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आदिपुराणम् विमाने श्रीप्रभे तत्र नित्यालोके स्फुरप्रभः । स श्रीमान् वज्रजचार्यः श्रीधराख्यः सुरोऽभवत् ॥१८५॥ सापि सम्यक्त्वमाहात्म्यात् स्त्रैणाद्-विश्लेषमोयुषी। स्वयंप्रमविमानेऽभूत् तत्सनामा सुरोत्तमः॥१८६॥ शार्दूलार्यादयोऽप्यस्मिन् कल्पेऽनल्पसुखोदये । महर्दिकाः सुरा जाताः पुण्यैः किं नु दुरासदम् ॥१८॥ ऋते धर्मात् कुतः स्वर्गः कुतः स्वर्गाहते सुखम् । तस्मात् सुखार्थिनां सेभ्यो धर्मकल्पतरुचिरम् ॥१८॥ शार्दूलभूतपूर्वो यः स विमाने मनोहरे । चित्राङ्गदे ज्वलन्मौलिरभूचित्राङ्गदोऽमरः ॥१८॥ वराहार्यश्च नन्दाख्ये विमाने मणिकुण्डली । ज्वलन्मकुट केयूरमणिकुण्डलभूषितः ॥१९०॥ नन्द्यावर्तविमानेऽभूद वानरार्यों मनोहरः । सुराङ्गनामनोहारिचतुराकारसुन्दरः ९१॥ प्रभाकरविमानेऽभूबकुलार्यों मनोरथः । मनोरथशतावासदिय भोगोऽमृताशनः ॥ १९२॥ इति पुण्योदयात्तेषां स्वलॊकसुखभोगिनाम् । रूपसौन्दर्यभोमादिवर्णना ललिताङ्गवत् ॥१९॥
शार्दूलविक्रीडितम् इत्युच्चैः प्रमदोदयात् सुरवरः श्रीमानसौ श्रीधरः
स्वर्गश्रीनयनोत्सवं शुचितरं बिभ्रद्वपुर्भास्वरम् । कान्ताभिः कलभाषिणीमिलचितान् भोगान् मनोरञ्जनान्
भुआनः सततोत्सवैररमत स्वस्मिन् विमानोत्सवे ॥१९॥ शरीरमें दोष और मल नहीं होते उसी प्रकार भोगभूमिज जीवोंके शरीरमें भी दोष और मल नहीं होते । उनका शरीर भी देवोंके शरीरके समान हो शुद्ध रहता है ।।१८४॥ वह वजजंघ आर्य ऐशान स्वर्गमें हमेशा प्रकाशमान रहनेवाले श्रीप्रभ विमानमें देदीप्यमान कान्तिका धारक श्रीधर नामका ऋद्धिधारी देव हुआ ।।१८५।। और आर्या श्रीमती भी सम्यग्दर्शनके प्रभावसे स्त्रीलिङ्गसे छुटकारा पाकर उसी ऐशान स्वर्गके स्वयम्प्रभ विमानमें स्वयम्प्रभ नामका उत्तम देव हुई ॥१८६।। सिंह, नकुल, वानर और शूकरके जीव भी अत्यन्त सुखमय इसी ऐशान स्वर्गमें बड़ी-बड़ी ऋद्धियोंके धारक देव हुए। सो ठीक ही है पुण्यसे क्या दुर्लभ है ? ॥१८७। इस संसारमें धमके बिना स्वगे कहाँ? और स्वगके बिना सुख कहाँ इसलिए सुख चाहनेवाले पुरुषोंको चिरकाल तक धर्मरूपी कल्पवृक्षकी ही सेवा करनी चाहिए ॥१८८।। जो जीव पहले सिंह था वह चित्रांगद नामके मनोहर विमानमें प्रकाशमान मुकुटका धारक चित्रांगद नामका देव हुआ ॥१८९।। शूकरका जीव नन्द नामक विमानमें प्रकाशमान मुकुट, बाजूबन्द और मणिमय कुण्डलोंसे भूषित मणिकुण्डली नामका देव हुआ ॥१९०। वानरका जीव नन्द्यावर्त नामक विमानमें मनोहर नामका देव हुआ जो कि देवांगनाओंके मनको हरण करनेवाले सुन्दर आकारसे शोभायमान था ॥ १९१॥ और नकुलका जीव प्रभाकर विमानमें मनोरथ नामका देव हुआ जो कि सैकड़ों मनोरथोंसे प्राप्त हुए दिव्य भोगरूपी अमृतका सेवन करनेवाला था ॥१९२।। इस प्रकार पुण्यके उदयसे स्वर्गलोकके सुख भोगनेवाले उन छहों जीवोंके रूप, सौन्दर्य, भोग आदिका वर्णन ललितांगदेवके समान जानना चाहिए ॥१९३।। इस प्रकार पुण्यके उदयसे स्वर्गलक्ष्मीके नेत्रोंको उत्सव देनेवाले, अत्यन्त पवित्र और चमकीले शरीरको धारण करनेवाला वह ऋद्धिधारी श्रीधर देव मधुर वचन बोलनेवाली देवाङ्गनाओंके साथ मनोहर भोग भोगता हुआ अपने ही विमानमें अनेक उत्सवों द्वारा क्रीड़ा करता था ॥१९४॥
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१. ऐशानकल्पे। २. तेन विमानेन समानं नाम यस्यासी श्रीस्वयंप्रभ इत्यर्थः । ३. -मुकुट-अ०, ५०, द०। ४. मनोहरनामा। ५.-भोगामृताशनः । ६. देवः । ७. -सुखभागिनाम अ०, ५०, स०, द०, म०। ८.-र्भासुरम् अ०, स०।