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स्वसमय वक्तव्यताधिकारः आदि के उपभोग की क्रिया या सिद्धि से जो उत्पन्न होते हैं वे सुख सैद्धिक कहे जाते हैं । कोड़े से पीटा जाना, गरम लोहे से दागा जाना आदि सिद्धि या क्रिया द्वारा जो दुःख उत्पन्न होते हैं वे सैद्धिक दुःख कहे गये हैं । जो अकस्मात् उत्पन्न होता है, जिसके बाहरी कारण दिखाई नहीं पड़ते वैसा आन्तरिक आनन्द रूप सुख असैद्धिक सुख कहलाता है । इसी प्रकार बुखार, सिर में दर्द, पेट में शूल आदि के रूप में जो दुःख अपने अंगों से उत्थित होते हैं-उत्पन्न होते हैं वे असैद्धिक दुःख कहे गये हैं । ये दोनों ही प्रकार के सुख एवं दुःख मनुष्य के अपने पुरुषार्थ से उत्पन्न नहीं होते । तथा ये न काल आदि किसी अन्य के द्वारा ही निष्पन्न किये जाते हैं । इन दोनों प्रकार के सुख दुःख को प्राणी पृथक् पृथक् भोगते हैं । सवाल उठता है-ये सुख
और दुःख प्राणियों को किस कारण होते हैं ? यह अवगत कराने हेतु नियतिवादी अपना अभिप्राय संगइअंसांघतिकं शब्द द्वारा बतलाता है।
सम्यक्-अपने परिणाम से भली भांति जो गति आती है उसे संगति कहा जाता है । इसका आशय यह है कि जब जिस प्राणी को सुख दुःख की अनुभूति करनी होती है वह वैसी स्थिति जिससे उत्पन्न होती है उसे सांघतिक कहा गया है वह नियति है उस नियति द्वारा जो सुख दुःख उत्पन्न होते हैं वे सांघतिक हैं।
____यों पूर्वोक्त रूप से जो कहा गया है उसके अनुसार प्राणियों के सुख तथा दुःख उनके अपने पुरुषार्थ या उद्यम द्वारा कृत नहीं हैं किन्तु वे उसकी नियति द्वारा कृत हैं, अतएव वे सांघतिक कहे जाते हैं । यहां सुखात्मक दुःखात्मक अनुभूति के विषय में कतिपय सिद्धान्तवादियों का यह जो विवेचन किया गया है वह उनका स्वीकृत सिद्धान्त है । कहा गया है-शुभ या अशुभ, अच्छा या बुरा जो भी पदार्थ वस्तु प्राप्तव्य हैप्राप्त होने योग्य है, वह नियति के बल से मनुष्य को अवश्य प्राप्त होगी । जो प्राप्त न होने योग्य है, जो अभाव्य है-नहीं होने योग्य है वह प्राणियों द्वारा महान प्रयत्न करने पर भी नहीं होती । जो भावी-होने वाला है, उसका कभी नाश नहीं होगा ।
एव मेयाणि जंपंता, बाला पंडिअमाणिणो । निययानिययं संतं, अयाणंता अबुद्धिया ॥४॥ छाया - एवमेतानि जल्पंतो बालाः पण्डितमानिनः ।
नियतानियतं सन्त मजानन्तोऽबुद्धिकाः ॥ अनुवाद - पहले जो चर्चित हुए हैं वे-नियतिवादी अज्ञानी हैं, किन्तु वे अपने आपको पंडित ज्ञानवान मानते हैं, कहते हैं । वास्तव में सुख तथा दुःख एक अपेक्षा से नियत है-निश्चित है तथा एक अपेक्षा से अनियतअनिश्चित है अर्थात् वे नियतानियत हैं किन्तु इसे नहीं जानते हुए नियतिवादी ऐसा स्वीकार नहीं करते ।
टीका - एवं श्लोकद्वयेन नियतिवादिमतमुपन्यस्यास्योत्तर दानायाह । एवमित्यनन्तरोक्तस्योपप्रदर्शने। एतानि पूर्वोक्तानि नियतिवादाश्रितानि वचनानि जल्पन्तोऽभिदधतो बाला इव बाला अज्ञाः सदसद्विवेक विकला अपि सन्तः पण्डितमानिन आत्मानं पण्डितं मन्तुं शीलं येषां ते तथा किमिति त एव मुच्यन्त ? इति तदाह- ) यतो 'निययानिययं संतमिति' सुखादिकं किंचिन्नियतिकृतम्अवश्यंभाव्युदयप्रापितं तथा अनियतम्आत्मपुरुषकारेश्वरादिप्रापितं सत् नियतिकृतमेवैकान्तेनाश्रयन्ति, अतोऽजानानाःसुखदुःखादिकारणमबुद्धिकाः बुद्धिरहिता
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