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आदिपुराणम् इमे भद्रमृगाः पूर्व 'स्वादीयोमिस्तृणाकुरैः । 'रसायनरसैः पुष्टाः सरसां सलिलैरपि ॥१५॥ अङ्काधिरोपणैर्हस्तलालनैरपि सान्विताः । अस्माभिरति विश्रब्धाः संवसन्तोऽनुपद्रवाः ॥९६॥ इदानीं तु विना हेतोः औरमिभवन्ति नः । दंष्ट्रामिनखराप्रैश्च "बिभित्सन्ति च दारुणाः ॥९॥ कोऽभ्युपायो महाभाग ब्रूहि नः भेमसाधनम् । भेमंकरो हि स भवान् जगतः भेमचिन्तनैः ॥१८॥ इति तद्वचनाजातसौहार्दो मनुरब्रवीत् । सत्यमेतत्तथापूर्वमिदानीं तु भयावहाः ॥१९॥ तदिमे परिहर्तभ्याः कालाद्विकृतिमागताः । कर्तव्यो नैषु विश्वासो "बाधाः कुर्वन्त्युपेक्षिताः ॥१०॥ इत्याकर्ण्य वचस्तस्य परिजकुस्तदा मृगान् । ऋङ्गिणो दंष्ट्रिणः ऋरान शेषैः"संवासमाययुः ॥१०॥ व्यतीयुषि ततः काले मनोरस्य व्यतिक्रमे । मन्वन्तरमसंख्येयाः समाकोटोविलमय च ॥१२॥
अत्रान्तरे महोदप्रविग्रहो दोषविग्रहः । अग्रेसरः सतामासीन्मनुः क्षेमंधरायः ॥१०३॥ "तुटिकाब्दमितं तस्य बभूवायुमहात्मनः । शतानि सप्त चापानां सप्ततिः पञ्च चोच्छितिः ॥१०४॥ यदा प्रबलतां याताः “पाकसवा महाक्रुधः । तदा लकुटयष्टयायैः स रक्षाविधिमन्वशात् ॥१०५॥ क्षेमंधर इति ख्याति प्रजानां क्षेमधारणात् । स दधे पाकसत्त्वेभ्यो रक्षोपायानुशासनैः ॥१०६॥
बिना किसी आश्चर्यके निश्चल बैठे हुए क्षेमंकर मनुके पास जाकर उनसे पूछने लगे ॥१४॥ हे देव, सिंह व्याघ्र आदि जो पशु पहले बड़े शान्त थे, जो अत्यन्त स्वादिष्ट घास खाकर और तालाबोंका रसायनके समान रसीला पानी पीकर पष्ट हुए थे, जिन्हें हम लोग अपनी गोदीमें बैठाकर अपने हाथोंसे खिलाते थे, हम जिनपर अत्यन्त विश्वास करते थे और जो बिना किसी उपद्रवके हम लोगोंके साथ-साथ रहा करते थे आज वे ही पशु बिना किसी कारणके हम लोगोंको सींगोंसे मारते हैं, दाढ़ों और नखोंसे हमें विदारण किया चाहते हैं और अत्यन्त भयंकर दीख पड़ते हैं । हे महाभाग, आप हमारा कल्याण करनेवाला कोई उपाय बतलाइए। चूंकि आप सकल संसारका क्षेम-कल्याण सोचते रहते हैं इसलिए सञ्चे क्षेमंकर हैं ॥९५-९८। इस प्रकार उन आर्योके वचन सुनकर क्षेमंकर मनुको भी उनसे मित्रभाव उत्पन्न हो गया और वे कहने लगे कि आपका कहना ठीक है । ये पशु पहले वास्तवमें शान्त थे परन्तु अब भयंकर हो गये हैं इसलिए इन्हें छोड़ देना चाहिए। ये कालके दोषसे विकारको प्राप्त हुए हैं अब इनका विश्वास नहीं करना चाहिए। यदि तुम इनकी उपेक्षा करोगे तो ये अवश्य ही बाधा करेंगे ॥९९-१००॥ क्षेमंकरके उक्त वचन सुनकर उन लोगोंने सींगवाले और दाढ़वाले दुष्ट पशुओंका साथ छोड़ दिया, केवल निरुपद्रवी गाय-भैंस आदि पशुओंके साथ रहने लगे ॥१०१॥ क्रमक्रमसे समय बीतनेपर क्षेमंकर मनुकी आयु पूर्ण हो गयी। उसके बाद जब असंख्यात करोड़ वर्षोंका मन्वन्तर व्यतीत हो गया तब अत्यन्त ऊँचे शरीरके धारक, दोषोंका निग्रह करनेवाले
और सजनोंमें अग्रसर क्षेमंकर नामक चौथे मनु हुए। उन महात्माकी आयु तुटिक प्रमाण वर्षोंकी थी और शरीरकी ऊँचाई सात सौ पचहत्तर धनुष थी। इनके समयमें जब सिंह, व्याघ्र आदि दुष्ट पशु अतिशय प्रबल और क्रोधो हो गये तब इन्होंने लकड़ी लाठी आदि उपायोंसे इनसे बचनेका उपदेश दिया । चूँ कि इन्होंने दुष्ट जीवोंसे रक्षा करनेके उपायोंका उपदेश
१. अत्यर्थं स्वादुभिः । २. रसायनवत्स्वादुभिः। ३. अङ्कः उत्सङ्गः । ४. सामनीताः । ५. -भिरिति म०, ल०। ६. विश्वासिताः । ७. भेत्तुमिच्छन्ति । ८. साधने ल०। ९. भयंकराः। १०. बाधां अ०,५०, म०, स०, द०,ल.। ११. सहवासम् । १२. तत्रान्तरे अ०, ५०, स०, द०, म०, ल०। १३. पञ्चचत्वारिंशत् शून्याधिक षोडशप्रमितचतुर्दश-प्रमाणचतुरशीतिसंगुणनं तुटिकान्दप्रमाणम् । १४. क्रूरमगाः। १५. 'यष्टिः स्यात् सप्तपर्विका' । १६. दधे अ०, ५०, द०. म०. ल० । १७. शासनात् अ०,५०, द०, म०, ल०।