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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
यथां लोके पुत्रसु [मु] स्वं नाम, द्वितीयं सु [मु] खमात्मनः 'इत्यादि, तदेवं पुत्रः पुरुषाणां परमाभ्युदयकारणं तस्मिन् 'समुत्पन्ने' जाते तदुद्देशेन या विम्बना पुरुषाणां भवन्ति ता दर्शयति- अमुं दारकं गृहाण त्वम्' अहं तु कर्माक्षणिका न मे ग्रहणावसरोऽस्ति, अथचैनं 'जहाहि परित्यज नाहमस्य वार्तामपि पृच्छामि एवं कुपिता सती ब्रूते, मयाऽयं नव मासानुदरेणोढ़ः त्वं पुनरुत्सङ्गेनाप्युद्वहन् स्तोकमपि कालमुद्विजस, इति, दासदृष्टान्तस्त्वादेश दानेनैव साम्यं भजते, नादेशनिष्पादनेन, तथाहि - दासो भयादुद्विजन्नादेशं विधत्ते, स तु स्त्रीवशगोऽनुग्रहं मन्य मानो मुदितश्च तदादेशं विधते, तथा चोक्तम्
“ यदैव रोचते मह्यं, तदेव कुरुते प्रिया । इति वेत्ति न जानाति, तत्प्रियं यत्करोत्यसौ ॥१॥ ददाति प्रार्थिनः प्राणान्, मातरं हन्ति तत्कृते । किं न दद्यात् न किं कुर्यात्स्त्रीभिरभ्यर्थि तो नरः ॥२॥ ददाति शौचपानीयं पादौ प्रक्षालयत्यपि । श्लेष्माणमपि गृह्णाति, स्त्रीणां वशगतो नरः ||३||" तदेवं पुत्र किमित्तमन्यद्वा यत्किञ्चिन्निमितमुद्दिश्य दासमिवादिशन्ति, अथ तेऽपि पुत्रान् पोषितुं शीलं येषां ते पुत्र पोषिण उपलक्षणार्थत्वाच्चास्य सर्वादेशकारिणः 'एके' केचन मोहोदये वर्ततानाः स्त्रीणां निर्देशवर्तिनोऽपहस्तितैहिकामुष्मिकापाया उष्ट्रा इव परवशा भारवाहा भवन्तीति ॥ १६ ॥ किञ्चान्यत् टीकार्थ पुत्र का उत्पन्न होना गृहस्थों का फल है । काम भोग में प्रवृत्त होना पुरुषों का फल है । काम भोग का प्रधान-मुख्य फल पुत्र जन्म है । कहा है पुत्र जन्म स्नेह का सर्वस्व है । वह धनी और निर्धन दोनों के लिए समान है । दोनों इससे प्रसन्न होते हैं यह ऐसा लेपन है जो चन्दन ओर खस के बिना भी हृदय को शीतल बनाता है । तोतली वाणी में बोलते हुए बालक ने शयनिका कहने के बदले शपनिका कहा वह शान्त और योग को परिहित कर मेरे हृदय में विद्यमान रहता है । पुत्र लोक में पहला सुखं है । दूसरा अपने शरीर का सुख स्वस्थता आदि है । इस प्रकार पुरुषों के लिए अत्यन्त अभुयदय - आनन्द का विषय है।
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पुत्र उत्पन्न होने पर पुरुषों को जो कष्ट- ट- असुविधाएँ झेलनी पड़ती हैं सूत्रकार उसका दिग्दर्शन कराते हुए कहते हैं । स्त्री पुरुष को कहती है प्रियतम् पुत्र को तुम लो। मैं अभी काम में लगी हुई हूँ। मुझे इसको लेने का समय नहीं है । यदि तुम इसे नहीं लेते हो तो मत लो मैं तो इसकी बात भी नहीं करूंगी । वह यों क्रोध में आकर कहती है । मैंने नौ महीने तक इस बच्चे को पेट में रखा किन्तु तुम इसे थोड़ी देर गोद में लेने से घबराते हो । जो नौकर का उदाहरण दिया गया है वह ठीक ही घटित होता है । वह स्त्री पुरुष को नौकर की तरह हुक्म देती है । पुरुष उसकी आज्ञा का पालन करता है। नौकर अपने मालिक से डरकर उसका हुक्म बजाता है, वैसा करते उसके मन में कोई खुशी नहीं होती किन्तु जो पुरुष स्त्री के वश में हैआसक्त है वह अपने पर उसकी कृपा मानता हुआ प्रसन्नता पूर्वक उसका पालन करता है । कहा है जो पुरुष स्त्री के वश में होता है वह ऐसा समझता है मेरी प्रियतमा वह कहती है जो मुझको प्रिय लगता है । किन्तु वास्तविकता यह है कि वही उसका प्रिय करता है, जिसे वह नहीं जानता । पुरुष स्त्री द्वारा अभ्यर्थना किये जाने पर अपने प्राण तक न्यौछावर कर देता है अपनी माँ की भी हत्या कर डालता है । स्त्री की अभ्यर्थना पर, अनुरोध पर उसे क्या नहीं दे सकता, उसके लिए क्या नहीं कर सकता अर्थात् वह सब कुछ दे सकता है । उसके लिए सब कुछ कर सकता है । जो पुरुष स्त्री के वशगत - अधीन है वह उसे शौच हेतु पानी लाकर देता है, उसके पाद प्रक्षालन करता है - उसके पैर धोता है । उसका थूक भी अपनी हथेली पर ले लेता है । इस प्रकार स्त्रियाँ पुत्र के निमित्त तथा अन्यान्य प्रयोजनों के लिए पुरुषों पर नौकर की ज्यों हुक्म चलाती है
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