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नवमं पर्व
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कान्तानां करपल्लबैदुतलेः संवाझमानक्रमः
तद्वस्त्रेन्दुशुचिस्मितांशुसलिलैः संसिच्यमानो मुहुः । 'सभूविभ्रमतत्कटाक्षविशिखैळक्ष्यीकृतोऽनुक्षणं ।
भोगाजैरपि सोऽतृपत् प्रमुदितो वय॑जिनः श्रीधरः ॥१९५॥ इत्याचे भगवज्जिनसेनाचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणश्रीमहापुराणसंग्रहे श्रीमतीवज्रजवार्यसम्यग्दर्शनोत्पतिवर्णनं नाम
नवमं पर्व ॥६॥
कभी देवाङ्गनाएँ अपने कोमल करपल्लवोंसे उसके चरण दबाती थीं, कभी अपने मुखरूपी चन्द्रमासे निकलती हुई मन्द मुसकानकी किरणोंरूपी जलसे बार-बार उसका अभिषेक करती थीं और कभी भौंहोंके विलाससे युक्त कटाक्षरूपी बाणोंका उसे लक्ष्य बनाती थीं। इस प्रकार आगामी कालमें तीर्थकर होनेवाला वह प्रसन्नचित्त श्रीधरदेव भोगोपभोगकी सामग्रीसे प्रत्येक क्षण सन्तुष्ट रहता था ॥१९५॥ इस प्रकार पार्षनामसे प्रसिद्ध भगवजिनसेनाचार्यप्रणीत त्रिषष्टिलक्षण श्रीमहापुराण
संग्रहमें श्रीमती और वज्रजचार्यको सम्यग्दर्शनको उत्पत्तिका .. वर्णन करनेवाला नवाँ पर्व समाप्त हुभा ॥६॥
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१. सद्भू-प० । सुभ्रू ब०, स०।