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आदिपुराणम्
सन्धराच्छन्दः श्रीमनग्याब्जिनीनां हृदयमुकुलितं धुन्वदाधाय बोधं
मिथ्यावादान्धकारस्थितिमपघटयद् वाङ्मयूखातामैः । 'सद्धृतं शुद्धमार्गप्रकटनमहिमालम्बि यद् मनबिम्ब
प्रस्पीदर्दि जैनं जगति विजयतां पुण्यमेतत् पुराणम् ॥२१॥
इत्याचे भगवज्जिनसेनाचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे कथामुखवर्णनं नाम प्रथमं पर्व ॥१॥
अवश्य हैं परन्तु सूर्यकी भाँति प्रकाशित नहीं कर पाते ।२०९॥ बोध-सम्यग्ज्ञान (पक्षमें विकास ) की प्राप्ति कराकर सातिशय शोभित भव्य जीवोंके हृदयरूपी कमलोंके संकोचको दूर करनेवाला, वचनरूपी किरणोंके विस्तारसे मिथ्यामतरूपी अन्धकारको नष्ट करनेवाला सवृत्त-सदाचारका निरूपण करनेवाला अथवा उत्तम छन्दोंसे सहित (पक्षमें गोलाकार) शुद्ध मार्ग-रबत्रयरूप मोक्षमार्ग (पक्षमें कण्टकादिरहित उत्तम मार्ग) को प्रकाशित करनेवाला और इद्धद्धि-प्रकाशमान शब्द तथा अर्थरूप सम्पत्तिसे (पक्षमें उज्ज्वल किरणोंसे युक्त) सूर्यबिम्बके साथ स्पर्धा करनेवाला यह जिनेन्द्रदेवसम्बन्धी पवित्र-पुण्यवर्धक पुराण जगत्में सदा जयशील रहे ।।२१०।। इस प्रकार भार्ष नामसे प्रसिद्ध भगवज्जिनसेनाचार्य विरचित त्रिषष्टिलक्षण महापुराणके
संग्रहमें 'कथामुखवर्णन' नामक प्रथम पर्व समाप्त हुभा ॥१॥
१. कृत्वा । २. सतां वृत्तं यस्मिन् तत् । ३. ब्रघ्नः भानुः ।