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नरकविभक्ति अध्ययनं
टीका 'तस्मिंश्च' महायातनास्थाने नरके तमेव विशिनष्टि - नारकाणां लोलनेन सम्यक् प्रगाढ़ो - व्याप्तो भूतः स तथा तस्मिन्नरके अतिशीतार्ताः सन्तो 'गाढ़म्' अत्यर्थं सुष्ठु तप्तम् अग्निं व्रजन्ति, 'तत्रापि ' अग्निस्थानेऽभिदुर्गे दह्यमानाः 'सातं' सुखं मनागपि न लभन्ते, 'अरहितो' निरन्तरोऽभितापो - महादाहो येषां ते अरहिताभितापाः तथापि तान्नारकांस्ते नरकापालास्तापयन्त्यत्यर्थं तप्ततैलाग्निना दहन्तीति ॥१७॥ अपि चटीकार्थ - नरक ऐसा स्थान है, जहाँ अत्यधिक यातनाएँ हैं । उसकी विशेषता पर प्रकाश डालते हुए सूत्रकार कहते हैं
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नरक नारकीय जीवों के कोलाहल से उनकी हलचल से भरा हुआ है । वहाँ अत्यधिक शीत से आर्त प्राणी अपनी ठंडक दूर करने के लिए अत्यधिक प्रदीप्त- तेज जलती हुई अग्नि के निकट जाते हैं । वह अग्नि अत्यन्त दाहक होती है। उसमें वे जलने लगते हैं, जरा भी सुख नहीं पाते। उस आग में वे लगातार जलते हैं, उन्हें बड़ा दाह होता है । तथापि परमाधामी देव खूब गरम किया हुआ तेल उन पर छिड़क कर उन्हें दग्ध करते हैं ।
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से सुच्चई नगरवहे व सद्दे, दुहोवणीयाणि पयाणि तत्थ ! उदिण्ण कम्माण उदिण्णकम्मा, पुणो पुणो ते सरहं दुर्हति ॥ १८ ॥
छाया
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अथ श्रूयते नगरवधइव शब्दः, दुःखोपनीतानि पदानि तत्र । उदीर्ण कर्मण उदीर्णकर्माणः पुनः पुनस्ते सरभसं दुःखयन्ति ॥
अनुवाद • जब कभी किसी नगर का विध्वंस होता है, तो वहाँ के लोगों का दुःख वश बड़ा कोलाहल होता है । वैसे ही उस नगर में कोलाहल सुनाई देता है, बड़े कारूणिक शब्द सुने जाते हैं, जिनके मिथ्यात्व आदि कर्म उदीर्ण- उदय प्राप्त है, जो पाप कर्म का फल देने की अवस्था में उपस्थित हैं, वे परमाधामी देव नारकीय जीवों को बड़े उत्साह के साथ पुनः पुनः पीड़ा देते हैं ।
टीका - से शब्दोऽथ शब्दार्थे, 'अथ' अनन्तरं तेषां नारकाणां नरकपालै रौद्रैः कदर्थ्यमानानां भयानको हाहारवप्रचुर आक्रन्दशब्दो नगरवध इव 'श्रूयते' समाकर्ण्यते दुःखेन पीडयोपनीतानि - उच्चारितानि करुणाप्रधानानि यानि पदानि हा मातस्तात ! कष्टमनाथोऽहं शरणागतस्तव त्रायस्व मामित्येवमादीनां पादानां 'तत्र' नरके शब्द: श्रूयते, उदीर्णम्-उदयप्राप्तं कटुविपाकं कर्म येषां ते तथा तेषां तथा 'उदीर्णकर्माणो' नरकपाला मिथ्यात्वहास्यरत्यादीनामुदये वर्तमानाः 'पुनः पुनः' बहुशस्ते 'सरहं (दुहें) ति' सरभसं-सोत्साहं नारकान् 'दुःखयन्ति ' अत्यन्तमसह्यं नानाविधैयरूपायैर्दुःखमसातवेदनीय मुत्पादयन्तीति ॥१८॥ तथा
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रूदन
टीकार्थ - इस गाथा में 'से' शब्द अथ के अर्थ में आया है, इसके अनन्तर रौद्र- भयावह परमाधामी देवों द्वारा कदर्थित-उत्पीडित किये जाते उन नारकीय जीवों के हाहाकार से परिपूर्ण भयानक क्रन्दन, उस नगर के कोलाहल की ज्यों प्रतीत होता है, जिसका विनाश हो गया हो। उस नरक में दुःख के साथ उच्चारित किये जाते हुए करुणा प्रधान-करुणा पैदा करने वाले पद- शब्द सुनाई देते हैं- जैसे हे माता ! तात ! मैं बड़े कष्ट में हूँ, अनाथ हूँ, मेरा कोई स्वामी नहीं है, तुम्हारा शरणागत हूँ, मुझे बचाओ, इत्यादि शब्द उस नरक में सुनाई देते हैं । मिथ्यात्व, हास्य, रति आदि के उदय में विद्यमान परमाधामी देव नारकीय जीवों को.
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