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आदिपुराणम्
मालिनीच्छन्दः मृदुसुरभिसमीरैः सान्द्रमन्दारवीथी
परिचयसुखशीतै—तसंमोगखेदः।। मुहुरुपवनदेशान् नन्दनोद्देशदेश्यान्'
जितमदननिवेशान् स्त्रीसहायः स भेजे ॥१९७n इति सुकृतविपाकादानमखेचरोद्यन्
मकुटमकरिकामिः स्पृष्टपादारविन्दः । चिरमरमत तस्मिन् खेचराद्रौ सुराद्रौ ।
सुरपतिरिव सोऽयं माविमास्वज्जिनश्रीः ॥१९८॥ इत्यार्षे भगवज्जिनसेनाचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणश्रीमहापुराणसंग्रहे श्रीमहाबलाभ्युदय
वर्णनं नाम चतुर्थ पर्व ॥४॥
कि उनके निश्चित विचारोंको कोई मन्त्री सदोष नहीं कर सकता था ॥१९६॥ अनेक विद्याधरोंका स्वामी राजा महाबल उपर्युक्त चारों मन्त्रियोंपर राज्यभार रखकर अनेक स्त्रियोंके साथ चिरकाल तक कामदेवके निदासस्थानको जीतने और नन्दनवनके प्रदेशोंकी समानता रखनेवाले उपवनोंमें बार-बार विहार करता था। विहार करते समय घनीभूत मन्दार वृक्षोंके मध्यमें भ्रमण करनेके कारण सुखप्रद शीतल, मन्द तथा सुगन्धित वायुके द्वारा उसका संभोगजन्य समस्त खेद दूर हो जाता था ॥१९७। इस प्रकार पुण्यके उदयसे नमस्कार करनेवाले विद्याधरोंके देदीप्यमान मुकुटोंमें लगे हुए मकर आदिके चिह्नोंसे जिसके चरणकमल बार-बार स्पृष्ट हो रहे थे-छुए जा रहे थे और जिसे आगे चलकर तीर्थकरकी महनीय विभूति प्राप्त होनेवाली थी ऐसा वह महाबल राजा, मेरुपर्वतपर इन्द्रके समान, विजया पर्वतपर चिरकाल तक क्रीड़ा करता रहा ॥१९८॥ इस प्रकार भार्ष नामसे प्रसिद्ध, भगवज्जिनसेनाचार्य रचित, त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण संग्रहमें 'श्रीमहाबलाभ्युदयवर्णन' नामका
चतुर्थ पर्व पूर्ण हुमा ॥४॥
१. सदृशान् । २. पुण्योदयात् । ३. -मकरिकामस्पष्ट ।