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नरकविभक्ति अध्ययनं - वेतालिए नाम महाभितावे, एगायते पव्वयमंतलिक्खे । .. हम्मति तत्था बहुकूरकम्मा, परं सहस्साण मुहुत्तगाणं ॥१७॥ छाया - वैक्रियो नाम महाभिताप एकायतः पर्वतोऽन्तरिक्षे ।
हन्यन्ते तत्स्थाः बहुक्रूरकर्माणः परं सहस्त्राणां मुहूर्त्तकाणाम् ॥ अनुवाद - अत्यन्त तापप्रद आकाश में परमाधामी देवों द्वारा निर्मित एक अत्यधिक विशाल शिलामय पर्वत है । वहां रहने वाले नारकीय प्राणी सहस्त्रों मुहूर्तों से भी अधिक समय तक परमाधामी देवों द्वारा हतप्रतिहत किये जाते हैं।
टीका - नाम शब्दः सम्भावनायां, सम्भाव्यते एतन्नरकेषु यथाऽन्तरिक्षे 'महाभितापे' महादुःखैककार्ये एकशिलाघटितो दीर्घः 'वेयालिए'त्ति वैक्रियः परमाधार्मिकनिष्पादितः पर्वतः तत्र तमोरुपत्वान्नरकाणामतो हस्त स्पर्शिकया समारूहन्तो नारका 'हन्यन्ते' पीड्यन्ते, बहूनि क्रूराणि जन्मान्तरोपात्तानि कर्माणि येषां ते तथा, सहस्रसंख्यानां मुहुर्तानां परं-प्रकृष्टं कालं, सहस्त्रशब्दस्योपलक्षणार्थत्वात्प्रभूतं कालं हन्यन्त इति यावत्॥१७॥
टीकार्थ - यहां नाम शब्द सम्भावना के अर्थ में आया है । उससे सूचित होता है कि वहाँ ऐसा होना संभव है। आकाश में परमाधामी देवों द्वारा एक शिला से रचित बड़ा पर्वत है । वह अत्यन्त तापप्रद, घोर दुखदायी
और अन्धकारमय है । पूर्वजन्म में जिन्होंने अत्यन्त क्रूर कर्म किये हैं, वे नारकीय प्राणी हाथ से छू-छूकर उस पर्वत पर चढ़ते हैं । परमाधामी देवों द्वारा हजार मुहूर्तों से भी अधिक समय तक मारे पीटे जाते हैं । यहाँ सहस्त्र शब्द सांकेतिक है । उससे यह सूचित है कि वे नारकीय जीव दीर्घकालपर्यन्त वहाँ यातना पाते हैं।
संबाहिया दुक्कडिणो थणंति, अहो य राओ परितप्पमाणा । एंगत कूडे नरए महंते, कूडेण तत्था विसमे हता उ ॥१८॥ छाया - संबाधिताः दुष्कृतिनःस्तनन्ति, अह्नि च रात्रौ परितप्यमानाः ।
एकान्तकूटे नरके महति कूटेन तत्स्थाः विषमे हतास्तु । अनुवाद - सम्बाधित-अनवरत उत्पीड़ित किये जाते पापी प्राणी रात-दिन रोते चिल्लाते रहते हैं । एकान्त दुःखप्रद अत्यन्त विस्तीर्ण और कठोर नरक में पतित प्राणी गले में फांसी डालकर मारे जाते हैं, वे रोते रहते हैं।
टीका - तथा सम्-एकीभावेन बाधिताः पीडिता दुष्कृतं-पापं विद्यते येषां ते दुष्कृतिनो महापापाः 'अहो' अहनि तथा रात्रौ च 'परितप्यमाना' अतिदुःखेन पीड्यमानाः सन्त: करुणं-दीनं 'स्तनन्ति' आक्रन्दन्ति, तथैकान्तेन 'कूटानि' दुःखोत्पत्तिस्थानानि यस्मिन् स तथा तस्मिन् एवम्भूते नरके 'महति' विस्तीर्णे पतिताः प्राणिनः तेन च कुटेन गलयन्त्रपाशादिना पाषाणसमूहलक्षणेन वा 'तत्र' तस्मिनन्विषमे हताः तु शब्दस्यावधारणार्थत्वात् स्तनन्त्येव केवलमिति ॥१८॥ अपिच -
___टीकार्थ - एक साथ पीड़ित किये जाते हुये घोर पापी जीव अहर्निश कष्ट से व्यथित होकर बुरी तरह रोते रहते हैं । नरक एकान्त रूप से दुःखोत्पति का स्थान है । वह बड़ा विस्तृत है । पतित प्राणी वहाँ
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