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धर्म अध्ययन छाया - एतदर्थं स प्रेक्ष्य, परमार्थानुगामुकम् ।
___ निर्ममो निरहङ्कारः, चरेद् भिक्षुर्जिनाहितम् ॥
अनुवाद - उपर्युक्त कथन को समझता हुआ, सम्यक् दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र ही मोक्ष का मार्ग है। यह जानकर निर्मम-ममत्वरहित, निरहंकार-अभिमान वर्जित भिक्षु वीतराग प्ररूपित धर्म का अनुसरण करे ।
टीका- किञ्चान्यत्-धर्मरहितानांस्वकृतकर्मविलुप्यमानानामैहिकामुष्मिकयोर्न कश्चित्राणायेति एनं पूर्वोक्तमर्थं स प्रेक्षापूर्वकारी 'प्रत्युपेक्ष्य' विचार्यावगम्य च परमः-प्रधानभूतो (ऽर्थो) मोक्षः संयमो वा तमनुगच्छतीति तच्छीलच परमार्थानुगामुकः-सम्यग्दर्शनादिस्तं च प्रत्युपेक्ष्य, क्त्वाप्रत्ययान्तस्य पूर्वकालवाचितया क्रियान्तर सव्यपेक्षत्वात् तदाह-निर्गतं ममत्वं बाह्याभ्यन्तरेषु वस्तुषु यस्मादसौ निर्मम:तथा निर्गतोऽहङ्कारः-अभिमानः पूर्वैश्वर्यजात्यदिमदजनितस्तथा तपः स्वाध्यायलाभादिजनितो वा यस्मादसौ निरहङ्कारो-रागद्वेषरहित इत्यर्थः, स एवम्भूतो भिक्षुर्जिनैराहित:प्रतिपादितोऽनुष्ठितो वा यो मार्गो जिनानां वा सम्बन्धी योऽभिहितो मार्गस्तं 'चरेद्' अनुतिष्ठेदिति ॥६॥
टीकार्थ - अपने द्वारा किए हुए कर्मों द्वारा विलुप्यमान-पीड्यमान दुःख भोगते हुए धर्मरहित प्राणी को इस लोक या परलोक में कोई भी त्राण नहीं दे सकता । यह पहले कहा जा चुका है । बुद्धिमान पुरुष यह जानकर तथा सम्यक् दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र ही परमार्थ-मोक्ष या संयम का कारण है । यह विचारकर बाह्य एवं आभ्यान्तर वस्तुओं में ममत्व न रखे । व्याकरण की दृष्टि से क्त्वा प्रत्ययान्त शब्द पर्वकालिक अर्थ
॥ लिए रहता है । इसलिए वह अन्य क्रिया की अपेक्षा रखता है। अतएव शास्त्रकार ने इसी रूप में यहाँ बतलाया है । साधु अपने पहले ऐश्वर्य तथा जाति के मद से जनित तपश्चरण, स्वाध्याय एवं लाभ आदि से उत्पन्न अहंकार-अभिमान भी न करे किन्तु वह राग द्वेष रहित होकर वर्तनशील रहे । इस प्रकार रहता हुआ तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित अनुष्ठित-आचरित मार्ग का अनुसरण करे ।
चिच्चा वितं च पुत्ते य, णाइओ य परिग्गहं । चिच्चा ण णंतगं सोयं, · निरवेक्खो परिव्वए ॥७॥ छाया - त्यत्क्वा वित्तञ्च पुत्रांश्च, ज्ञातींश्च परिग्रहम् ।
त्यक्त्वाऽन्तगं शोकं, निरपेक्षः परिव्रजेत् ॥ अनुवाद - मनुष्य वित्त-धन सम्पत्ति, पुत्र ज्ञाति-स्वजाति जन तथा परिग्रह एवं आन्तरिक शोकअशांत भाव का परित्याग कर निरपेक्ष सभी अपेक्षाओं, आसक्तियों से विवर्जित होकर परिव्रज्या कासंयम का पालन करे ।
टीका - अपिच-संसारस्वभावपरिज्ञानपरिकर्मितमतिर्विदितवेद्यः सम्यक् 'त्यस्त्वा' परित्यज्य किं तद?वित्तं द्रव्यजातंपुत्रांश्च त्यक्त्वा, पुढेष्वधिकः स्नेहो भवतीति पुत्रग्रहणं, तथा 'ज्ञातीन्' स्वजनांश्च त्यक्त्वा तथा 'परिग्रहं' चान्तरममत्वरूपंणकारो वाक्यालङ्कारे अन्तं गच्छतीत्यन्तगो दुष्परित्यज इत्यर्थ: अन्तको वा विनाशकारीत्यर्थः आत्मनि वा गच्छतीत्यात्मग आन्तर इत्यर्थः तं तथाभूतं 'शोकं' संतापं 'त्यक्त्वा' परित्यज्य श्रोतो वामिथ्यात्वाविरतिप्रमादकषायात्मकं कर्माश्रवद्वारभूतं परित्यज्य पाठान्तरं वा 'चिच्चा णणंतगं सोयं' अन्त गच्छतीत्यन्तग
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