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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
टीकार्थ - अपने एवं दूसरे के अनुग्रह के लिए अर्थी- याचक को जो दिया जाता है, उसे दान कहा जाता है। दान अनेक प्रकार का होता है । जीवन की वाञ्छा रखने वाले प्राणियों के त्राणकारित्व के कारण अभयदान सर्वश्रेष्ठ है । कहा है किसी म्रियमान मरणोन्मुख प्राणी को एक ओर करोड़ों का धन दिया जाय तथा दूसरी ओर जीवन दिया जाय, दोनों में से किसी एक को लेने का कहा जाय तो वह करोड़ों के धन को ग्रहण न कर जीवन को ही चाहेगा क्योंकि संसार के सभी प्राणियों में सहज रूप में जिजीविषा है, वे जीना चाहते हैं । ग्वालों और औरतों आदि को दृष्टान्त देकर समझाने में कोई बात तुरन्त उनके समझ में आ जाती है । इसलिए अभयदान की श्रेष्ठता को बताने हेतु एक कथानकं यहाँ उपस्थित किया जाता है -
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बसन्तपुर नामक नगर था । अरिदमन वहाँ का राजा था। वह अपनी चार रानियों के साथ झरोखे में बैठा हुआ मनोविनोद कर रहा था । तब उसने एक चोर को देखा । उसकी गर्दन में लाल कनेर की माला पहन रखी थी । लाल वस्त्र पहना रखे थे, शरीर पर लाल चन्दन लिप्त था, उसके पीछे-पीछे उसके मृत्युदण्ड का सूचक डिण्डिभ-ढोल बज रहा था । चाण्डाल लोग उसे राजमार्ग से ले जा रहे थे । रानियों सहित राजा ने उस चोर को देखा । रानियों ने उसे देखकर प्रश्न किया कि इसने क्या कसूर किया । तब एक राजपुरुष उनसे कहा कि इसने दूसरे के द्रव्य का अपहरण चोरी की है, जो राजाज्ञा के विरुद्ध कार्य है । यह सुनकर उन रानियों में से एक रानी ने राजा से निवेदन किया कि आपने पहले मुझे एक वरदान देने का वायदा किया था, वह आज दे दीजिए, जिसके द्वारा मैं इस चोर का कुछ उपकार कर सकूं, उसकी सहायता कर सकूं । राजा ने रानी का अनुरोध स्वीकार किया। उस रानी ने उस चोर को स्नान कराकर उत्तम अलंकारों से अलंकृत कर एक सहस्र स्वर्ण मुद्राओं के व्यय से उसे एक दिन के लिए शब्द आदि पांच प्रकार के विषयों का भोग प्राप्त करवाया । तत्पश्चात् दूसरी रानी ने भी अगले दिन एक लाख स्वर्ण मुद्राएं खर्च कर उसे सब प्रकार के भोग, सुख प्रदान करवाये । तीसरी रानी ने तीसरे दिन एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं व्यय कर उसे सब प्रकार के सुख, आनन्द, सत्कार आदि प्राप्त कराये । चौथी रानी ने राजा का आदेश प्राप्त कर उसकी मृत्यु से रक्षा की। उसे अभय दान दिलवाया। तब तीनों रानियाँ चौथी रानी का उपहास करने लगी कि इसने इस बेचारे को भी नहीं दिया । चौथी कहने लगी- मैनें तुम सबसे अधिक उपकार किया है। इस प्रकार उन रानियों में उस चोर का किसने अधिक उपकार किया है इस संबंध में विवाद होने लगा। तब राजा ने उस चोर को ही बुलाया और उससे पूछा कि तुम्हारा अधिक उपकार किसने किया है ? यह सुनकर चोर बोला कि मैं मृत्यु के घोर भय से अत्यन्त डरा हुआ था । इसलिए स्नानादि सुखों को मैं जरा भी अनुभव नहीं कर सका । किन्तु जब मेरे कान में यह आवाज आई कि मुझे अभयदान दे दिया गया है, तो इसे सुनकर मैंने ऐसा माना कि मानों मेरा नया जन्म हुआ है । अतः दानों में अभयदान सर्वोत्तम है। यह सही है । सत्य वाक्यों में जो वाक्य दूसरों के मन में दुःख पैदा नहीं करता, उसे श्रेष्ठ कहा जाता है । किन्तु जिससे दूसरों को क्लेश होता है वह वास्तव में सत्य नहीं है क्योंकि सत्य वह है जो सत्पुरुषों के लिए हितप्रद है । कहा है जगत में यह बात सुनी जाती है कि कौशिक मुनि वधयुक्त - हिंसा मिश्रित सत्य बोलकर तीव्र वेदनामय नरक में पतित हुए। और भी कहा है-काणे को काणा, नपुंसक को नपुंसक और चोर को चोर नहीं कहना चाहिए। तपो में नौ गुप्ति युक्त ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम है । इसी प्रकार सर्वोत्तम रूप सम्पत्ति, सर्वोत्कृष्ट शक्ति, क्षायिक ज्ञान, दर्शन एवं शील में श्रमण भगवान महावीर सर्वश्रेष्ठ हैं ।
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