थ-स्त्रियोंका हृदय बहुत ही छोटा होता है और बाहुबलीका शरीर बहुत ही ऊँचा (सवा पाँच-सौ धनुप) था इसके सिवाय वह चरमशरीरी वृद्ध, (पक्षमें उसी भवसे मोक्ष जानेवाला) था, मानिनी स्त्रियाँ चरमशरीरी अर्थात् वृद्ध पुरुषको पसन्द नहीं करती हैं, इन सब कारणोंके रहते हुए भी उसका वह शरीर स्त्रियोंका मान दूर कर उनके हृदय में प्रवेश कर गया यह भारी आश्चर्यकी बात थी॥२३॥ जिनका मन दूसरी जगह नहीं जाकर केवल बाहुबलीमें ही लगा हुआ है ऐसी स्त्रियाँ स्वप्नमें भी उस बाहुबलीके मनोहर रूपको इस प्रकार देखती थीं मानो वह रूप उनके चित्तमें उकेर ही दिया गया हो ॥२४॥ उस समय स्त्रियाँ उसे मनोभव, मनोज, मनोभू, मन्मथ, अंगज, मदन और अनन्यज आदि नामोंसे पुकारती थीं ।।२५।। ईख हो जिसका धनुष है ऐसा कामदेव अपने पुष्पोंकी मंजरीरूपी बाणोंसे समस्त जगत्का संहार कर देता है, इस युक्तिरहित बातपर भला कौन विश्वास करेगा ? भावार्थ-कामदेवके विषयमें ऊपर लिखे अनुसार जो किंवदन्ती प्रसिद्ध है वह सर्वथा युक्तिरहित है, हाँ, बाहुबली-जैसे कामदेव ही अपने अलौकिक बल और पौरुषके द्वारा जगत्का संहार कर सकते थे ।।२६।। इस प्रकार वे सभी राजकुमार विद्या, कला. दीप्ति. कान्ति और सुन्दरताकी लीलासे राजकुमार भरतके समान थे २७॥ जिस प्रकार हाथी क्रम-क्रमसे मदावस्थाको प्राप्त होते हैं उसी प्रकार भगवान् वृषभदेवके वे भरत आदि एकसौ एक पुत्र क्रम-क्रमसे युवावस्थाको प्राप्त हुए ॥२८॥ जिस प्रकार बगीचेके वृक्षसमूहोंपर वसन्त ऋतुका विस्तार अतिशय मनोहर जान पड़ता है उसी प्रकार उस समय उन राजकुमारोंमें वह यौवन अतिशय मनोहर जान पड़ता था ।।२९।। युवावस्थाको प्राप्त हुए वे सभी पार्थिव अर्थात् राजकुमार पार्थिव अर्थात् पृथिवीसे उत्पन्न होनेवाले वृक्षोंके समान थे क्योंकि वे सभी वृक्षोंके समान ही मन्दहास्यरूपी सफेद मंजरी, लाल वर्णके हाथरूपी पल्लव और फल देनेवाली ऊँची-ऊँची भुजारूपी शाखाओंको धारण करते थे ।।३०।। जिसकी सुगन्धि सब ओर फैल रही है ऐसी धूपसे उन राजकुमारोंके शिरके बाल सुगन्धित किये जाते थे, उस सुगन्धिसे अन्ध
१. टङ्कोत्कीर्णमिव । २. मत मानसं तन्मध्नातीति मन्मथः । ३. -नन्यजश्चैव प० । ४. बुवन्ति स्म । ५. जगत्संहार-म०, ल०। ६. विश्वासं कुर्यात् । ७. सर्वे राजकुमाराः। ८. आन्वीक्षिकोत्रयोवार्ता दण्डनीतिरूपया । ९. अक्षरगणितादिकया । १०. तेजसा । ११. शोभया। १२. जम्भणम् । १३. सारुणान् । १४. उन्नताः । १५. पार्थिवभूमिपाः । पक्षे युवपादपाः । १६. केशान्तरैः पृथकृताः । .