Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ प्रथम प्रतिपत्ति : मोवाभिगम का स्वरूप और प्रकार] [21 8. स्त्रीलिंगसिद्ध--स्त्री शरीर से जो सिद्ध हुए हों वे स्त्रीलिंगसिद्ध हैं / यथा मल्लि तीर्थकर, मरुदेवी प्रादि / ___ लिंग' तीन तरह का है-वेद, शरीरनिष्पत्ति और वेष / यहाँ शरीर-रचना रूप लिंग का अधिकार है। वेद और नेपथ्य का नहीं / वेद मोहकर्म के उदय से होता है / मोहकर्म के रहते सिद्धत्व नहीं पाता / जहाँ तक वेष का सवाल है वह भी मुक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं रखता / अतः यहाँ स्त्रीशरीर से प्रयोजन है। ___ दिगम्बर परम्परा की मान्यता है कि स्त्री-शरीर से मुक्ति नहीं होती जबकि यहाँ 'स्त्रीलिंगसिद्ध' कह कर स्त्रीमुक्ति को मान्यता दी गई है। 'स्त्री की मुक्ति नहीं होती' इस मान्यता का कोई तार्किक या प्रागमिक आधार नहीं है। मुक्ति का सम्बन्ध शरीर-रचना के साथ न होकर ज्ञान-दर्शनचारित्र के प्रकर्ष के साथ है / स्त्री-शरीर में ज्ञान-दर्शन-चारित्र का प्रकर्ष क्यों नहीं हो सकता ? पुरुष की तरह स्त्रियाँ भी ज्ञान-दर्शन-चारित्र का प्रकर्ष कर सकती हैं। दिगम्बर परम्परा में वस्त्र को चारित्र का प्रतिबन्धक माना गया है और स्त्रियाँ वस्त्र का त्याग नहीं कर सकतीं, इस तर्क से उन्होंने स्त्री की मुक्ति का निषेध कर दिया है। परन्तु तटस्थ दृष्टि से सोचने पर स्पष्ट हो जाता है कि वस्त्र का रखना मात्र चारित्र का प्रतिबंधक नहीं होता / वस्त्रादि पर ममत्व होना चारित्र का प्रतिबंधक है। वस्त्रादि के अभाव में भी शरीर पर ममत्व है तो शरीर का त्याग भी चारित्र के लिए आवश्यक मानना होगा / शरीर का त्याग तो नहीं किया जा सकता, ऐसी स्थिति में क्या चारित्र का पालन नहीं हो सकता ? निष्कर्ष यह है कि वस्त्रादि के रखने मात्र से चारित्र का प्रभाव नहीं हो जाता, आगम में तो मूर्छा को परिग्रह कहा गया है। वस्तुओं को नहीं / अतः वस्त्रों का त्याग न करने के कारण स्त्रियों में चारित्र का प्रकर्ष न मानना और फलतः उन्हें मुक्ति की अधिकारिणी न मानना तर्क एवं आगमसम्मत नहीं है। 9. पुरुषलिंगसिद्ध-पुरुष-शरीर में स्थित होकर जो सिद्ध हुए हों वे पुरुषलिंगसिद्ध हैं / 10. नपुंसकलिंगसिद्ध-स्त्री-पुरुष से भिन्न नपुंसक शरीर के रहते जो सिद्ध हों वे नपुंसकलिंगसिद्ध हैं / कृत्रिम नपुंसक सिद्ध हो सकते हैं, जन्मजात नपुंसक सिद्ध नहीं होते। 11. स्वलिंगसिद्ध-जो जैनमुनि के वेष रजोहरणादि के रहते हुए सिद्ध हुए हों, वे स्वलिंग सिद्ध है। 12. अन्यलिंगसिद्ध–जो परिव्राजक, संन्यासी, गेरुपा वस्त्रधारी आदि अन्य मतों के वेष के रहते सिद्ध हुए हों, वे अन्यलिंग सिद्ध हैं। 13. गहिलिंगसिद्ध-जो गृहस्थ के वेष में रहते हुए सिद्ध हुए हों, वे गृहिलिंगसिद्ध हैं। जैसे मरुदेवी माता। 14. एकसिद्ध–जो एक समय में अकेले ही सिद्ध हुए हो, वे एकसिद्ध हैं। 1. लिंमं च तिविहं-वेदो सरीरनिवित्ती नेवत्थं च। इह सरीरनिव्वत्तीए अहिगारोन वेय-देवत्थेहि।-नन्दी Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal use only www.jainelibrary.org