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आदिपुराणम्
शार्दूलविक्रीडितम् इल्याधिष्कृतमङ्गला भगवती देवीमिरासादरं
वधेऽन्तः परमोदयं त्रिभुवनेऽप्याश्चर्यभूतं महः । राजैनं जिनभाविनं सुतरविं पनाकरस्यानुवन् ।
साकाक्षः प्रतिपालयन् प्रतिमधात् प्रासोदवं भूबसोम् ॥२३॥ . इत्याचे भगवज्जिनसेनाचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे
भगवत्स्वर्गावतरणवर्णनं नाम
द्वादशं पर्व ॥१२॥
करनेके लिए महाराज नाभिराज तथा उनका समस्त परिवार तैयार रहता था ।। २७२ । इस प्रकार जो प्रकटरूपसे अनेक मंगल धारण किये हुए हैं और अनेक देवियाँ आदरके साथ जिसकी सेवा करती हैं ऐसी मरुदेवी परम सुख देनेवाले और तीनों लोकोंमें आश्चर्य करनेवाले भगवान ऋषभदेवरूपी तेजःपुजको धारण कर रही थी और महाराज नाभिराज कमलोंसे सुशोभित तालाबके समान जिनेन्द्र होनेवाले पुत्ररूपी सूर्यको प्रतीक्षा करते हुए बड़ी आकांक्षाके साथ परम सुख देनेवाले भारी धैर्यको धारण कर रहे थे ।। २७३ । ..
इस प्रकार श्रीभार्ष नामसे प्रसिद्ध भगवजिनसेनाचार्यप्रणीत त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहमें भगवान्के स्वर्गावतरणका वर्णन
करनेवाला बारहवाँ पर्व समाप्त हुभा ॥१२॥
१. भाग्यवती । २. ने साश्चर्य-ल०, म०। ३. तेजः। ४. भावी चासो जिनश्च जिनभावी तम। ५. पद्माकरमनुकुर्वन् । ६. प्रतीक्षमाणः । ७. प्राप्तोदयां अ०, ५०, स०, ८०, ल• ।