________________
नरकविभक्ति अध्ययनं आशय यह है कि नरक में ऐसा सम्भावित है । वे गीदड़ सदैव क्रोधाविष्ट रहते हैं वे उस नरक में निवास करने वाले एक दूसरे के निकटवर्ती तथा लोहे की सांकलों में बंधे हुये पूर्वजन्म के पापी नारक जीवों को खाते रहते हैं।
सयाजला नाम नदी भिदुग्गा, पविजलं लोह विलीणतत्ता । जंसीभिदुग्गंसि पवजमाणा, एगायऽताणुक्कमणं करेंति ॥२१॥ छाया - सदाजला नाम नद्यभिदुर्गा, पिच्छिला लोह विलीनतप्ता ।
यस्यामभिदुर्गायां प्रपद्यमाना एका अत्राणाः उत्क्रमणं कुर्वन्ति ॥ . अनुवाद - नरक में सदाजला नामक एक नदी है । उसमें सदैव पानी रहता है । इसलिए वह सदाजला कही जाती है । वह नदी अत्यधिक कष्टप्रदा है । उसका
से मलिन तथा आग से गले हुये लोहे के समान अत्यन्त गर्म है । बेचारे नारकीय प्राणी जिनका वहाँ कोई रक्षक नहीं है, अकेले उस नदी में बहते रहते हैं । .
टीका - सदा-सर्वकालं जलम्-उदकं यस्यां सा तथा सदाजलाभिधाना वा 'नदी' सरिद् 'अभिदुर्गा' अतिविषमा प्रकर्षेण विविधमत्युष्णं क्षारपूयरूधिराविलं जलं यस्यां सा प्रविजला यदिवा 'पविज्जले' त्ति रूधिरा विलत्वात् पिच्छिला, विस्तीर्णगम्भीर जला वा अथवा प्रदीप्तजला वा एतदेव दर्शयति-अग्निना तप्तं सत् 'विलीमं' द्रवतां गतं यल्लोहम्-अयस्तद्वत्तप्ता, अतितापविलीन लोह सदृशजलेत्यर्थः यस्यां च सदाजलायाम् अभिदुर्गायां नद्यां प्रपद्यमाना नारकाः 'एगाय' त्ति एकाकिनोऽत्राणा 'अनुक्रमणं' तस्यां गमनं प्लवनं कुर्वन्तीति ॥२१॥
टीकार्थ – जिसमें सब समय पानी भरा रहता है, उसे सदाजला कहा जाता है अथवा जिसका सदाजला नाम है ऐसी एक नदी नरक में है । वह बड़ी विषम-कष्टप्रदा है उसका पानी अत्यन्त गर्म, खारा तथा मवाद व खून से मलिन रहता है । अथवा रुधिर से भरी रहने के कारण वह बड़ी चिकनाई लिये हुये है अथवा वह विशाल-बहुत बड़ी है, उसका पानी गम्भीर-बहुत गहरा है । अथवा वह प्रदीप्त जला-अत्यन्त उष्ण जलयुक्त है । सूत्रकार इसी का दिग्दर्शन कराते हुए कहते हैं कि आग से गले हुए लोहे के समान वह नदी परितप्त है अथवा उसका पानी अत्यधिक ताप से तपकर-द्रवित लोहे के सदृश उष्ण रहता है । उस सदाजला नामक अत्यन्त विकराल नदी में पतित नारकीय प्राणी जिनको वहाँ कोई बचाने वाला नहीं है, बहते रहते हैं।
एयाई फासाइं फुसंति बालं, निरंतरं तत्थ चिरद्वितीयं । ण हम्ममाणस्स उ होइ ताणं, एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं ॥२२॥ छाया - एते स्पर्शाः स्पृशन्ति बालं निरन्तरं तत्र चिरस्थितिकम् ।
___ न हन्यमानस्य तु भवति त्राणम्, एकः स्वयं पर्य्यनुभवति दुःखम् ॥ अनुवाद - वे दुःख जिनका पहले वर्णन हुआ है, अज्ञानी नारकीय जीव को निरन्तर होते रहते हैं। नारकीय प्राणी का आयुष्य-उम्र भी लम्बी होती है । उस दुःख से उसकी रक्षा नहीं हो सकती । वह एकाकी ही उन्हें भोगता है।
339