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आदिपुराणम्
नमोऽस्त्वृज्जुमते तुभ्यं नमस्ते विपुलात्मने । नमः प्रत्येकबुद्धाय स्वयं बुद्धाय वै नमः ॥ ६८ ॥ अमिनदशपूर्वित्वात् प्राप्तपूजाय ते नमः । नमस्ते पूर्वविद्यानां विश्वासां पारदृश्वने ॥६९॥ दीसोम्रतपसे तुभ्यं नमस्तप्तमहातपः । नमो घोरगुणब्रह्मचारिणे घोरतेजसे ॥७०॥ नमस्ते विक्रियनामष्टधा सिद्धिमीयुषे । आमर्षं क्ष्वेलवाग्विप्रुड्जल्लसर्वोषधे " नमः ॥७१॥ नमोऽसृतमधुक्षीरसपिंरास्त्रविशेऽस्तु ते । नमो मनोवचः काय बलिनां ते बलीयसे ||७२ ||
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हो ||६७|| आप ऋजुमति और विपुलमति नामक दोनों प्रकारके मन:पर्ययज्ञानसे सहित हैं अतः आपको नमस्कार हो । आप प्रत्येकबुद्ध हैं इसलिए आपको नमस्कार हो तथा आप स्वयंबुद्ध हैं इसलिए आपको नमस्कार हो ।। ६८ ।। हे स्वामिन् दशपूर्वोका पूर्ण ज्ञान होनेसे आप जगत् में पूज्यताको प्राप्त हुए हैं अतः आपको नमस्कार हो । इसके सिवाय आप समस्त पूर्व विद्याओंके पारगामी हैं अतः आपको नमस्कार हो ||६९ || हे नाथ, आप पक्षोपवास, मासोपवास आदि कठिन तपस्याएँ करते हैं, आतापनादि योग लगाकर दीर्घकाल तक कठिनकठिन तप तपते हैं। अनेक गुणोंसे सहित अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और अत्यन्त तेजस्वी हैं अतः आपको नमस्कार हो ||७०|| हे देव, आप अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व इन आठ विक्रिया ऋद्धियोंकी सिद्धिको प्राप्त हुए हैं अर्थात् (१) आप अपने शरीरको परमाणुके समान सूक्ष्म कर सकते हैं, (२) मेरुसे भी स्थूल बना सकते हैं, (३) अत्यन्त भारी (वजनदार) कर सकते हैं, (४) हलका (कम वजनदार) बना सकते हैं, (५) आप जमीनपर बैठे-बैठे ही मेरु पर्वत की चोटी छू सकते हैं अथवा देवोंके आसन कम्पायमान कर सकते हैं, (६) आप अढ़ाई द्वीपमें चाहे जहाँ जा सकते हैं अथवा जलमें स्थलकी तरह स्थलमें जलकी तरह चल सकते हैं, (७) आप चक्रवर्तीके समान विभूतिको प्राप्त कर सकते हैं और (८) विरोधी जीवोंको भी वशमें कर सकते हैं अतः आपको नमस्कार हो । इनके सिवाय हे देव, आप आमर्ष, क्ष्वेल, वाग्विप्रुट, जल्ल और सर्वौषधि आदि ऋद्धियोंसे सुशोभित हैं अर्थात् (१ ) आपके वमनकी वायु समस्त रोगोंको नष्ट कर सकती हैं, (२) आपके मुखसे निकले हुए कफको स्पर्शकर बहनेवाली वायु सब रोगोंको हर सकती है, (३) आपके सुखसे निकली हुई वायु सब रोगोंको नष्ट कर सकती है, (४) आपके मलको स्पर्श कर बहती हुई वायु सब रोगोंको हर सकती है और (५) आपके शरीरको स्पर्श कर बहती हुई वायु सब रोगोंको दूर कर सकती है । इसलिए आपको नमस्कार हो ॥ ७१ ॥ हे देव, आप अमृतस्राविणी, मधुस्राविणी, क्षीरस्राविणी और घृतस्राविणी आदि रस ऋद्धियोंको धारण करनेवाले हैं अर्थात् ( १ ) भोजनमें मिला हुआ विष भी आपके प्रभावसे अमृतरूप हो सकता है, (२) भोजन मीठा न होनेपर भी आपके प्रभावसे मीठा हो सकता है, (३) आपके निमित्तसे भोजनगृह अथवा भोजनमें दूध झरने लग सकता है और (४) आपके प्रभाव से भोजनगृहसे घीकी कमी दूर हो सकती है। अतः आपको नमस्कार हो । इनके सिवाय आप मनोबल, वचनबल और कायबल ऋद्धिसे सम्पन्न हैं अर्थात् आप समस्त द्वादशाङ्गका अन्तर्मुहूर्त में अर्थरूपसे
१. वैराग्यकारणं किञ्चिद्दृष्ट्वा यो वैराग्यं गतः सः प्रत्येकबुद्धः । प्रत्येकान्निमित्ताद्बुद्धः प्रत्येकबुद्धः । यथा नीलाञ्जनाविलयात् वृषभनाथः । २. वैराग्यकारणं किंचिद्दृष्ट्वा परोपदेशं चानपेक्ष्य स्वयमेव यो वैराग्यं गतः स स्वयं बुद्धः । ३. छदिः । ४. क्ष्वेल: ( उगुलु क० ) [ मुखमलम् ] ' थूक' । ५. सर्वाङ्गमलम् । ६. स्त्राविणे नमः म० । - स्राविणेऽस्तु ते स०, ६०, प० ।