Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 22] [जीवाजीवाभिगमसूत्र 15. अनेक सिद्ध-जो एक समय में एक साथ अनेक सिद्ध हुए हों वे अनेकसिद्ध हैं। सिद्धान्त में एक समय में अधिक से अधिक 108 जीव सिद्ध हो सकते हैं। इस सम्बन्ध में सिद्धान्त की एक संग्रहणी' गाथा में कहा गया है आठ समय तक जब निरन्तर सिद्ध होते हैं तब एक से लगाकर वत्तीस पर्यन्त सिद्ध होते हैं। अर्थात् प्रथम समय में जघन्यतः एक, दो और उत्कृष्ट से बत्तीस होते हैं, दुसरे समय में भी इसी तरह एक से लेकर बत्तीस सिद्ध होते हैं। इस प्रकार आठवें समय में भी एक से लेकर बत्तीस सिद्ध होते हैं। इसके बाद अवश्य अन्तर पड़ेगा। जब तेतीस से लगाकर अड़तालीस पर्यन्त सिद्ध होते हैं तब सात समय पर्यन्त ऐसा होता है। इसके बाद अवश्य अन्तर पड़ता है। जब उनपचास से लेकर साठ पर्यन्त निरन्तर सिद्ध होते हैं तब छह समय तक ऐसा होता है / बाद में अन्तर पड़ता है। जब इकसठ से लगाकर बहत्तर पर्यन्त निरन्तर सिद्ध होते हैं तब पांच समय तक ऐसा होता है / बाद में अन्तर पड़ता है। जब तिहत्तर से लगाकर चौरासी पर्यन्त निरन्तर सिद्ध होते हैं तव चार समय तक ऐसा होता है / बाद में अवश्य अन्तर पड़ता है। जब पचासी से लगाकर छियानवे पर्यन्त निरन्तर सिद्ध होते हैं तब तीन समय तक ऐसा होता है। बाद में अवश्य अन्तर पड़ता है। जब सत्तानवे से लगाकर एक सौ दो पर्यन्त निरन्तर सिद्ध होते हैं तब दो समय तक ऐसा होता है / बाद में अन्तर पड़ता है। जब एक सौ तीन से लेकर एक सौ आठ निरन्तर सिद्ध होते हैं तब एक समय तक ही ऐसा होता है / बाद में अन्तर पड़ता ही है / इस प्रकार एक समय में उत्कृष्टत: एक सौ आठ सिद्ध हो सकते हैं / यह अनेकसिद्धों का कथन हुआ। इसके साथ ही अनन्तरसिद्धों का कथन सम्पूर्ण हुआ। परम्परसिद्ध-परम्परसिद्ध अनेक प्रकार के कहे गये हैं / यथा प्रथमसमयसिद्ध, द्वितीयसमयसिद्ध, तृतीयसमयसिद्ध यावत् असंख्यातसमयसिद्ध और अनन्तसमयसिद्ध / जिनको सिद्ध हुए एक समय हा वे तो अनन्तरसिद्ध होते हैं अर्थात् सिद्धत्व के प्रथम समय में वर्तमानसिद्ध अनन्तरसिद्ध कहलाते हैं। अतः सिद्धत्व के द्वितीय आदि समय में स्थित परम्परसिद्ध होते हैं / मूल पाठ में जो 'पढमसमयसिद्ध' पाठ है वह परम्परसिद्धस्व का प्रथम समय अर्थात् सिद्धत्व का द्वितीय समय जानना चाहिए / अर्थात् जिन्हें सिद्ध हुए दो समय हुए वे प्रथमसमय परम्परसिद्ध 1. बत्तीसा अडयाला सट्री बावत्तरी य बोद्धब्धा / चुलसीइ छन्न उइ उ दुरहियमद्रुत्तरसयं च // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org