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चतुर्थ पर्व वैशाखस्थः कटीन्यस्तहस्तः स्याद् यादृशः पुमान् । तादृशं लोकसंस्थानमामनन्ति मनीषिणः ॥४२॥ अनन्तानन्तभेदस्य वियतो मध्यमाश्रितः । लोकस्त्रिभितो वातै ति शिक्यैरिवाततैः ॥४३॥ वातरज्जुमिरानद्धो लोकस्तिसृभिराशिखम् । पटत्रितयसंवीतसुप्रतिष्ठकसन्निभः ॥४४॥ तिर्यग्लोकस्य विस्तारं रज्जुमेकां प्रचक्षते । चतुर्दशगुणां प्राह रज्जुं लोकोच्छितिं बुधाः ॥४५॥ अधोमध्योलमध्याग्रे लोकविष्कम्भरज्जवः । सप्तैका पञ्च चैका च यथाक्रममुदाहृताः ॥४६॥ द्वीपाब्धिमिरसंख्यातैर्द्विर्द्वि विष्कम्भमाश्रितैः । विभाति बलयाकारैर्मध्यलोको विभूषितः ॥४७॥ मध्यमध्यास्य लोकस्य जम्बूद्वीपोऽस्ति मध्यगः । मेरुनामिः सुवृत्तात्मा लवणाम्भोधिवेष्टितः॥४८॥ सप्तभिः क्षेत्रविन्यासैः षडभिश्च कुलपर्वतैः । प्रविभक्तः सरिद्भिश्च लक्षयोजनविस्तृतः॥४९॥ स मेरुमौलिरामाति लवणोदधिमेखलः । सर्वद्वीपसमुद्राणां जम्बद्वीपोऽधिराजवत् ॥५०॥ इह जम्बूमति द्वीपे मेरोः प्रत्यगदिशाश्रितः । विषयो गन्धिलामिख्यो भाति स्वर्गकखण्डवत् ॥५१॥ पूर्वापरावधी तस्य देवाद्रि चोमिमालिनी । दक्षिणोत्तरपर्यन्तौ सीतोदा नील एव च ॥५२॥
समान नीचे विस्तृत और ऊपर सकड़ा है, मध्यम लोक झल्लरीके समान सब ओर फैला हुआ है और ऊर्ध्वलोक मृदंगके समान बीचमें चौड़ा तथा दोनों भागोंमें सकड़ा है ॥४१॥ अथवा दोनों पाँव फैलाकर और कमरपर दोनों हाथ रखकर खड़े हुए पुरुषका जैसा आकार होता है बुद्धिमान् पुरुष लोकका भी वैसा ही आकार मानते हैं ॥४२॥ यह लोक अनन्तानन्त आकाशके मध्यभागमें स्थित तथा घनोदधि, घनवात और तनुवात इन तीन प्रकारके विस्तृत वातवलयोंसे घिरा हुआ है और ऐसा मालूम होता है मानो अनेक रस्सियोंसे बना हुआ छींका ही हो॥४३॥ नीचेसे लेकर ऊपर तक उपयुक्त तीन वातवलयोंसे घिरा हुआ यह लोक ऐसा मालूम होता है मानो तीन कपड़ोंसे ढका हुआ सुप्रतिष्ठ ( ठौना) ही हो॥४४|| विद्वानोंने मध्यम लोकका विस्तार एक राजु कहा है तथा पूरे लोककी ऊँचाई उससे चौदह गुणी अर्थात् चौदह राजु कही है ॥४५॥ यह लोक अधोभागमें सात राजु, मध्यभागमें एक राजु, ऊर्ध्वलोकके मध्यभागमें पाँच राजु और सबसे ऊपर एक राजु चौड़ा है ॥४६।। इस लोकके ठीक बीच में मध्यम लोक है जो कि असंख्यात द्वीपसमुद्रोंसे शोभायमान है। वे द्वीपसमुद्र क्रम-क्रमसे दूने-दूने विस्तारवाले हैं तथा वलयके समान हैं। भावार्थ-जम्बूद्वीप थालीके समान तथा बाकी द्वीप समुद्र वलयके समान बीचमें खाली हैं ॥४७॥ इस मध्यम लोकके मध्यभागमें जम्बूद्वीप है। यह जम्बूद्वीप गोल है तथा लवणसमुद्रसे घिरा हुआ है। इसके बीच में नाभिके समान मेरु पर्वत है ।।४८॥ यह जम्बूद्वीप एक लाख योजन चौड़ा है तथा हिमवत् आदि छह कुलाचलों, भरत आदि सात क्षेत्रों और गङ्गा, सिन्धु आदि चौदह नदियोंसे विभक्त होकर- अत्यन्त शोभायमान हो रहा है ।।४९॥ मेरु पर्वतरूपी मुकुट और लवणसमुद्ररूपी करधनीसे युक्त यह जम्बूद्वीप ऐसा शोभायमान होता है मानो सब द्वीपसमुद्रोंका राजा ही हो ॥५०॥ इसी जम्बूद्वीपमें मेरु पर्वतसे पश्चिमकी ओर विदेह क्षेत्रमें एक गन्धिल नामक देश है जो कि स्वर्गके टुकड़ेके समान शोभायमान है॥५१॥ इस देशकी पूर्व दिशामें मेरु पर्वत है, पश्चिममें ऊर्मिमालिनी नामकी विभंग नदी है, दक्षिणमें सीतोदा नदी
..द्विगुणद्विगुणविस्तारम् । २. कटीसूत्रः । ३. पश्चिम दिक् । ४. देवमाल इति वक्षारगिरिः। ५. अमिमालिनी इति विभङ्गा नदी। ६. सीतोदा नदी । ७. नीलपर्वतः।