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द्वितीय पर्व पारेतमः परंधाम प्रवेष्टुमनसो वयम् । तद्द्वारोद्धाटनं बीज स्वामुपास्य लभेमहि ॥३॥ ब्रह्मोया निखिला 'विद्यास्त्वं हि ब्रह्मसुतो मुनिः । परं ब्रह्म त्वदायत्तमतो ब्रह्मविदो विदुः ॥६३॥ मुनयो वातरशनाः पदमूर्ध्व "विधित्सवः । त्वां मूर्द्धवन्दिनो भूत्वा तदुपायमुपासते ॥६॥ महायोगिन् नमस्तुभ्यं महाप्रज्ञ नमोऽस्तु ते । नमो महात्मने तुभ्यं नमः स्तात्ते महर्द्धये ॥६५।। नमोऽवधिजुषे तुभ्यं नमो देशावधिस्विषे । परमावधये तुभ्यं नमः सर्वावधिस्पृशे ॥६६॥ कोष्टबुद्धे नमस्तुभ्यं नमस्ते 'बोजबुद्धये । पदानुसारिन् "संमिन्नश्रोतस्तुभ्यं नमो नमः ॥६७॥
कहलाते हैं ॥६१॥ हे देव, हम लोग मोह अथवा अज्ञानान्धकारसे रहित मोक्षरूपी परम धाममें प्रवेश करना चाहते हैं अतः आपकी उपासना कर आपसे उसका द्वार उघाड़नेका कारण प्राप्त करना चाहते हैं ।।६२॥ हे देव, आप सर्वज्ञ देवके द्वारा कही हुई समस्त विद्याओंको जानते हैं इसलिए आप ब्रह्मसुत कहलाते हैं तथा परंब्रह्मरूप सिद्ध पदकी प्राप्ति होना आपके अधीन है, ऐसा ब्रह्मका स्वरूप जाननेवाले योगीश्वर भी कहते हैं ।।६३।। हे देव, जो दिगम्बर मुनि मोक्ष प्राप्त करनेके अभिलाषी हैं वे आपको मस्तक झुकाकर नमस्कार करते हुए उसके उपायभूत-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रकी उपासना करते हैं ॥६४॥ हे देव, आप महायोगी हैं-ध्यानी हैं अतः आपको नमस्कार हो, आप महाबुद्धिमान हैं अतः आपको नमस्कार हो, आप महात्मा हैं अतः आपको नमस्कार हो, आप जगत्त्रयके रक्षक और बड़ी-बड़ी ऋद्धियोंके धारक हैं अतः आपको नमस्कार हो ॥६५॥ हे देव, आप देशावधि, परमावधि और सर्वावधिरूप अवधिज्ञानको धारण करनेवाले हैं अतः आपको नमस्कार हो ॥६६॥ हे देव, आप कोष्ठबुद्धि नामक ऋद्धिको धारण करनेवाले हैं अर्थात् जिस प्रकार कोठेमें अनेक प्रकारके धान्य भरे रहते हैं उसी प्रकार आपके हृदयमें भी अनेक पदार्थोंका ज्ञान भरा हुआ है, अतः आपको नमस्कार हो। आप बोजबुद्धि नामक ऋद्धिसे सहित हैं अर्थात् जिस प्रकार उत्तम जमीनमें बोया हुआ एक भी बोज अनेक फल उत्पन्न कर देता है उसी प्रकार आप भी आगमके बीजरूप एक दो पदोंको ग्रहण कर अनेक प्रकारके ज्ञानको प्रकट कर देते हैं इसलिए आपको नमस्कार हो। आप पदानुसारी ऋद्धिको धारण करनेवाले हैं अर्थात् आगमके आदि, मध्य, अन्तको अथवा जहाँ-कहींसे भी एक पदको सुनकर भी समस्त आगमको जान लेते हैं अतः आपको नमस्कार हो। आप संभिन्नश्रोत ऋद्धिको धारण करनेवाले हैं अर्थात् आप नौ योजन चौड़े और बारह योजन लम्बे क्षेत्रमें फैले हुए चक्रवर्तीके कटकसम्बन्धी समस्त मनुष्य और निर्यश्चोंके अक्षरात्मक तथा अनक्षरात्मक मिले हुए शब्दोंको एक साथ ग्रहण कर सकते हैं अतः आपको बार-बार नमस्कार
___-.-१. कारणम् । २. ब्रह्मणा सर्वज्ञेनोक्ता। ३. विद्वांस्त्वं द०, ल०।४. वायुकाञ्चीदामा। ५. विवित्सतः ट. वैतमिच्छवः लब्धुमिच्छव इत्यर्थः । 'विद्ल लाभे' इति धातोरुत्पन्नत्वात् । ६. नमस्त्रात्रे ल०। स्तात् अस्तु। ७. कोष्ठागारिकतभूरिधान्यानामविनष्टाव्यतिकीर्णानां यथास्थानं तथैवावस्थानमवधारितप्रन्थार्थानां यस्यां बदौ सा कोष्ठबुद्धिः। ८. विशिष्टक्षेत्रकालादिसहायमेकमप्युप्तं बीजमनेकबीजप्रदं यथा भवति तथैकबीजपदग्रहणादनेकपदार्थप्रतिपत्तिर्यस्यां बुद्धौ सा बीजबुद्धिः । ९. आदावन्ते यत्र तत्र चैकपदग्रहणात समस्तग्रन्थार्थस्यावधारणा यस्यां बुद्धौ सा पदानुसारिणी बुद्धिः । १०. सं सम्यक्संकरव्यतिकरव्यतिरेकेण भिन्नं विभक्तं शब्दरूपं शृणोतीति संभिन्नश्रोतऋद्धिः द्वादशयोजनायामनवयोजनविस्तार चक्रवरस्कन्धावारोत्पन्नतरकरभाद्यक्षरानक्षरात्मकशब्दसंदोहस्यान्योन्यं विभिन्नस्यापि युगपत्प्रतिभासो यस्यामृद्धौ सत्यां भवति सा संभिन्नश्रोत्रीत्यर्थः ।