Book Title: Sutrakritang Sutra
Author(s): Sudarshanlal Acharya, Priyadarshan Muni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Shwetambar Sthanakvasi Jain Swadhyayi Sangh

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Page 657
________________ टीकानुवादक एवं विवेचक ओजस्वीवक्ता श्रद्धेय प्रियदर्शन मुनिजी 0 पौष सुदी १र वि.सं. २०३० को राताको ग्राम में श्रीमान् जीवराजजी सा. कूमट के आत्मज श्र माणकचन्दजी ने जन्म लेकर धर्मानुरागिणी माता श्रीमत बादामबाई जी की रत्नप्रसविनी कुक्षि को सफल बनाया 0 प्रखर प्रतिभा के धनी श्री माणकचन्दजी बाल्यकाल में सुशिक्षा, सुसंस्कारों को ग्रहण करने में तल्लीन रहे। तभी से संसार में रहते हुर भी मन से विरक्त वे विनय-विवेक-विनम्रता के उपासक बने रहे माता-पिता द्वारा दिए गए धार्मिक संस्कार श्रद्धेय आचार प्रवर श्री सोहनलालजी म. सा. का सान्निध्य पाकर पल्लवित, पुष्पित हुए एवं वि. सं. २०४४ में माघसुदी १० को बिजयनगर में आर्हती दीक्षा अंगीकार कर मुनि प्रियदर्शन' बनकर मोक्षमार्ग के सार्थवाह बन गए। 0 हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का अध्ययन कर न्याय, दर्शन, आगम, साहित्य-शास्त्र का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त करने में संलग्न हो गए । सम्यग संयमाराधना के महापथ पर नीर सदृश निरन्तर गतिशील रहते हुए 'ओजस्वीवक्ता' का यशोपार्जन किया । 0शुभदृष्टा, शुभस्रष्टा, शुभकर्ता श्रद्धेय प्रियदर्शन मुनिजी महाराज का व्यक्तित्व सौहार्द्रता, सहिष्णुता व निश्छलता का प्रतीक रहा । 'यथा अंतो तथा बहिः' की उक्ति को अपने जीवन-व्यवहार से सार्थक किया। 'पुण्य के पथ पर' उपन्यास के यशस्वी रचनाकार के रूप में अपने कृतित्व को नए आयाम दिए हैं, वहीं 'अतीत की स्मृतियाँ' के रूप में श्रद्धेय आचार्य प्रवर श्री सोहनलालजी म. सा. के जीवन-संस्मरण प्रस्तुतकर अपने आराध्यदेव के चरणों में श्रद्धा-अभिव्यक्त की है। डॉ. छगनलालजी शास्त्री। एम. ए. (त्रय) पी.एच.डी काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि, निम्बाषण । भारतीय वाङ्मय, आहत दर्शन और ाहित्य के राष्ट्रविश्रुत मर्मज्ञ प्रो. डॉ. छगनलालजी शास्त्रा एक ऐसे विद्याव्यासंगी प्रबुद्ध मनीषी हैं, जिनके जीवन का क्षणक्षण विगत पाँच दशाब्द से सारस्वताराधना में संलग्न हैं । डॉ. शास्त्री जी ने 'रिसर्च इन्स्टीट्यूट ऑफ प्राकृत जैनोलॉजी एवं अहिंसा, वैशाली तथा मद्रास विश्वविद्यालय चैन्नई जैसे उच्चतम शिक्षण केन्द्रों में यशस्वी प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएँ देते हुए युवा विद्वानों की एक सक्षम टीम तैयार की है जो देश के विभिन्न भाग में सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में कार्यशील हैं। साथ ही साथ अनेक साधु-साध्वियों ने भी डॉ. शास्त्रीजी से अध्ययन एवं शोधकार्य में मार्गदर्शन प्राप्त का असाधारण विद्वत्ता समर्जित की है ।। डॉ. शास्त्रीजी का साहित्य कृतित्व, उन द्वार संपादित, अनूदित एवं व्याख्यात लगभग तीन दर्जन पुस्तकों के रूप में सुविदित हैं । प्रस्तुत कृति इस श्रृंखला में एक महनीय अभिन्नति है।

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