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नरकविभक्ति अध्ययनं
दीर्घविस्वरमाक्रन्दन्तस्तिष्ठन्ति तथा प्रद्योतिता' वह्निना ज्वलिताः तथा क्षारेण प्रदिग्धाङ्गाः शोणितं पूयं मांसं चाहर्निशं गलन्तीति ॥ २३ ॥ किञ्च
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टीकार्थ वे नारकीय प्राणी, जिनके नाक, होंठ, जीभ ये सब काट लिए गए हैं, जिनके शरीर से खून टपक रहा है । जिस स्थान में वे रातें तथा दिन बिताते हैं, वहाँ वे अज्ञानी हवा द्वारा प्रेरित ताड़ के सूखे पत्तों की तरह जोर-जोर से आवाज करते रहते हैं - रोते रहते हैं। आग में जलाये हुये और जले पर खार लगाये हुये उन नारकीय जीवों के शरीर के अंगों से खून मवाद और मांस चूता रहता है ।
जड़ ते सुता लोहितपूअपाई, बालागणी तेअगुणा परेणं । कुंभी महंताहियपोरसीया, समूसिता लोहियपूयपुण्णा ॥ २४ ॥
छाया यदि ते श्रुता लोहितपूयपाचिनी बालाग्निना तेजोगुणा परेण । कुम्भी महत्यधिकपौरूषीया समुच्छ्रिता लोहितपूयपूर्णा ॥
अनुवाद - खून और मवाद से पूर्ण कुंभी नामक नरक भूमि कदाचित् तुमने सुनी होगी । उसमें रक्त और मवाद को पकाया जाता है। नवीन अग्नि तत्काल जलायी हुई आग के तेज से युक्त होने के कारण अत्यन्त ताप युक्त होती है । वह विस्तार में पुरुष प्रमाण से भी अधिक होती है ।
टीका पुनरपि सुधर्मस्वामी जम्बूस्वामिनमुद्दिश्य भगवद्वचनमाविष्करोति- यदि 'ते' त्वया 'श्रुता' आकर्णिता-लोहितं रुधिरं पूयं रूधिरमेव पक्कं ते द्वे अपि पक्तुं शीलं यस्यां सा लोहितपूयपाचिनी - कुम्भी, तामेव विशिनष्टि - ' बालः' अभिनवः प्रत्यग्रोऽग्निस्तेन तेजः - अभितापः स एव गुणो यस्याः सा बालाग्निते जोगुणा 'परेण' प्रकर्षेण तप्तेत्यर्थः पुनरपि तस्या एव विशेषणं 'महती' वृहत्तरा अहियपोरूसीये 'त्ति' पुरुष प्रभणाधिका 'समुच्छ्रिता' उष्ट्रिकाकृतिरूर्ध्वं व्यवस्थिता लोहितेन पूयेन च पूर्णा, सैवम्भूता कुम्भी समन्ततोऽग्निना प्रज्वलिताऽतीव बीभत्सदर्शनेति ॥२४॥ तासु च यत्क्रियते तद्दर्शयितुमाह
टीकार्थ - सुधर्मा स्वामी पुनः जम्बू स्वामी को उदिष्ट कर भगवान महावीर का वचन प्रस्तुत करते हैं | खून और मवाद इन दोनों को पकाना जिसका स्वभाव है, ऐसी कुंभी नामक नरक भूमि के सम्बन्ध में सम्भवतः तुमने सुना होगा । उसकी विशेषता बतलाते हुये कहते हैं नवीन - तत्काल प्रज्वलित अग्नि का जो तेज या ताप होता है, कुंभी का वही गुण है अर्थात् वह अत्यन्त तापयुक्त होती है । पुनः उस कुंभी की विशेषता बतलाते हैं, वह बहुत बड़ी है। वह विस्तार में पुरुष के प्रमाण से भी ज्यादा है । उसका आकार एक ऊँट की आकृति जैसा है । वह उसकी ज्यों ऊँची है । वह खून और मवाद से परिपूर्ण है । उसके चारों और आग जलती है । वह देखने में अत्यन्त वीभत्स - घृणोत्पादक है ।
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पक्खिप्प तासुं पययंति बाले, अदृस्सरे ते कलुणं रसंते । तहगाइया ते तउतंबतत्तं, पज्जिज्जमाणाऽट्टतरं रसंति ॥ २५ ॥
छाया
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प्रक्षिप्य तासु प्रपचन्ति बालान्, आर्त्तस्वरान् तान् करुणं रसतः । तृष्णार्दितास्ते ताम्रतप्तं, पाय्यमाना आर्त्तस्वरं रसन्ति ॥
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