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श्री
सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
अनुवाद आयुष्मन् देवपूजन हेतु ताम्र पात्र, पानी रखने के लिए, मदिरा रखने के तदनरूप पात्र लाकर दो। मेरे लिए शौच गृह खुदवाओ, बनवाओ । पुत्र की क्रीड़ा के लिए एक धनुष ला दो उसकी गाड़ी में जोतने के लिए एक तरुण बैल ला दो ।
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टीका - 'चन्दालकम्' इति देवतार्चनिकाद्यर्थं ताम्रमयं भाजनं; एतच्च मथुरायां चन्दालकत्वेन प्रतीतमिति, तथा ‘करको' जलाधारो मदिराभाजनं वा तदानयेति क्रिया, तथा 'वर्चोगृहं' पुरीषोत्सर्ग स्थानं तदायुष्मन् ! मदर्थं 'खन' संस्कुरु तथा शरा - इषवः पात्यन्ते - क्षिप्यन्ते येन तच्छरपातं धनुः तत् 'जाताय' मत्पुत्राय कृते ढौकय, तथा 'गोरहगंति त्रिहायणं बलीवर्दं च ढौकयेति, सामणेराए 'ति श्रमणस्थापत्य श्रमणपुत्राय त्वत्पुत्राय गन्त्र्यादिकृते भविष्यतीति ॥१३॥
टीकार्थ - देवपूजन के लिए मुझे तांबे का बर्तन ला दो। मधुरा में ऐसा बरतन चंदालक कहा जाता है । जिसमें पानी रखा जाता है वह कर्क अथवा करवा कहा जाता है । मदिरा का पात्र भी करक (कर्क) कहा जाता है । मुझे यह लाकर दो। जिसमें या जहाँ शौच किया जाता है उस स्थान को वर्चोगृह कहा जाता है। मेरे लिए वह खुदवादों - बनवादो । जिस पर रखकर बाण छोड़ा जाता है उसे शरपात कहा जाता है । यह धनुष का नाम है । अपने बेटे के क्रीड़ा- मनोविनोद आदि के लिए धनुष ला दो । तीन वर्ष का एक तरुण बैल ला दो जो तुम्हारे बेटे की गाड़ी खींचने के उपयोग में आये ।
छाया
घडिगं च सडिंडिमयं च, चेलगोलं कुमार भूयाए । वासं समभिआवण्णं, आवसहं च जाण भत्तं च ॥ १४॥
घटिकाञ्च सडिमडिमांच, चेलगोलकं च कुमारक्रीड़ाय, वर्षञ्च समभ्यापन्न मावसथञ्च जानीहि भक्तञ्च ॥
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अनुवाद अपने पुत्र के खेलने के लिए मिट्टी की पुवलिका - खिलौना बाजा और कपड़े से मढ़ी हुई गेंद लाकर दो । वर्षा ऋतु आ गई है इसलिए आवास स्थान का और अन्न का इन्तजाम करो ।
टीका तथा घटिकां मृन्मयकुल्लडिकां 'डिण्डिमेन' पटहकादिवादित्रविशेषेण सह तथा 'चेल गोलं' त्ति वस्त्रात्मकं कन्दुकं 'कुमारभूताय' क्षुल्लकरूपाय राजकुमारभूताय वा मत्पुत्राय क्रीडनार्थमुपानयेति, तथा वर्षमिति प्रावृट्कलोऽयम् अभ्यापन्नः - अभिमुखं समापन्नोऽत 'आवसथं' गृहं प्रावृट्कालनिवासयोग्यं तथा 'भक्तं च ' तन्दुलादिकं तत्कालयोग्यं 'जानीहि ' निरूपय निष्पादय, येन सुखे नैवानागतपरिकल्पतावसथादिना प्रावृट्कालोऽतिवाह्यते इति, तदुक्तम्
मासैरष्टभिरह्वा च, पूर्वेण वयसाऽऽयुषा । तत्कर्तव्यं मनुष्येण, यस्यान्ते सुख मेधते ॥१॥ इति ॥१४॥
टीकार्थ - राजकुमार के समान मेरे नन्हे से बेटे के लिए मिट्टी की पुत्रलिका या गुड़िया, बाजा, कपड़े से मढ़ी हुई गेंद लाकर दो । वर्षा ऋतु नजदीक है । इसलिए रहने योग्य उपयुक्त मकान व उस समय खाने के लिए चांवल आदि का इन्तजाम करो जिससे सुख सुविधा के साथ वर्षा ऋतु का समय बिताया जा सके। कहा गया है वर्ष के आठ माह में ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे बरसात के चार महीने आराम से रह सके। दिन में वह कार्य कर लेना चाहिए जिससे रात आनन्द से बितायी जा सके। उम्र के पूर्व भाग में ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे अन्त में सुख प्राप्त हो ।
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