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नरकविभक्ति अध्ययन टीकार्थ - वहाँ एक ऐसा स्थान है जो सदैव सब ओर से अत्यन्त उष्ण बना रहता है । वह दृढ़ बन्धन युक्त निधत्त, निकाचित कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त होता है । वह स्वभाव से ही अत्यधिक क्लेशप्रद है। नरकपाल नारकीय जीवों को, जिन्हें कहीं भी वहाँ शरण नहीं मिलती, हाथ पैर बांधकर ऐसे दुःखपूर्ण स्थान में फेंक देते हैं, डाल देते हैं और वहाँ उस अवस्था में उन्हें दुश्मन की तरह डण्डों से पीटते हैं ।
भंजंति बालस्स वहेण पुट्टी, सीसंपि भिंदंति अओघणेहिं । ते भिन्न देहा फलगंव तच्छा, तत्ताहिं आराहिं णियोजयंति ॥१४॥ छाया - भञ्जन्ति बालस्य व्यथेन पृष्ठं, शीर्षमपि भिन्दन्त्य योधनेन ।
ते भिन्न देहाः फलकमिव तष्टा स्तप्ताभिराराभिर्नियोज्यन्ते ॥ अनुवाद - नरकपाल लट्ठी आदि से मार मार कर अज्ञानी नारकीय प्राणी की पीठ तोड़ देते हैं । लोहे के हथोडे मार मार कर उनका मस्तक छिन्न भिन्न कर देते हैं-फोड़ डालते हैं। उनके चूर-चूर हुए शरीर को वे तपाये हुए लोहे के आरे से काठ की तरह चीर डालते हैं।
टीका - 'बालस्य' वराकस्य नारकस्य व्यथयतीति व्यथो-लकुटादिप्रहारस्तेन पृष्ठं भञ्जयन्ति' मोटयन्ति, तथा शिरोऽप्ययोमयेन घनेन 'भिदंन्ति' चूर्णयन्ति, अपिशब्दादन्यान्यप्यङ्गोपाङ्गानि द्रुघणघातैश्चूर्णयन्ति 'ते' नारका 'भिन्न देहाः' चूर्णिताङ्गोपाङ्गा फलकमिवोभाभ्यां पार्वाभ्यां क्रकचादिना 'अवतष्टाः' तनूकृताः सन्तस्तप्ताभिराराभिः प्रतुद्यमानास्तप्तत्रपुपानादिके कर्मणि 'विनियोज्यन्ते' व्यापार्यन्त इति ॥१४॥ किञ्च -
टीकार्थ - नरकपाल पीड़ाप्रद लट्ठी आदि के प्रहार द्वारा पीट-पीटकर अभागे नारकीय प्राणी की कमर तोड़ देते हैं । लोहे के हथोड़े से मार मारकर उसका सिर फोड़ डालते हैं-चूर-चूर कर देते हैं । यहाँ प्रयुक्त अपि शब्द द्वारा यह संकेतिक है कि वे नारकीय जीव के दूसरे अंग उपांग भी छिन्न-भिन्न कर डालते हैं । आरे द्वारा उनके शरीर के दोनों पार्श्व चीरकर तराश दिये जाते हैं फिर उन्हें गर्म आरे द्वारा और पीड़ा दी जाती है तथा सीसा आदि पीने हेतु मजबूर किया जाता है ।
अभिमुंजिया रूद्द असाहुकम्मा, उसुचोइया हत्थिवहं वहति । एंगं दुरुहित्तु दुवे ततो वा, आरुस्स विझंति ककाणओ से ॥१५॥ छाया - अभियोज्य रौद्रसाधुकर्मणः, इषुचोदितान् हस्तिवहं वाहयन्ति ।
___ एकं समारोह्य द्वौ त्रीन्वा, आरुष्य विध्यन्ति मर्माणि तस्य ॥
अनुवाद - नरकपाल पापकर्मा नारकीय जीवों के पूर्वजन्म में उन द्वारा किये गये अशुभकर्मों को याद कराकर उन्हें बाण के प्रहार से पीड़ित करते हैं । जैसे भार ढोने के लिए अंकुश मार-मारकर हाथी को चलाया जाता है वैसा ही वे उनके साथ करते हैं । उनकी पीठ पर एक या दो या तीन दूसरे नारकीय प्राणी को बिठाकर उन्हें चलने को मजबूर करते हैं, तथा क्रुद्ध होकर उनके मर्मस्थानों पर चोटें लगाते हैं । ।
टीका - रौद्रकर्मण्यपरनारकहननादिके अभियुज्य' व्यापार्य यदिवा जन्मान्तरकृतं “रौद्रं"सत्त्वोपघातकार्यम् 'अभियुज्य' स्मारयित्वा असाधूनि-अशोभनानि जन्मान्तरकृतानि कर्माणि-अनुष्ठानानि येषां ते तथा तान्
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