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आदिपुराण
विषय
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पृष्ठ द्वारा मांगलिक स्तुति और जागरण गीतों को पूर्वापर विदेहक्षेत्रों के समान छह कर्म, सुनकर उसकी नींद टूट गयी। वह प्रातः वर्णाश्रम तथा ग्राम, नगर आदि की व्यवस्था कालिक कार्यों से निवृत्त हो भगवान् के पास करने का विचार करना । इन्द्र ने भगवान् पहुंची और स्वप्नों का फल पूछने लगी, की आज्ञानुसार जिनमन्दिर की रचना की, भगवान् ने अवधिज्ञान से विचार कर उत्तर फिर उसके बाद चारों दिशाओं में कोसल दिया कि तुम्हारे चक्रवर्ती पुत्र होगा। यह
आदि छोटे-बड़े अनेक देशों की रचना सुनकर वह बहुत ही प्रसन्न हुई । उसी समय
की - --
३५७-३६० व्याघ्र का जीव जो कि सर्वार्थसिद्धि में अह
गाँवों के नाम तथा उनकी सीमा आदि का मेन्द्र था वहाँ से च्युत होकर यशस्वती के
वर्णन
३६०-३६२ गर्भ में आया। उसकी गर्भावस्था का
नगरों का विभाग करने के बाद उन्होंने असि, वर्णन
३३४-३३७
मसि, कृषि आदि छह आजीविकोपयोगी कर्मों नव मास बाद यशस्वती ने पुत्ररत्न उत्पन्न
की तथा क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन किया। वह अपनी भुजाओं से पृथ्वी का
वर्णों की व्यवस्था की । भगवान् ने यह सब आलिंगन करता हुआ उत्पन्न हुआ था। व्यवस्था आषाढ़ कृष्ण प्रतिपद् के दिन की इसलिए निमित्तज्ञानियों ने घोषणा की थी
थी । उसी दिन से कृतयुग का प्रारम्भ हुआ कि यह चक्रवर्ती होगा
३३७-३३६ था। नाभिराज की सम्मति से देवों के द्वारा बालक भरत क्रमशः यौवन अवस्था को प्राप्त भगवान् का राज्याभिषेक, ऋषभदेव के हुआ । उसके शारीरिक और आन्तरिक गुणों
मस्तक पर मुकुट का बाँधा जाना ३६२-३६७ का वर्णन
३३६-३४५ | राज्य पाकर भगवान् ने इस प्रकार के नियम षोडश पर्व
बनाये कि जिससे कोई अन्य वर्ण किसी
अन्य वर्ण की आजीविका न कर सके। बषभदेव की देवी यशस्वती से वृषभसेन आदि
उन्होने हर-एक वर्ण के कार्य निश्चित किये, निन्यानबे पुत्र तथा ब्राह्मी नाम की पुत्री
उनकी विवाहव्यवस्था मर्यादित की, हुई। दूसरी रानी सुनन्दा से बाहुबली नामक
दण्डनीति प्रचारित की और हरि, अकम्पन, एक पुत्र और सुन्दरी नाम की एक पुत्री
काश्यप और सोमप्रभ इन चार भाग्यउत्पन्न हुई। बाहुबली कामदेव थे। उनके
शाली क्षत्रियों को बुलाकर उनका सत्कार शरीर का वर्णन
३४६-३५०
किया तथा उन्हें महामण्डलेश्वर बनाया। भगवान् वृषभदेव ने उन सबके लिए अनेक
इस प्रकार राज्य करते हुए भगवान् के श्रेषठ प्रकार के आभूषण बनवाये थे । उन आभू
लाख पूर्व वर्ष व्यतीत हो गये। ३६७-३७२ षणों में हार के विविध भेदों का वर्णन ३५०-३५२
सप्तदश पर्व भगवान के द्वारा ब्राह्मी और सुन्दरी को अंक विद्या और लिपिविद्या सिखाना तथा पुत्रों
नीलांजना अप्सरा का नृत्य देखते-देखते को विद्याएँ पढ़ाना । धीरे-धीरे भगवान् का
भगवान् को वैराग्य होना और संसार के बीस लाख पूर्व वर्षों का महान् काल व्यतीत
स्वरूप का चिन्तवन करना ३७३-३७६ हो गया
३५२-३५७ | लोकान्तिक देवों का आगमन, भरत का काल के प्रभाव से भोगभूमि का अन्त होकर
राज्याभिषेक और अन्य पुत्रों को यथा योग्य कर्मभूमि का प्रारम्भ होना और भगवान का
सम्पत्ति देना। दमी समय भगवान् का