Book Title: Sutrakritang Sutra
Author(s): Sudarshanlal Acharya, Priyadarshan Muni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Shwetambar Sthanakvasi Jain Swadhyayi Sangh

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Page 633
________________ आदाननामकं अध्ययन अनुवाद - जो पुरुष स्त्री सेवन नहीं करते, ब्रह्मचारी होते हैं, वे आदि मोक्ष-सबसे पहले मोक्षगामी होते हैं । जो बंधन से उन्मुक्त हैं वे असंयम-संयम रहित जीवन की कांक्षा-अभिलाषा नहीं करते । टीका - ये महासत्त्वाः कटुविपाकोऽयं स्त्री प्रसंग इत्यवमवधारण (त) या स्त्रियः सुगतिमार्गार्गलाः संसारवीथीभूताः सर्वाविनयराजधान्यः कपट जाल शताकुला महामोहनशक्तयो 'न सेवन्ते' न तत्प्रसंगमभिलषन्ति त एवंभूता जना इतरजनातीताः साधव आदौ-प्रथमं मोक्ष:-अशेषद्वन्द्वोपरमरूपो येषां ते आदिमोक्षाः, हुरवधारणे, आदिमोक्षा एव तेऽवगन्तव्याः, इदमुक्तं भवति-सर्वाविनयास्पदभूतः स्त्रीप्रसंगो यैः परित्यक्तस्त एवादिमोक्षाः - प्रधानं भूतमोक्षाख्यपुरुषार्थोद्यताः, आदि शब्दस्य प्रधानवाचित्वात्, न के वलमुद्यतास्ते जनाः स्त्रीपाशबन्धनोन्मुक्ततयाऽशेषकर्मबन्धनोन्मुक्ताः, सन्तो 'नावकाङ्क्षन्ति' नाभिलषन्ति असंयमजीवितम् अपरमपि परिग्रहादिकं नाभिलषन्ते, यदिवा परित्यक्तविषयेच्छाः सदनुष्ठानपरायणा मोक्षैकताना 'जीवितं' दीर्घकालजीवितं नाभिकाङ्क्षन्तीति ॥९॥ टीकार्थ - महासत्व-अत्यन्त आत्म पराक्रमशील पुरुष यह निश्चित मानते हैं कि स्त्री प्रसंग कटु विपाककठोर या दुःखद फलयुक्त होता है । स्त्रियां उत्तम गति के मार्ग में अर्गला-आगल या विघ्न रूप है, वे.संसार में भटकने हेतु वीथीभूत-मार्गरूप है । वे अविनय-विनयहीनता या उच्छृखलता की राजधानियां हैं । सैंकड़ों छल-जालों से आकुल है-व्याप्त है । वे अत्यधिक मोहनशक्ति से समन्वित है। इसलिये जो उनके प्रसंग-संसर्ग की अभिलाषा नहीं करते वे अन्य लोगों से उत्कृष्ट है या ऊँचे हैं । वे साधु हैं, वे सबसे पहले मोक्ष को प्राप्त करते हैं । जहां समस्त द्वन्द्व उपद्रव उपरत-शांत या निवृत्त हो जाते हैं । यहां 'हु' शब्द अवधारणा के अर्थ में है । तदनुसार वैसे पुरुषों को आदि मोक्ष-सबसे पहले मोक्षगामी जानना चाहिये । कहने का अभिप्राय यह है कि जिन्होंने सब प्रकार के अविनयो-विनय रहित उच्छृखल आस्पदभूत कारण रूप स्त्री प्रसंग का परित्याग कर दिया है वे मोक्ष संज्ञक मुख्य पुरुषार्थ को साधने में उद्यमशील है । यहां आदि शब्द प्रधान-मुख्य का बोधक है । तदनुसार वे पुरुष केवल उद्यत-उद्यमशील ही नहीं किन्तु स्त्री मूलक पाश बंधन से-जाल से उन्मुक्त, छूटे हुए होने के कारण समग्र कर्मों के बंधन से विमुक्त हैं । वे असंयम जीवित-संयम रहित जीवन की आकांक्षाअभिलाषा नहीं करते। परिग्रहादि अन्य की भी वांछा नहीं करते । अथवा वे सांसारिक भोगों की लिप्सा का परित्याग कर उत्तम आचरण में संलग्न रहते हैं । एकमात्र मोक्ष में तन्मय पुरुष लम्बे समय तक जीने की कामना नहीं करते । जीवितं पिट्ठओ किच्चा, अंतं पावंति कम्मुणं । कम्मुणा संमुहीभूता, जे मग्गमणुसासई ॥१०॥ छाया - जीवितं पृष्ठतः कृत्वाऽन्तं प्राप्नुवन्ति कर्मणाम् । ___कर्मणा सम्मुखीभूता, ये मार्गमनुशासति ॥ अनुवाद - सतपुरुष जीवन से निरपेक्ष रहकर ज्ञानावरणीय आदि कर्मों को नाश करते हैं । वे अपने पवित्र आचरण द्वारा मोक्ष के सन्मुख-मोक्ष के साधक हैं । मोक्ष मार्ग का अनुशासन करते हैं-शिक्षा देते हैं। टीका - किंचान्यत्-'जीवितम्' असंयमजीवितं 'पृष्ठतः' 'कृत्वा' अनादृत्य प्राणधारण लक्षणं वा जीवितमनादृत्य सदनुष्ठानपरायणाः 'कर्मणा' ज्ञानवरणादीनाम् ‘अन्तं' पर्यवसानं प्राप्नुवन्ति, अथवा 'कर्मणा' -605)

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