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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् गले में फाँसी का फन्दा डालकर मारे जाते हैं । पत्थरों के ढेर से वे उस विषम स्थान में पीटे जाते हैं । वे वहाँ केवल रो ही सकते हैं और कुछ नहीं कर पाते । यहाँ आया हुआ 'तु' शब्द अवधारणा सूचक है ।
भंजंति णं पुव्वमरी सरोसं, समुग्गरे ते मुसले गहेतुं । ते भिन्नदेहा रुहिरं वमंता, ओमुद्धगा धरणितले पडंति ॥१९॥ छाया - भञ्जन्ति पूर्वारयः सरोषं समुद्राणि मुसलानि गृहीत्वा ।
ते भिन्नदेहाः रुधिरं वमन्तोऽधोमुखाः धरणीतले पतन्ति ॥ अनुवाद - परमाधामी देव अपने पहले के दुश्मन के समान नारकीय प्राणियों को हाथ में मुद्गर और मूसल लेकर मारते हैं । उनके शरीर को छिन्न भिन्न कर डालते हैं । यों बुरी तरह मारे पीटे जाते हुए वे नारकीय प्राणी नीचा मुख किये भूमि पर गिर पड़ते हैं । उनके मुँह से खून बहता रहता है ।
टीका- 'णम्' इति वाक्यालङ्कारे पुर्वमरय इवारयो जन्मन्तरवैरिण इव परमाधार्मिका यदिवा-जन्मान्तरापकारिणो नारका अपरेषामङ्गानि 'सरोष' सकोपं समुद्राणि मुसलानि गृहीत्वा ‘भञ्जन्ति' गाढप्रहारै रामदयन्ति, ते च नारकास्त्राणरहिताः शस्त्रप्रहारैर्भिन्नदेहा रुधिरमुद्वमन्तोऽधोमुखा धरणितले पतन्तीति ॥१९॥ किञ्च -
टीकार्थ - इस गाथा में 'णं' शब्द वाक्यालंकार के रूप में आया है । नारकीय जीवों को अपने पूर्व जन्म के शत्रु के समान मानते हुये परमाधामी देव तथा अन्य जन्म के नारकीय जीव जिनका अपकार किया गया हो, उन नारकीय जीवों के क्रोध के साथ मुद्गर, मूसल आदि की भारी चोटों द्वारा अंग अंग को तोड़ डालते हैं । वे नारकीय जीव, जिन्हें वहाँ कोई बचा नहीं पाता, शस्त्रों के प्रहार से जिनके मस्तक चूर-चूर हो गये हैं, मुंह से खून बह रहा है, नीचा मुँह किये भूमि पर गिर पड़ते हैं ।
अणासिया नाम महासियाला, पागब्मिणो तत्थ सयायकोवा । खजति तत्था बहुकूरकम्मा, अदूरगा संकलियाहि बद्धा ॥२०॥ छाया - अनशिता नाम महाशृगालाः प्रगल्भिणस्तत्र सदा सकोपाः ।
खाद्यन्ते तत्र बहुकूरकर्माणः अदूरगाः शृङ्खलैर्बद्धाः ॥ अनुवाद - उस नरक में विशालकाय, सदैव क्रोध से तमतमाते, अत्यन्त उद्दण्ड, भूखे गीदड़ निवास करते हैं । वे सांकलों से बंधे हुये परस्पर समीपवर्ती नारकीय पापी प्राणियों को खाते रहते हैं ।
टीका - महादेहप्रमाणा महान्तः-शृगाला नरकपालविकुर्विता 'अनशिता' बुभुक्षिताः, नामशब्दः सम्भावनायां, सम्भाव्यत एतन्नरकेषु, 'अतिप्रगल्भिता' अतिधृष्टा रौद्ररूपा निर्भया: 'तत्र' तेषु नरकेषु सम्भवन्ति 'सदावकोपा' नित्यकुपिताः तैरेवम्भूतैः शृगालादिभिस्तत्र व्यवस्थिता जन्मान्तरकृत बहुक्रूरकर्माणः शृङ्खलादिभिर्बद्धा अयोमयनिगडिता 'अदूरगाः परस्परसमीपवर्तिनो 'भक्षयन्ते' खण्डशः खाद्यन्त इति ॥२०॥ अपि च -
- टीकार्थ – उस नरक में नरकपालों द्वारा विकुर्वित-बनाये हुये विशालकाय, बुभुक्षित, अत्यन्त धृष्ट, भयानक रूप युक्त, निडर गीदड़ रहते हैं । इस गाथा में 'नाम' शब्द सम्भावना के रूप में प्रयुक्त हुआ है जिसका
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