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आदिपुराणम्
का''''कः श्रयते नित्यं का" कीं सुरतप्रियाम् । 'का'नने वदेदानों च ेरक्ष रविच्युतम् ॥२४१॥ [ कामुकः श्रयते नित्यं कामुकों सुरतप्रियाम् । कान्तानने वदेदानीं चतुरक्षरविच्युतम् ॥२४१ ] [ एकाक्षरच्युतकपादम् ] तवाम्ब किं वसत्यन्तः” का नास्त्यविभवे त्वयि । का हन्ति जनमाचनं वदाद्यैर्व्य अनैः पृथक् ॥ २४२॥ [तु शुरु ] वदादिव्यञ्जनैः पृथक् ॥ २४३ ॥ [[ सूपः कूपः भूपः ] कः पापी बदाचैरशरैः पृथक् ॥ २४४॥ [पलाल:, कुलाल:, विलाल: ]
वराशनेषु को रुच्यः को गम्भीरो जलाशयः । कः कान्तस्तव तन्वंगि
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कः समुत्सृज्यते धान्ये घटयस्यस्व को घटम् । वृषान् दशति
सम्बोध्यसे कथं देवि किमस्त्यर्थक्रियापदम् । शोमा च कीदृशि " व्योम्नि भवतीदं निगद्यताम् ॥ २४५ ॥ [ 'भवति', निह तैकालापकम् ]
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तथा उच्च शब्द करनेवाला बाजा कौन-सा है ? इस श्लोक में पहले ही प्रश्न हैं । माताने इस लोकके तृतीय अक्षरको हटाकर उसके स्थानपर पहले श्लोकका तृतीय अक्षर बोलकर उत्तर दिया [ यह श्लोक एकाक्षरच्युतक और एकाक्षरच्युतक है ] ॥ २४०॥ कोई देवी पूछती है कि हे माता, 'किसी वनमें एक कौआ संभोगप्रिय कागलीका निरन्तर सेवन करता है'। इस लोकमें चार अक्षर कम हैं उन्हें पूराकर उत्तर दीजिए। माताने चारों चरणोंमें एक-एक अक्षर बढ़ाकर उत्तर दिया कि हे कान्तानने, ( हे सुन्दर मुखवाली), कामी पुरुष संभोगप्रिय कामिनीका सदा सेवन करता है [ यह श्लोक एकाक्षरच्युतक है ] ॥२४१ || किसी देवीने फिर पूछा कि हे माता, तुम्हारे गर्भ में कौन निवास करता है ? हे सौभाग्यवती, ऐसी कौन-सी वस्तु है जो "तुम्हारे पास नहीं है ? और बहुत खानेवाले मनुष्यको कौन-सी वस्तु मारती है ? इन प्रश्नोंका उत्तर ऐसा दीजिए कि जिसमें अन्तका व्यञ्जन एक-सा हो और आदिका व्यञ्जन भिन्न-भिन्न प्रकारका हो । माताने उत्तर दिया 'तुक' 'शुक' 'रुक' अर्थात् हमारे गर्भ में पुत्र निवास करता है, हमारे समीप शोक नहीं है और अधिक खानेवालेको रोग मार डालता है । [ इन तीनों उत्तरोंका प्रथम व्यञ्जन अक्षर जुदा-जुदा है और अन्तिम व्यञ्जन सबका एक-सा है || २४२ ॥ किसी देवीने पूछा कि हे माता, उत्तम भोजनोंमें रुचि बढ़ानेवाला क्या है ? गहरा जलाशय क्या है ? और तुम्हारा पति कौन है ? हे तन्वंगि, इन प्रश्नोंका उत्तर ऐसे पृथक-पृथक शब्दों में दीजिए जिनका पहला व्यंजन एक समान न हो । माताने उत्तर दिया कि 'सूप' 'कूप' और 'भूप', अर्थात् उत्तम भोजनोंमें रुचि बढ़ानेवाला सूप (दाल) है, गहरा जलाशय है और हमारा पति भूप (राजा नाभिराज ) है || २४३ || किसी देवीने फिर कहा कि हे माता, अनाज में से कौन-सी वस्तु छोड़ दी जाती है ? घड़ा कौन बनाता है ? और कौन पापी चूहोंको खाता है ? इनका उत्तर भी ऐसे पृथक-पृथक शब्दों में कहिए जिनके पहले के दो अक्षर भिन्न-भिन्न प्रकार के हों । माताने कहा 'पलाल', 'कुलाल' और 'विडाल' अर्थात् अनाज में से पियाल छोड़ दिया जाता है, घड़ा कुम्हार बनाता है और बिलाव चूहोंको खाता है || २४४ || कोई देवी फिर पूछती है कि हे देवी, तुम्हारा सम्बोधन क्या है ? सत्ता अर्थको कहनेवाला क्रियापद कौन-सा है ? और कैसे आकाशमें शोभा होती है ? माताने उत्तर दिया 'भवति', अर्थात् मेरा सम्बोधन भवति, ( भवती शब्दका सम्बोधनका एकवचन ) है, सत्ता अर्थको
१. कानून कुत्सितवदन । २. चर रतम् । पक्षे रतविशेषः । एतौ अन्यर्थे । एतच्छ्लोकार्थः उपरिमश्लोके स्फुटं भवति । ३. गर्भे । ४. औदरिकम् । ५. भिन्नप्रयमव्यञ्जनैः । ६. पुत्रः । ७. शोकः । ८. रोगः । ९. मूषकान् । १०. भक्षयति । ११. निष्कलधान्यम् । १२. मार्जारः । १३ अस्तीत्यर्थो यस्य तत् । १४. कीदृशे ० ० । १५. भवति इति सम्बोध्यते । भवति इति क्रियापदम् । भवति भाति नक्षत्राण्यस्य सन्तीति भवत् तस्मिन् भवति ।